श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 25
( “बेचारे बृज के विरही लोग” – ललिता ने बताया )
गतांक से आगे –
क्या सुनना चाहते हो श्याम सुन्दर ? ललिता ने श्याम सुन्दर से पूछा ।
हम बेचारे बृजवासियों के विषय में क्या जानना है तुम्हें ? सच में “बेचारे” ही हैं हम ।
ललिता इतना बोलकर कुछ देर चुप रही …फिर आँसु भरे नयनों से नभ की ओर देखा …लम्बी स्वाँस ली ।
बृज के हर घर से सिसकने की आवाज आती है श्याम सुन्दर !
रुदन ही रुदन रह गया है बस हमारे यहाँ ।
आँसु के धारे पनारे बन गये हैं …पनारे पोखर का रूप लेने लगे हैं …..रुँधे कण्ठ से ललिता बोल रही है ।
तुम्हारे सखा नित्य मथुरा की सीमा में जाकर खड़े रहते हैं ….वो सब आपस में लड़ते हैं …एक कहता है – “आज आयेगा कन्हैया”…..तो दूसरा भी हाँ में हाँ मिलाता है ….किन्तु जब एक ग्वाल भी ये कह दे कि …”आज नही आएगा” तो उसी से लड़ने लग जाते हैं सब ….शुभ नही बोल सकता …आज आयेगा ….सब लोग मान लेते हैं ….फिर टकटकी लगाकर मथुरा की ओर देखते रहते हैं ….हे श्याम ! क्या कहूँ ….कोई भी मथुरा से जाता है , तो ये लोग उसे देखते ही नाच उठते हैं …कि कन्हैया आगया …किन्तु कुछ ही देर में उनका ये उत्साह दुःख में परिणत हो जाता है ….और फिर अपार दुःख के सागर में ये सब डूबते चले जाते हैं …क्यों की उनका कन्हैया नही आया ।
ललिता सखी इतना कहकर अपने आँसुओं को पोंछने लगी थी ।
श्याम सुन्दर सुन रहे हैं ….उनका भी हृदय रो रहा है ।
और क्या सुनाऊँ श्याम ! ललिता कुछ देर बाद बोली ।
लौट आते हैं रात्रि से पूर्व अपने अपने घरों में ग्वाल …..गौएँ घास नही खातीं ….वो माटी खाकर जीवित हैं ….उनके भी नेत्र मथुरा की ओर ही रहते हैं ….उनके भी आँखों में अश्रु हैं ।
बन्दर आज कल उछलते नही हैं श्याम सुन्दर ! बस वृक्ष में बैठे रहते । और क्या सुनना है ?
इन दिनों मथुरा से कोई नही जा रहा बृज में , सब लोग कह रहे हैं बृज के लोग पागल हो गये हैं ।
हाँ , हम पागल हो गये हैं …..तुम ने पागल बना दिया है …पूरे बृज मण्डल को ही पागल बनाया है तुमने । अरे पशु पक्षी तक दुखी हैं तुम्हारे बिना । ललिता चीखी ….और क्या सुनना है ?
और तुम्हारे बाबा नन्द की दशा ! सुन सकोगे ? उन्हें अब पहले की तरह दिखाई नही देता …उनको कानों से भी कम सुनाई देता है …..बस उनके पास कोई भी जाये तो उन्हें लगता है उनका लाला आगया ….वो अपनी अपनी बोलते रहते हैं ….उसकी सुनते ही नही ।
तुम्हारे बाबा कहीं नही जाते आज कल , गौशाला भी नही जाते …जब मैया यशोदा कहती हैं …थोड़ा गौशाला तो देख आओ ….तो बाबा कहते हैं ….लाला आज आरहा है वही देख लेगा ….फिर रो पड़ते हैं ….तू नही समझती …मैं अपनी गौओ को माटी खाते तो नही देख सकता …वो कुछ नही खातीं ….उन्हें बाँसुरी सुननी है …उन्हें उसका गोपाल चाहिए …अब मैं कहाँ से लाऊँ उनका गोपाल ! ये कहते हुए तुम्हारे बाबा कोने में पड़े रोते रहते हैं । ललिता के मुख से ये सब सुनकर कृष्ण हिलकियों से रोने लगे । और सुनना है ? सुनो – तुम्हारी मैया यशोदा कभी ताली बजाती है …और कहती है ….नाच , मैं तेरे लिए बहु लाऊँगीं …सुन्दर सी बहु …..ले अब तो खा ले माखन …..इतना कहकर वो अपना हाथ खिलाने के लिए आगे बढ़ाती है ….खा ले …अरे मान जा …लाला ! जिद्दी मत बन …खा ले …..अच्छा ले खिलौना ले ….खिलौने से खेल ….नही चाहिए ….तो क्या चाहिए ? क्या कहा चन्द्रमा ? अब मैं कहाँ से लाऊँ चन्द्रमा । लाला ! ले खा …बुढ़िया मैया की बात मान ले …..खा ले ।
ललिता बोल रही है और कृष्ण रोये जा रहे हैं ….बस रो रहे हैं ।
क्या कहे , क्या करे वो मैया यशोदा ……..
सुनो ना ! लाला ने माखन नही खाया है आज …मुझ से रूठ गया है …अर्धरात्रि में नन्दबाबा से मैया यशोदा जब कहती है ….बाबा की दशा ….फूट फूट कर रोने लगते हैं बाबा । अरे यशोदा ! तेरा लाला तो मथुरा गया है ….ओह ! ये सुनते ही यशोदा उन्माद से भर जाती हैं…..नही , वो यहीं है …मेरे पालने में ….वो जाती है पालने में ….किन्तु पालना ख़ाली है ।
हे श्याम सुन्दर ! वो फिर हंसती है ….कहती है मैं भी पालने में उसे खोजती हूँ , आज भी पालने में ही देखती हूँ ……वो तो बड़ा हो गया ….बहुत बड़ा …..इतना बड़ा । मेरा लाला बड़ा हो गया …..अरे ! अब बहु लानी है …..कृष्ण ये सब सुनकर बस रोये जा रहे हैं …ललिता सुना रही है …..और सुनना है ?
अब सुनाऊँ …..तुम्हारी प्रिया की दशा ? क्या सुन सकोगे ? ओह वो श्रीराधा ।
ललिता ये बोलते बोलते बिलख उठी थी ।
तुम्हारी प्राण प्रिया श्रीराधा बड़े ही कष्ट पूर्वक अपना जीवन बिता रही हैं । तुम्हारा सुवर्ण सदृश बृजमण्डल अब भस्म के ढेर पर बैठा है ….हे श्याम ! विरह की दावानल तुमने ऐसी लगाई की सब कुछ जलकर राख हो गया । किन्तु तुम्हारी वो श्रीराधा अभी भी राख में तुम्हें ही खोज रही हैं ।
हे निष्ठुर श्याम ! तुम्हारे हृदय में कभी पीढ़ा नही होती ? वो कोमल से भी कोमल तुम्हारी श्रीराधिका अपना सिर जब पटकती हैं पाषाण में …..तब पाषाण भी पिघल जाये उस दृष्य को देखकर …किन्तु तुम्हें उससे क्या ? ललिता अब आक्रामक हो उठी थी ।
क्यों इतना प्रेम बढ़ाया ? बताओ श्याम ! अगर निभा नही सकते तो क्यों इतना प्रेम किया !
हे मथुरा नरेश ! एक काम करो । ललिता हाथ जोड़ने लगी …..हमारे ऊपर बड़ा उपकार होगा ।
क्या ? कृष्ण ने बिलखते हुये पूछा ।
विष दे दो ….हम बृजवासीयों को विष दे दो ….मर जायें यही अच्छा रहेगा । ललिता ये कहते हुए चिल्लाने लगी थी । इस तरह से तो कोई क्रूर राजा भी दण्ड नही देता …जो तुम दे रहे हों।
कृष्ण रो रहे हैं ।
अपने अश्रुओं को पोंछा ललिता ने ….फिर कुछ सहज होकर बोली ।
सुनो श्याम ! सुनो ……तुम्हारी श्रीराधा की दशा ।
श्रीराधा रोते रोते जब थक जाती हैं ….तब वो अपने नख को इकटक देखने लगती हैं ….तभी उन्हें नख चन्द्रमा लगता है ….तो बोल उठतीं हैं …मेरे कृष्ण चन्द्र । वो अपने हाथों को छाती से चिपका लेती हैं ….छाती से चिपकाने के कुछ समय बाद जब वो अपने करतल को देखती हैं तो उन्हें वो कमल लगता है …वो झटक देती हैं …और चिल्लाने लगती हैं …कि उस श्याम सुन्दर ने मुझे मनाने के लिए कमल दे दिया ….ललिता बहुत रो रही है …हे श्याम ! कमल समझ जब वो हाथ को झटकती हैं ….तब उनके कंगन झंकृत हो उठते हैं तब उन्हें लगता है …ये कोई भ्रमर आगया उसकी ये गुंजार है ….वो हाहाकार कर उठती हैं …तब उनके रुदन में कुहू की ध्वनि प्रकट होती है …तब वो अपनी सखियों को चीख कर कहती हैं …इस बैरिन कोयली से कह दे कि मुझे न सताए …मेरे पिया यहाँ नही हैं …इसलिये इस कोयली को बोलो …वो चली जाये….हे मनमोहन ! इतना कहते हुए वो दौड़ने लगती हैं …पर देह में अब शक्ति नही है …इसलिए गिर पड़ती हैं …और मूर्छित हो जाती हैं । ललिता रोते हुये कहती है …हे श्याम सुन्दर ! बड़ी मुश्किल से मैंने उन्हें जीवित रखा ।
कृष्ण ये सब सुनकर ……फिर अचेत हो गये थे ।
क्रमशः….


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