!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 94 !!
उद्धव को आज छ महिनें हो गए …
भाग 2
मुझे झूले में झूलना है ………….सावन का महीना आ गया …….पर मेरे लिये किसी नें झूला नही डाला …………….
हँसी श्रीराधारानी ………बस इतनी सी बात ……………मेरे साथ में बैठो ……..मेरे साथ झूलो ………….
वो साँवरी सखी तो ख़ुशी से उछल पड़ी…
..शायद ये, यही चाहती थी ।
पर जैसे ही वो झूले में बैठी…….और श्रीजी के अंग का स्पर्श पाया…..
वो साँवरी सखी तो देह भान ही भूल गयी ……और गिर गयी ।
उद्धव ये अद्भुत लीला देख रहे हैं …………..
ललिता नें उस साँवरी सखी को सम्भाला ………पर ये क्या ?
भीतर छुपी हुयी बाँसुरी ? उद्धव भी चौंके ………..
ललिता सखी नें श्रीजी को बताया ……..बाँसुरी ? वो भी चौंकी ।
जब उस साँवरी सखी की चूनर खींचीं…………बस सब सखियाँ तालियाँ बजाकर हँस पडीं …………..
उद्धव भी हँसे ………….हाँ ताली बजाकर हँसे ।
ये साँवरी सखी नही …….सखा है………हे स्वामिनी श्रीहरिप्रिये ! ये हमारे श्याम सुन्दर हैं …………लीला कर रहे थे ……हँसी ललिता ।
पर श्रीराधारानी रिसाय गयीं……..जाओ ! हम नही झूलेंगीं तुम्हारे साथ………उद्धव देख रहे हैं ……..रसिकबिहारी अब तो श्रीजी के चरणों में गिर गए थे …….हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे ।
उद्धव नें ये सब देखा …………वो कुछ समझ पाते ……कि – ये लीला फिर गुप्त हो गयी ………..न वहाँ कोई झूला था …….न श्रीराधारानी …न सखियाँ ……न लीलाधारी साँवरी सखी ……..
हाँ ……वो कदम्ब वृक्ष था ……..बड़ा सा और दिव्य अद्भुत कदम्ब ।
उद्धव समझ गए…..छ महिनें भी तो हो गए थे……यहाँ रहते रहते
…..वृन्दावन चिन्मय है वज्रनाभ ! मैने तुम्हे कई बार समझाया है ।
यहाँ के वृक्ष और लताएं भी कृपा कर दें …….तो श्रीकृष्ण दर्शन तुरन्त हो जाए । महर्षि शाण्डिल्य नें ये बात वज्रनाभ से कही ।
तो क्या ये “झूलनलीला” इसी कदम्ब के वृक्ष पर सम्पन्न होती थी ?
तो क्या सावन में झूला इसी कदम्ब कि डाल पर ही डलता था …….और इसी कदम्ब में ही हमारे युगलवर झूलते थे ?
दौड़ पड़े उद्धव ……..और उस कदम्ब को अपनें हृदय से लगा लिया ।
धड़क रहा था उस कदम्ब का हृदय भी ……….उसका हृदय भी रो रहा था ……..वो कदम्ब भी मानों पूछ रहा था ………कब आयेंगें श्याम ?
मैं रोता रहा……..और उस कदम्ब को गले से लगाता रहा ।
आज वर्षा रुकनें वाली नही लगती……..खूब बारिश हो रही है ।
उद्धव कदम्ब वृक्ष को गले से लगाकर जानें लगे …………….
फिर एक बार कदम्ब को मुड़कर देखा था उद्धव नें ।
सब कुछ चिन्मय है यहाँ तो ! उद्धव कि इच्छा होती है कि ……सबको प्रणाम करते चलें …..सबको साष्टांग दण्डवत करते चलें ।
कितनें दैन्य हो गए थे उद्धव ….
…सारा ज्ञान बहा ले गयी थी प्रेम की धारा ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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