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July 21, 2025 9:07 am

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 28-( इधर – आहें भरती बृजभूमि ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 28-( इधर – आहें भरती बृजभूमि ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 28

( इधर – आहें भरती बृजभूमि )

गतांक से आगे –

ललिता धीरे धीरे बढ़ रही है …श्रीवृन्दावन की ओर ।

किन्तु उसके पाँव बढ़ नही पा रहे …उसके पाँव मुड़मुड़ कर मथुरा श्रीकृष्ण के पास ही जाना चाह रहे हैं । उसका मन कह रहा है …ललिते ! कहाँ जा रही है वृन्दावन….अपनी स्वामिनी को क्या वचन देकर चली थी तू ? यही ना कि मथुरा से लेकर आऊँगी श्याम सुन्दर को ? अब जाकर क्या कहेगी कि नही आए श्याम ! इन वचनों से क्या तू लाड़ली के प्राण बचा पाएगी ?

ओह ! वो ललिता बैठ गयी …..उसके देह से स्वेद बहने लगा ….उसको अब घबराहट हो रही है ….उसके सामने उसकी प्राण प्रिय लाड़ली श्रीराधा रानी का ही रूप आरहा है ।

क्या कहूँगी मैं ? वो पूछेंगीं …ललिता ! कहाँ है मेरे श्याम ! तो मैं क्या उत्तर दूँगी ।

तभी ….कहाँ हैं श्याम ! कहाँ हैं श्याम ! कहाँ हैं श्याम !

ये ध्वनि चारों ओर से ललिता को सुनाई देने लगी ….वो देख रही है चारों ओर ….ये प्रश्न कौन कर रहा है ! ओह ! हिलकियों से रो पड़ी ललिता ….ये प्रश्न वृक्ष कर रहे थे …लताएँ कर रहीं थीं …सूखे वृक्ष-लताएँ ..सब हरे हो गये थे मात्र आशा के कारण ….कि ललिता कहकर गयी थी मैं लेकर आऊँगी श्याम सुन्दर को …इन्हें पूर्ण आशा थी कि ललिता अपने वचन का पालन करेगी …किन्तु ! ललिता क्या करे ? वो खड़ी हो गयी …और चारों ओर चिल्लाकर कह रही है …ललिता क्या करे …वो नही आये । ओह ! ललिता के मुख से ये सुनते ही वृक्ष वापस सूख गए …लताएँ तुरन्त सूख गयीं , ललिता के दुःख का पारावार नही है …किन्तु क्या करे ललिता !


आज मेरा दाहिना सुर चल रहा है ….मनसुख अपने सखाओं से कह रहा है ।

तो ? सभी ग्वाल सखा मनसुख से पूछते हैं ।

अपने नाक के दाहिने नथुने में हाथ रखते हुए कहता है …..देख ! देख !

इससे क्या होता है ? अन्य ग्वाल सखा मनसुख से पूछ रहे हैं ।

ये सब ग्वाल बाल मथुरा के मार्ग में खड़े हैं …नित्य की तरह …..अब इनका यही काम रह गया है …..मथुरा मार्ग में खड़े रहना ….और इस प्रतीक्षा में कि …आज हमारा श्याम आयेगा ।

तुम क्या जानों …ये स्वर विज्ञान है …..ज्योतिष में इसकी भी मान्यता है …मनसुख इतना सहज कृष्ण के मथुरा जाने के बाद आज ही हुआ है । वो थोड़ा बहुत हंस भी रहा है …ग्वाल सखा इसे देखते हैं तो उन्हें भी आशा बंध रही है ।

अच्छा ! पण्डित मनसुख जी ! बता दो …इस स्वर विज्ञान से क्या होता है ? अब थोड़े थोड़े सब सहज हो रहे हैं । क्या पता …पण्डित मनसुख लाल की बात सही हो ।

अजी ! प्रेमी लोगों की साँस आस में ही तो टिकी होती है ।

देखो भैया –

मनसुख बताने लगे ….शुभ होता है ..जब आप कुछ प्रश्न सोचो …और नाक के नथुने को देखो कि साँस कौन सा चल रहा है ….दाहिना चले तो तुम्हारा प्रश्न सही है ….तुम्हारा काज सफल होगा …और अगर बायाँ स्वर चले तो सफल नही होगा । मनसुख अब गम्भीर हो गया था …जब से कृष्ण गया है ना मथुरा मैं बस यही देखता रहता हूँ ….आज आयेगा ? नाक की साँस देखता था तो बायाँ ही चलता था …..आज तक कभी दाहिना नही चला ….किन्तु आज ! मनसुख थोड़ा हंसा ….आज ! क्या ? तू कहना चाहता है – कन्हैया आएगा ? हाँ ।

मनसुख ! तू कैसे बोल सकता है इतने आत्मविश्वास से ! मात्र नथुने के साँस की गति को देखकर ? श्रीदामा ने पूछा ।

अरे ! मनसुख भैया काशी के पण्डित हैं ….वहाँ की गणना सही होती है ….और ! ये सही बात तो कह रहे हैं….मान लो ना ? तोक सखा ने भी कहा ।

श्रीदामा रो पड़े …..बड़ा कष्ट होता है ….मान लें – कन्हैया आएगा …और नही आया तो ? मृत्यु के समान कष्ट होता है उस समय ।

किन्तु ….कन्हैया आएगा …….मनसुख अपने ही मन को कह रहा है ….एक आंक की डाली तोड़ी उससे आर पार दिखाई देता है …..उसको लेकर वो दूर देखने लगा ।

सब लोगों की दृष्टि मथुरा की ओर है …..कोई तो आये …..तोक सखा कहता है ..मैं सौ गिनती गिनूँगा तब तक तो आही जाएगा कन्हैया …वो अलग से गिनती गिन रहा है ….उसकी सौ गिनती कब की पूरी हो चुकी वो तीसरी बार गिन रहा है ।

सुना है श्रीदामा ! ललिता सखी गयी है मथुरा ? मनसुख आंक की लकड़ी से दृष्टि मथुरा मार्ग में ही गढ़ाये …..पूछ रहा था ।

हाँ , वो गयी तो हैं ….श्रीदामा ने उत्तर दिया ।

ललिता सखी बहुत तेज है ….वो कुछ भी कर सकती है …वो जो ठान ले …उसे पूरा करके ही मानती है ….मनसुख बोले जा रहा है ।

तो तुझे क्या लगता है …वो ले आयेंगी श्याम सुन्दर को ।

मनसुख ने फिर अपने स्वर को देखा …..हाँ , दाहिना ही चल रहा है । फिर सब मन में आस लिये मथुरा मार्ग की ओर ही देखने लगे थे ।


हे चन्द्रावली ! हे रंगदेवि ! हे मेरी सखियों !
मुझे लगता है मेरे प्रीतम ने मुझे क्षमा नही किया ।

भानु दुलारी श्रीराधारानी ब्रह्माचल पर्वत में रंग देवि की गोद में लेटी रो रही हैं ।

मैंने उन्हें बहुत कष्ट दिये ….छोटी छोटी बातों में रूठ जाती थी ये राधा ! वो मनाते मनाते थक जाते …किन्तु मैं निष्ठुर हृदया के मन में दया नही आती ….हे सखियों ! उन्होंने ठीक किया …..मेरे साथ यही होना चाहिये ….ना आयें श्याम सुन्दर मेरे पास …वहीं सुखी हैं मथुरा में …तो वहीं रहें । श्रीराधारानी का मुख मलीन हो गया है ….केश जटा बन गए हैं ….श्रीअंग जो सुवर्ण की कान्ति के समान थे वो काला हो चुका है ।

रंगदेवि की गोद में लेटी हैं प्रिया जी ….बोलते बोलते रुक जाती हैं , वाणी अवरुद्ध हो जाती है …तो रंगदेवि रुई लेकर बिलखते हुए उनके नासिका में रख कर देखती हैं कि …कहीं प्राण तो नही निकल गये । ओह ! किन्तु न जाने क्या प्रसंग स्मरण हो आता है प्रिया जी को , तो तुरन्त साँस की गति तेज हो जाती है ।

फिर नयन खोलकर वो बोलने लगती हैं …..

क्या रंगदेवि ! यहाँ विष नही मिलता ?

ओह ! सखियों के हृदय में बज्रपात होने लगता है ये सुनकर ….सब रोने लग जाती हैं । फिर धीरे से प्रिया जी कहती हैं ….मैं तुम सबको भी दुःख दे रही हूँ ना ! अच्छा ! ठीक है मैं गिरी गोवर्धन से कूद जाऊँगी ….या किसी विषधर से डसवा लुंगी ।

ये कहते हुए वो फिर असहाय सी शून्य में देखने लग जाती हैं ।

रंगदेवि ! फिर चिल्ला उठी हैं ।

हाँ , अपने अश्रुओं को पोंछकर वो प्रिया जी से पूछती हैं ।

मैं मर गयी ना , तो मेरे पंचतत्व को उसी जगह मिला देना जहां मेरे प्रीतम रहते हों ।

मेरी यही प्रार्थना है …तुम लोगों ने मेरी बहुत सेवा की है …आज इतनी सी बात मान लो …श्रीराधारानी सबको हाथ जोड़ रही हैं । मेरी प्रार्थना है ….मेरे देह के जल तत्व को उसी जल में डाल देना जिस जल से मेरे प्रीतम नहाते हों । और रंगदेवि ! मेरे देह का तेज तत्व ? श्रीराधारानी कुछ देर के लिए रुकीं …फिर बोलीं …..उस दर्पण में मिल जाये मेरा तेज तत्व जिस दर्पण में मेरे प्यारे अपना मुख चन्द्र निहारते हों …..हे सखियों ! इस राधा का आकाश तत्व उस आँगन में चला जाये …जिस आँगन में मेरे प्रीतम बैठते हों । और ! सखियाँ बस रो रहीं हैं …प्रिया जी की एक एक बात उनको शूल के सम चुभ रही है । हे सखियों ! मेरे देह का पृथ्वी तत्व उस पृथ्वी में मिल जाये जिस मार्ग पर मेरे प्रीतम चलते हों ….कहते कहते श्रीराधा की हिलकियाँ बंध गयीं …..हे सखी ! मेरे देह का वायु तत्व उस वायु में मिल जाये …जिससे प्रीतम पंखा करते हों ।

मुझे अब मर जाने दो …..मुझे जीवित मत रखो । श्रीराधारानी इतना कहकर आह भरने लगीं ।

हे राधा ! तू धैर्य रख …..क्यों इस तरह अधीर हो रही है ….चन्द्रावली को श्रीराधा का इस तरह विलाप अच्छा नही लगा …इसलिए उसने गम्भीर स्वर में कहा ।

तो मैं क्या करूँ ? श्रीराधा ने पूछा ।

क्या भूल गयी हो राधा ! ललिता सखी गयी है श्याम सुन्दर को लाने । चन्द्रावली ने कहा ।

तुम्हें लगता है ….वो ला पाएगी ? श्रीराधा ने पूछा ।

हाँ , वो लाएगी …..मुझे ललिता पर पूरा विश्वास है । चन्द्रावली दृढ़ता से बोली ।

श्रीराधारानी के हृदय का कष्ट कुछ कम हुआ……चन्द्रावली ! कब आएगी ललिता ?

चन्द्रावली श्रीराधारानी के हाथों को पकड़ कर बोली ….वो आयेगी …और देखना , साथ में श्याम सुन्दर को भी लाएगी । श्रीराधा रानी अपनी सखियों के साथ ललिता की प्रतीक्षा में बैठ गयीं हैं ।

क्रमशः….

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