!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!
( प्रेम नगर 41 – “जहाँ ‘ना’ ही ‘हाँ’ है” )
गतांक से आगे –
यत्र निषेध एव विधि : ।।
अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) निषेध को ही विधि माना गया है ।
एक झाँकी का दर्शन करें ….इससे ये सूत्र आपको स्पष्ट हो जाएगा ।
कौन ?
श्याम सुन्दर के विलम्ब में आने के कारण मान में बैठीं श्रीराधा ने भीतर महल से ही पूछा ।
श्याम सुन्दर ने कहा …मैं मधुसूदन ।
श्रीराधा बोलीं ….फिर जाओ , फूलों में बैठो मधुसूदन ( भँवर) हो तो …यहाँ क्यों घूम रहे हो ।
दुखी श्याम सुन्दर जैसे ही लौटने लगे ….श्रीराधा भीतर से फिर बोलीं …ओह ! तो जा रहे हो ? हाँ जाओगे ही …..आज किस फूल को चुना है ? श्याम सुन्दर रुक गए । तो श्रीराधा कहती हैं …रुके क्यों हो ? जाओ ….मेरे पास क्या मिलेगा तुम्हें, श्याम सुन्दर के समझ में नही आया कि करना क्या है ? हे राधे ! मैं समझ नही पा रहा कि मैं रुकूँ या जाऊँ ? श्रीराधा भीतर से फिर कहती हैं….हाँ , अब क्यों समझोगे ? समझने की आवश्यकता ही क्या है ? मैं कौन हूँ ? मुझे क्यों समझना ? जिसे समझना हो उसे समझो । श्याम सुन्दर खड़े हैं वो अब जा नही पा रहे । श्रीराधा भीतर से बाहर आयीं तो श्याम प्रसन्न हो गये और आलिंगन करने के लिए जैसे ही आगे बढ़े ….नही , मुझे छूना नही । श्याम सुन्दर रुक गये । क्यों रुक गये ? श्रीराधारानी तत्क्षण बोलीं । हे राधे ! तुमने कहा ना …मत छूओ । वाह ! कब से मेरी बात मानने लगे हो श्याम सुन्दर ! ये सुनकर श्याम सुन्दर फिर आगे बढ़े और दोनों बाँहें जैसे ही फैलाईं ….ना , दूर खड़े रहो , मेरे पास में मत आना , तुम्हारे जैसे भ्रमरों का मेरे यहाँ काम नही है । श्याम सुन्दर सोच में पड़ गए कि करना क्या है ? तब श्रीराधारानी बोलीं ….अब रसिक शेखर को मुझे समझाना होगा कि …प्रेम में “निषेध ही विधि”है ! ये सुनते ही श्याम सुन्दर ने अपनी बाहों में प्रिया जू को भर लिया ….तो प्रिया जू हंसते हुए बोलीं ….बस आलिंगन ही ….कपोल का स्पर्श मत करना ….श्याम सुन्दर ने मुस्कुराकर श्रीराधारानी के कपोल को भी चूम लिया था ।
हे रसिकों ! इस प्रेम नगर में ‘ना’ ही ‘हाँ’ है । ये अद्भुत सूत्र है ।
मत जाना श्रीवृन्दावन , मत जाना ।
वो एक फ़क़ीर था …था मुसलमान , पर अपना कन्हैया हिन्दू और मुसलमान तो देखता नही …वो तो कोमल शुद्ध हृदय ही देखता है ….ये आगरा जा रहा था दिल्ली से …बात है करीब पाँच सौ वर्ष पुरानी ….तो इस फ़क़ीर ने देख लिया अपने कन्हैया को ….और थोड़ा मुस्कुरा भी दिया अपना कन्हैया …बस फिर क्या था …अरब देश का फ़क़ीर था …हो गया इस सुन्दर से कन्हैया के पीछे पागल …..सब छूट गया इसका ….मजहब , मजहब के नियम क़ानून …सब छूट गया । वो अब बैठा रहता है श्रीवृन्दावन की सीमा में …..कृष्ण कृष्ण कृष्ण, कहता है …और मस्त नाचता है ….इसके मजहब वालों ने सोच लिया है …कि ये पगला गया ….जैसा प्रेमियों के विषय में सोचा जाता है । अब ये श्रीधाम की सीमा में रहता है …और जो जो श्रीवृन्दावन जाता है …उसे ये कहता है …ऐ मत जाओ वृन्दावन ! सुन रहे हो …हर जगह जाओ …विश्व में बहुत सी जगह हैं ..वहाँ जाओ …पर वृन्दावन मत जाओ । वो मना करता है और हँसता है । जाने वाला उससे पूछता है …..भई क्यों न जायें वृन्दावन ? तो इसका उत्तर होता है …वहाँ एक चोर रहता है …वो लूट लेगा तुझे …ये कहते हुए फ़क़ीर हँसता है । पर पथिक फिर भी नही मानता । तो वो कहता है …ठीक है , जाओ वृन्दावन किन्तु उस लड़के की ओर मत देखना …वो लूट लेगा ।
वो पथिक हँसता है तो फ़क़ीर कहता है …ठीक है लड़के कि तरफ़ देखो तो भी चलेगा किन्तु वो तुम्हें देखकर अपनी फेंट से बाँसुरी जैसे ही निकाले …उसी समय अपने कान में उँगली दे देना ।
वो पथिक पूछता है ….क्यों ? तो वो फ़क़ीर उत्तर देता है ….उसकी बाँसुरी में ही कोई जादू है …अगर तुम्हारे कान में उसकी बाँसुरी ध्वनि पड़ गयी तो फिर तुम किसी काम के नही रहोगे …..तुम बर्बाद हो जाओगे ….वो चोर बाँसुरी बजाकर ही लोगों को लूटता है …वो तुम्हारा सब कुछ लूट लेगा ….तुम्हारा परिवार तुमसे छूट जाएगा …तुम्हारे नाते रिश्ते सब टूट जायेंगे …बस मेरी तरह तुम भी फ़क़ीर बन जाओगे । इसलिए वृन्दावन मत जाओ ।
ये क्या है ? ये ‘ना’ में ‘हाँ’ है । वो फ़क़ीर कहना चाहता है ..कि श्रीवृन्दावन ही तुम्हारे लिए श्रेय का साधन है …नही नही …साधन नही , साध्य ही हैं …वहीं जाओ । किन्तु ये प्रेमनगर की भाषा है …कि ना , और ‘ना’ का अर्थ ‘हाँ’ ही होता है ।
नित्य निकुँज में , प्रिया प्रियतम एकान्त में विराजमान हैं …सखियाँ लता रंध्रों से निहार रही हैं ।
श्याम सुन्दर के हाथ बढ़ रहे हैं प्रिया जू के कपोल की ओर ….तो प्रिया जू हाथ को झटक देती हैं …किन्तु श्याम सुन्दर फिर अपने हाथों को आगे बढ़ाते हैं …तो प्रिया जू उनके कर पकड़ कर अपने कपोल में स्वयं लगाती हुई कहती हैं …क्यों , समझ में नही आता …मुझे क्यों छू रहे हो ।
श्याम सुन्दर समझ गये हैं …मिथ्या कोप दिखा रही हैं प्रिया जू …श्याम सुन्दर झुक कर अब अधर रस का पान करने लगे हैं ….ना , हटो …दूर जाओ मुझ से …ये कहते हुए प्रिया जी ने पीताम्बर पकड़ ली है और अपनी ओर श्याम सुन्दर को खींच रहीं हैं । इसी बीच श्याम सुन्दर के कर प्रिया जू की कटि में चले गये …और करधनी का स्पर्श हुआ ….प्रिया जी ने श्याम सुन्दर के हाथों को पकड़ लिया ….श्याम सुन्दर अधर रस का पान कर रहे थे …इधर हाथों को प्रिया के हाथों ने रोक दिया है …किन्तु हाथों को झटका नही है …पकड़े ही रखा है ….फिर स्वयं ही अपनी करधनी से श्याम सुन्दर के कर का स्पर्श करवाती है …करवाते हुए फिर हाथों को हटाती हैं …फिर स्पर्श करवाती हैं । ओह ! ये झाँकी बड़ी दिव्य है ।
हे रसिकों ! ये प्रेम नगर है …यहाँ की सब उल्टी रीत है….’ना’ कहना , यहाँ ‘हाँ’ ही है ।
ये बात रसिक जन ही समझते हैं ।
शेष अब कल –


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