!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 95 !!
उद्धव की वृन्दावन से अश्रुपूर्ण विदाई…
भाग 1
हे उद्धव ! तुम्हीं नें कहा था , जब तुम आये ही थे मथुरा से ……..
कि “हे पितृचरण ! श्रीकृष्ण ईश्वर हैं “
तुम कहते हो तो होगा ………क्यों की शास्त्रों को तुम जानते हो …..हम नहीं …….धर्म क्या कहता है …….ये भली भाँति तुम समझते हो ……हम क्या समझेंगें ……हम तो जंगल – वनों में रहनें वाले हैं ।
इसलिये एक बात कहता हूँ उद्धव ! तुमसे ……….श्रीकृष्ण से हमारा मन कभी उदासीन न हो…….उद्धव ! हमारा प्रारब्ध हमें कहाँ ले जाएगा …..पता नही है ……जहाँ भी कर्मवश हमें जाना पड़े ……….बस इतना ही हमें चाहिये कि …..”कृष्ण हमारा है”…….यही भाव दृढ बना रहे ।
ये कहते हुए अपनें मुँह को चादर से नन्दबाबा नें ढँक लिया था ………क्यों की उनका हृदय भर आया था ………वो हिलकियों से रो पड़े थे…….।
वज्रनाभ ! आज जानें वाले हैं उद्धव श्रीधाम वृन्दावन से ………..
रात्रि में सोये थे……..देर से सोये थे…….सोये कहाँ थे बस लेटे थे ।
छ महिनें पूरे होगये ……..पावस ऋतू में ये लौट रहे हैं……..
छ महीनों में कभी उद्धव सोये नही …………..सोते कैसे ? वृन्दावन में जब से कृष्ण गया है ….तब से यहाँ सोता कौन है !
मैया यशोदा रात भर सुबकती रहती हैं……….नन्दबाबा …….मध्य में उठ उठ कर “नारायण-नारायण” कहते रहते हैं………
ऐसे ही रात्रि बीतती थी……..3 बजे ही उठकर नन्दराय चले जाते यमुना स्नान करनें …..यशोदा मैया उठकर दधि मन्थन करतीं …….नन्दबाबा मना करते…..पर वो मानती नहीं ।
आज मैं जानें वाला हूँ …….इसलिये आज मेरे पास नन्दराय आये थे, ब्रह्ममुहूर्त से पूर्व……..वत्स उद्धव ! क्या यमुना स्नान करनें चलोगे ?
उद्धव आज तक साथ में नही गए, नन्द बाबा के साथ ……..पर आज !
सफेद दाढ़ी …………गौर वर्ण …….सिर में पीली पगड़ी ……….
मैने शैया को त्यागते ही सबसे पहले नन्दराय के चरणों में प्रणाम किया……….फिर इधर उधर देखा तो …..बाहर भीड़ लगी है ……..ग्वाल बाल ……गोपियाँ ………और स्वयं श्रीराधारानी अपनी सखियों के साथ ! मैने मैया यशोदा को प्रणाम किया……..उनके साथ में श्रीराधारानी …….मैने उनको भी प्रणाम किया ………वो तो मैया के सामनें संकोच कर रहीं थीं ।
आप लोग इतनी जल्दी आगये ? अरे ! अभी तो ब्रह्म मुहूर्त भी नही हुआ ………रात भर सोये भी नही क्या ?
उद्धव ! हम लोग छ महिनें से सोये कहाँ हैं ? फिर तू तो आज जा रहा है ना ? मनसुख रोते हुए बोला था ।
माखन निकाल रही हूँ मैं……..मेरी राधा बेटी भी मेरा साथ देनें के लिये रात में ही आगयी थी …….यशोदा मैया श्रीराधारानी अन्य सबको मैने देखा ………..
जाओ तुम उद्धव ! स्नान करके आजाओ ! जाओ !
ललिता सखी नें मुझे बड़े प्रेम से कहा ….और मैं नन्दराय के साथ यमुना स्नान करनें चला गया था ।
स्नान किया …….मैं सन्ध्या बन्धन करना भूल गया हूँ ! मैं कोशिश करता हूँ पर ! गायत्री का जाप करना चाहता हूँ…..पर नही जपा जाता, “प्रेम” नें सब उल्टा पुल्टा कर दिया है……सारे मेरे नियम टूडवा दिए ।
मैं नन्दराय के साथ धीरे धीरे नन्दमहल की ओर लौट रहा था ।
तब मुझ से नन्दबाबा नें ये सब कहा – “कृष्ण हमारा है” ये भाव हमारा और दृढ़ हो जाए……..बस हमें यही चाहिये ।
और भी बहुत कुछ कहना चाहते थे बाबा नन्द जी .. ……पर उनके आँसुओं नें उन्हें कुछ कहनें नही दिया …….अति भाव के वेग से उनका कण्ठ रुंध गया था ।
चादर मुँह में डालकर वो रो गए थे ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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