!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 95 !!
उद्धव की वृन्दावन से अश्रुपूर्ण विदाई…
भाग 2
तब मुझ से नन्दबाबा नें ये सब कहा – “कृष्ण हमारा है” ये भाव हमारा और दृढ़ हो जाए……..बस हमें यही चाहिये ।
और भी बहुत कुछ कहना चाहते थे बाबा नन्द जी .. ……पर उनके आँसुओं नें उन्हें कुछ कहनें नही दिया …….अति भाव के वेग से उनका कण्ठ रुंध गया था ।
चादर मुँह में डालकर वो रो गए थे ।
सूर्योदय तो नही ……पर हाँ उजाला हो गया था, जब उद्धव नन्दबाबा के साथ स्नान से लौटकर नन्दभवन में आये थे ………..
ओह ! भीड़ बढ़ गयी थी पहले से ………
ग्वालों की भीड़ अलग, गोपियों की अलग , वृद्ध , बालक …….पक्षी भी आगये थे …..मोर , कोयल, तोता, बन्दर सब आगये थे ।
मैने वस्त्र धारण किया अपनें कक्ष में जाकर …………फिर मैं बाहर आगया था ………..पर जब मैं बाहर आया …….तब मुझे बड़े प्रेम से सब लोग देख रहे थे ………….
तुम जा रहे हो उद्धव ! मथुरा ?
श्रीराधारानी नें आगे बढ़कर पूछा ।
हाँ ……….मैं आप सबको बता चुका हूँ मेरे जानें का कारण ! उद्धव नें ये बात सबको सम्बोधित करते हुए कहा था ।
मैं भी इन छ महीनों में वृन्दावन का ही बन चुका हूँ ……..मैं आप लोगों का हूँ ……और आप लोगों की ओर से ही जा रहा हूँ मथुरा ………और मैं सच कहता हूँ कि – श्रीकृष्ण यहाँ आयेंगें !
उद्धव ! सुन ! ये माखन है……..मेरे कन्हाई को खिला देना ।
यशोदा मैया उद्धव को कभी गम्भीरता से नही लेतीं……….इन छ महीनों में उद्धव को पुत्रवत् मानकर ही वात्सल्य लुटाया है मैया नें ।
देख ! उद्धव ! ये माखन है……इसे तू कन्हाई को देना……..कहना उसकी मैया नें भेजा है उसके लिये …………..अपनें सामनें ही खिलाना उसे ……उद्धव ! कहना उसकी मैया उसको बहुत याद करती है …..अपना ख्याल रखे वो …..कहना – खाया कर ……दुबला पतला मत होना ………….रो गयीं ये कहते हुये मैया यशोदा ।
माखन को हाथों में लिया उद्धव नें ।
उद्धव !
श्रीराधारानी नें आगे आकर कहा – हमारे “प्रिय” से कहना –
हे व्रजचन्द्र ! तुम वृन्दावन को अंधकारमय करके ……..वर्तमान में मथुरा के आकाश में उदित हुए हो ………पर एक हमारी प्रार्थना है कि नाथ ! कलंक के डर से हम वृन्दावन वासियों का त्याग मत करना ………रो गयीं श्रीराधारानी ये कहते हुए ।
चन्द्रमा भी तो कहाँ परित्याग करता है …..अपनें देह में लगे धब्बे का …
वह भी तो कलंक को अपनें वक्ष में धारण करके गगन में विचरते रहता है…उसे तो कोई कुछ नही कहता ……..हे श्याम सुन्दर ! हम भी तुम्हारी अंक -आश्रिता हैं ……हमें भी अपनें हृदय से दूर मत करो …….तुम्हे हमारे कारण कोई कलंक नही लगायेगा ।
उद्धव श्रीराधारानी के मुखारविन्द से ये सब सुनकर भावावेश में आगये …………और साष्टांग चरणों में लेट गए ………
हे स्वामिनी ! मैं इन चरणों को त्यागकर मथुरा नही जाता ……..मैं तो वृन्दावन वास का ही संकल्प ले चुका हूँ ………..बस मैं “उन्हें” वृन्दावन लाना चाहता हूँ ………….इसलिये जा रहा हूँ …………
उद्धव ! तुम ये बात , बार बार क्यों कह रहे हो भाई !
श्रीराधारानी नें उद्धव को बीच में टोका ।
कि “मैं आप लोगों के लिये उन्हें लेकर आना चाहता हूँ …..इसलिये जा रहा हूँ “……ये बात उद्धव ! तुम बहुत बार कह चुके हो ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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