श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “ओह, शाप की ये परिणति” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 91 !!
भाग 1
प्रभास क्षेत्र में सब लोग पहुँच गए …..सेतु से रथ आदि वाहन पार गए , अब और भी जो यादव बचे थे द्वारिका में , वो नौका आदि जो मिला उसी से प्रभास क्षेत्र की और बढ़ गए थे ।
अब द्वारिका में कोई यादव बचा नही था ………
प्रभास क्षेत्र में पहुँच कर सबने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से सरस्वती नदी में स्नान किया …..
अब क्या आज्ञा है ? कुछ वृद्ध यदुवंशीयों ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था ।
अब हम सब व्रत उपवास करेंगे …..क्यो की तीर्थ में व्रत आदि से हमारे पूर्व कृत पाप नष्ट होते हैं ।
भगवान शान्त भाव से सबको बता रहे थे ….वृद्ध और कुछ विवेकी यादवों ने भगवान की बात मानी और संकल्प करके व्रत आरम्भ कर दिया …..शुद्ध पवित्रता के साथ व्रत शुरू किया …देखा देखी में युवकों ने भी किया था …..दूसरे दिन पारायण करना था …..जैसे तैसे व्रत तो पूर्ण किया इन यदुवंशियों ने ….किन्तु पारायण, दान आदि देकर हविष्यान्न को ही ग्रहण करके व्रत को पूर्ण किया जाना चाहिए था ….पर ये तो उद्दण्ड हो चुके थे । कुछ वृद्घों ने समझाया भी पर ये युवक कहाँ मानने वाले थे …..नही माने …..मदिरा घट में भरकर ले आए ……और एक दूसरे को दिखाकर पीने लगे ……जिनको नही मिला वो झपट पड़े थे …हमें भी दो ….उनके लिए भी मँगवाई गयी …..यदुवंशी कम तो थे नही इनकी संख्या लाखों में थी ।
तात ! कैसा दृश्य बना होगा वो आप कल्पना कर सकते हो ।ओह ! उद्धव विदुर जी को बोले थे ।
सब युवक थे …गर्व से भरे हुये….युवकों में मदिरा की मतत्ता और आगयी थी । बलवान थे ही ये सब लोग ….शक्ति और सत्ता का मद इनमे और भरा हुआ था ।
बस तनिक सी बात छिड़ी थी इन लोगों में कि आपस में तलवारें खिंच गयीं ….मदिरा बुद्धि और विवेक का नाश करती ही है ……यहाँ यही हुआ था ।
समझाए कौन …..क्यो की देखते ही देखते उस आपस के युद्ध ने भीषण रूप ले लिया ।
ओह ! कटने लगे थे यदुवंशी लोग आपस में ही …..रक्त बह चला था ….मस्तक ऐसे कट कर गिर रहे थे जैसे कंदुक हों …..इन लाखों यदुवंशी युवकों को अब कोई सम्भालने वाला नही था ….दारुक ही रो उठा था भगवान के चरणों में गिरकर ….आप बचा लो इन्हें , इस युद्ध को रोकिए नाथ !
दारुक की बातें बस सुन रहे थे भगवान …..वो शान्त गम्भीर बने रहे ….कुछ नही बोले ।
आप देखिए तो बाहर का दृश्य ! दारुक रो रोकर बोल रहा था …..पर भगवान ने उस ओर देखा ही नही ……क्या देखते …..सब कुछ इन्हीं की लीला तो थी ।
देखते ही देखते शवों का अम्बार लग गया था । येसा भयावह दृष्य प्रकट हो गया ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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