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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 103 !!
जब ललिता सखी नें देखा…..
भाग 2
मेरे साँसों की बढ़ती गति …………और मेरा क्रोध देखकर महर्षि मेरे सामनें हाथ जोड़ते थे ………..और कहते ……मेरे शिष्य श्यामसुन्दर को तुम श्राप मत देना ……..तुम भगवती ललिताम्बा हो …….तुम ही त्रिपुर सुन्दरी हो जो सदैव शिव के हृदय में ही विराजमान रहती हो ………पर यहाँ वृन्दावन में आल्हादिनी की सखी बनकर तुम उनकी सेवा में ही लगी हो ।
महर्षि नें मेरे सामनें हाथ जोड़ दिए थे ………मैं क्या कहती उनसे ।
मैं शान्त होती…..अपनें आपको सम्भालती……फिर कहती – महर्षि ! मिलन कब होगा हमारी सखी श्रीराधा और श्याम सुन्दर का ?
कुछ वर्ष और !
कितनें वर्ष और महर्षि ! श्याम के गए हुए ........पाँच वर्ष तो बीत चुके हैं ......और कितनें ?
ललिते ! अभी तो बहुत समय बाकी है ……..करीब ९५ वर्ष और ।
मेरा हृदय धक्क बोलकर रह गया……ओह ! अभी ९५ वर्ष और ?
हाँ ….ललिते ! सम्भालना होगा अपनी श्रीराधारानी को ।
मैं उठ गयी ………पर जाते जाते बोली …………महर्षि ! तुम्हारे यज्ञ कुण्ड की भस्म ले जाऊँ ? लगा दूंगी माथे में अपनी लाडिली के ….कुछ तो शान्ति मिलेगी ………………..मैं कुछ भी करनें के लिये तैयार थी अपनी स्वामिनी के लिये ……..।
महर्षि स्वयं रो पड़े थे मेरी भस्म ले जानें की बात सुनकर ……..कुछ नही होगा इन सब से ललिता !
क्यों नही होगा ? प्रभावती गोपी को भूत लगा था………ऊँची पहाड़ी के तांत्रिक बाबा नें भस्म दी और वो ठीक हो गयी ।
क्या कहें मुझ पगली को ………….महर्षि इतना ही कहते ……….ये भूत-प्रेत की बाधा नही है ललिता ! तुम भी समझती हो ……….
हाँ …मैं समझती हूँ ……….पर अभी कुछ नही समझ पा रही हूँ ।
मेरी स्वामिनी मूर्छित हैं अभी …………..अब जब उठेंगी तब उनकी उन्मादजन्य स्थिति ……….ओह ! मैं रो पड़ी थी।
नहीं नहीं …….ये झूठ है …….कह दो ना भैया ! ये झूठ है !
ऐसी सूचना क्यों देते हो तुम ! अब मैं ये बात अपनी स्वामिनी को कैसे बताऊँ ?
मत बताओ ! पर ललिता ! मैने तुम्हे बता दिया है ………सच्चाई यही है । श्रीदामा भैया ये क्या कह गए !
मैं शून्य में ताकती रह गयी ……….मेरे कुछ समझ में नही आरहा था कि ये दूसरा वज्रपात हमारे ऊपर क्यों ?
हमारा राजा अब जरासन्ध ! ओह !
श्यामसुन्दर अपनें परिवार, समाज के सहित मथुरा छोड़कर जा चुके थे………..कहाँ ? पर ये बात श्रीदामा भैया नें हमें नही बताया ।
मैं किंकर्तव्य विमूढ़ सी हो गयी थी ……..क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ?
किससे कहूँ ?
हिलकियों से रो पड़ी थी मैं ……………धरती में अपना सिर पटक रही थी मैं …………..हाय ! ये क्या हो गया ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल-
🦚 राधे राधे🦚


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