Niru Ashra: 🍃🍃🍃🍃🍃🍃
“श्रीराधाचरितामृतम्” 122 !!
जय जय नित्यविहार
भाग 3
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तैयार हो गए दोनों युगलवर ………सज धज कर तैयार हो गए ।
सखियाँ सब नजर उतारती हैं ……….जल का पात्र घुमाकर खुद पी जाती हैं ………..ताकि नजर न लगे ।
आहा ! दर्शन करते हुए देहभान भूल रही हैं सखियाँ …….पर सम्भाले हुए हैं अपनें आपको …………हम ही अगर इस प्रेम सिन्धु में डूब गयीं …..तो इन्हें कौन बचाएगा ! ये हमारे दोनों युगल हैं …..ये जब देखो तब प्रेम रस में मत्त रहते हैं ……इन्हें कौन संभालेगा ? इसलिये सखियाँ सब सावधान हैं ………अपनें आपको सम्भालती हैं ।
अर्जुन ये सब देख रहे हैं और स्तब्ध हैं ।
अरी सखियों ! एक बात तो बताओ !
हँसते हुए श्याम सुन्दर नें सखियों से पूछना चाहा ।
हाँ हाँ पूछो प्यारे ! क्या पूछना है ?
सखियाँ नें एक स्वर में उत्तर दिया ।
पर न्याय सही कौन करेगा ? हूँ…….कुछ देर सोचनें के बाद बोले –
ललिता जू ! आप ही हमारा न्याय कर दीजिये ।
ये बात अर्जुन नें देखी ………….हाथ जोड़ रहे थे श्याम सुन्दर ललिता सखी के …….और बड़े आदर के साथ कह रहे थे ।
हाँ हाँ पूछो प्यारे ! क्या पूछना है ?
ललिता सखी नें मुस्कुराते हुए कहा ।
अर्जुन को बड़ा आनन्द आरहा था ।
ललिता जू ! ये तो बताओ कि …….बेसर (बुलाक) किसकी ज्यादा अच्छी है …….मेरी या मेरी श्रीजी की ?
ललिता मुस्कुराईं …….श्रीजी की ओर देखा …….श्रीजी नें मुस्कुराते हुए ललिता सखी को ….फिर अपनें प्यारे को देखा था ।
और हाँ …….हे ललिते ! सावधान ! अपनी स्वामिनी का पक्ष मत लेना …..बस इतनी सी प्रार्थना है । श्याम सुन्दर नें ये बात भी कह दी ।
ललिता सखी की ओर सबका ध्यान था ……..
ललिता सखी नें आगे आकर कहा ………….बुरा मत मानना प्यारे ! बेसर तो दोनों की ही अच्छी है …..पर थोड़ी झुकी हुयी श्रीजी की है ….इसलिये बेसर तो हमारी श्रीराधा रानी की ही ज्यादा अच्छी है ।
ना ! गलत बात ललिता सखी ! …….”तुमनें पक्ष तो अपनी स्वामिनी को ही लियो है”……ये कहकर अपनी प्यारी श्रीराधा रानी की ओर देखा ।
श्रीराधारानी मुस्कुराईं ……….बस इसी मुस्कुराहट में ही बिना मोल के न्यौछावर हो गए श्याम सुन्दर …..और दोनों गले लग गए थे ।
चारों ओर से जयजयकार गूंजनें लगी ……….”जय जय श्रीराधे”
आरती सजाकर रंगदेवी लाईं ………………चँवर लेकर विशाखा खड़ी हो गयीं ………..जल की झारी लेकर सुदेवी खड़ी हैं ।
ललिता सखी घण्टा नाद करते हुए आनन्दित हो रही हैं ।
निकुञ्ज की यूथ की यूथ सखियाँ पता नही कहाँ से आगयी थीं ……इनकी संख्या अनन्त थी …………..अर्जुन दर्शन कर रहे हैं और रोमांचित हो रहे हैं ………………
ओह ! ये क्या ? मेरा इतना बड़ा सौभाग्य !
अर्जुन के नेत्रों से प्रेमाश्रु बह चले …………..क्यों की ललिता सखी नें आगे बुला लिया था अर्जुन को फिर…….रंगदेवी नें मुस्कुराते हुए अर्जुन के हाथों में आरती की थाल दे दी थी ……..और अब तो अर्जुन गद्गद्भाव से आरती करनें लगे ………………
“बनी श्रीराधामोहन जू की जोरी
इंद्रनीलमणि श्याम मनोहर सात कुम्भ तन गोरी !
भाल विशाल तिलक हरि कामिनी, चिकुर चन्द्र बिच रोरी !!
गज नायक प्रभु चाल गयन्दनी, गति बृषभान किशोरी !
नील निचोल युवती मोहन पट, पीत अरुण सिर खोरी ।।
अर्जुन के आनन्द का ठिकाना नही था ……..सखियों नें आरती करनें के बाद जयजयकार किया ।
अब वन विहार में जायेंगें प्रियाप्रियतम ।
शेष चरित्र कल –
🍁 राधे राधे🍁
Niru Ashra: 👏👏👏👏👏
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 123 !!
“युगलतत्व” – एक दिव्य झाँकी
भाग 1
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“निकुञ्ज”, जिसे दिव्य वृन्दावन भी कहते हैं ।
भक्ति शास्त्रों में और रसिक सन्तों नें इस निकुञ्ज का वर्णन विस्तार से किया है …….महामणियों से विभूषित पञ्च योजन विस्तृत है ।
ऐसे दिव्य निकुञ्ज में सर्व प्रकार की सिद्धियाँ सहज सुलभ हैं …..निकुञ्ज की शोभा देखकर नेत्र शीतल हो जाते हैं…..सुखपुञ्ज निरन्तर बरसता ही रहता है यहाँ….और काल की गति यहाँ नही है ।
प्रेम और सौन्दर्य का ये धाम, दिव्य और अद्भुत है ……..कौन ऐसा होगा जो इसकी चर्चा करना और सुनना नही चाहेगा !
“सनत्कुमार संहिता” नामक ग्रन्थ में, भगवान शंकर के सखी भाव से निकुञ्ज के दर्शन करनें का प्रसंग आता है………और उस समय भगवान शंकर नें निकुञ्ज में आठ सौ कुञ्जों के दर्शन किये ।
पर इनके अलावा पच्चीस कुञ्ज और हैं ……..जहाँ केवल अष्ट सखियों का ही प्रवेश होता है…….और हाँ “सनत्कुमार संहिता” में वर्णन आया है कि…..108 कुञ्ज शुरू के ऐसे हैं ….जहाँ शुद्ध प्रेम वाले जीवों का आवागमन सरल है…….वहाँ तक जा सकते हैं सामान्य मुक्त जीव भी ।……जैसे अर्जुन…..अभी आये हैं निकुञ्ज में ।
श्वेत पीत हरित मणियों जैसे फूल खिले हैं …………और इन फूलों की भरमार है …………….सुगन्ध तो यहाँ की हवा में ही है …….।
एक दिव्य पीठ है ……….दिव्य मणि माणिक्यों से सजा एक सिंहासन है ………जिसकी शोभा का वर्णन कर पाना असम्भव ही है ।
उस सिंहासन में ही युगल सरकार विराजते हैं……..बाम भाग में श्रीराधिका जी और दाहिनें भाग में श्रीश्याम सुन्दर ।
इनके चारों ओर रंगदेवी ललितादि अष्ट सखियाँ रहती हैं ………..जो कोई चँवर ढुराती हैं ……तो कोई अन्य सेवा में लगी रहती हैं ।
युगल तत्व क्या है ?
“श्रीराधा और कृष्ण …….यही दोनों युगलतत्व हैं” ।
जब ब्रह्म एक है……..फिर यहाँ दो तत्व कैसे ?
“ब्रह्म एक ही है……ब्रह्म एक ही था……पर उसी ब्रह्म को विहार करनें की इच्छा हुयी……. विहार करनें के लिये तो दो की जरूरत होती है……..तभी ब्रह्म से ही, उसी की आल्हादिनी शक्ति श्रीराधा का भी प्राकट्य हुआ ” ।
श्री कृष्ण ब्रह्म हैं तो, श्रीराधा कौन हैं ?
“कह तो दिया ब्रह्म की ही आल्हादिनी शक्ति श्रीराधा हैं ।
शक्ति और शक्तिमान दो नही है…..शक्ति है तभी शक्तिमान है ।
ऐसे ही राधा है तभी कृष्ण है ……और कृष्ण है तभी राधा है ।
अभेद सिद्ध हुआ की नही ? अद्वैत सिद्ध हुआ कि नही ?
दो होते हुए भी, दो नही है……द्वैत लगता है …पर वास्तव में है अद्वैत” ।
ये अष्ट सखियाँ क्या हैं ?
ये अष्टधा प्रकृति ही अष्ट सखियाँ हैं……आठ प्रकार की प्रकृति कही गयी है ना ? तो ये मुख्य अष्ट सखी अष्ट प्रकृति ही है ।
तो ऐसा दिव्य निकुञ्ज है ………जहाँ नित नव मंगल लीलाएं होती रहती हैं ………ऐसे निकुञ्ज में सखियों की आयु 12 वर्ष से लेकर 15 वर्ष तक ही होती है ………इससे बड़ी कोई सखी नही होती ।
काल की गति नही है जहाँ ………..वहाँ ये सब होना आश्चर्य नही है ।
स्वयं श्रीराधारानी की आयु 14 वर्ष है….और इतनी ही रहती है ….. …. श्याम सुन्दर की आयु 15 वर्ष है…ये इससे बड़े होते नही हैं । ….नित नव उल्लास से भरा रहता है ये निकुज्ज ।
एक झाँकी का दर्शन कीजिये ………निकुञ्ज की झाँकी ………
और “युगलतत्व” क्या है ये भी समझ में आ जाएगा आपलोगों के ।
अर्जुन इन दिनों निकुञ्ज में ही हैं…….
और इन लीलाओं का रसास्वादन कर रहे हैं ।
हे स्वामिनी ! हे कृष्ण प्रिये ! हे राधिके ! हे कृष्णबल्लभा !
आपसे मेरा एक प्रश्न है ……..अगर आपकी कृपा हो तो पूछूँ ?
हाँ हाँ ललिते ! पूछो ! मुस्कुराती हुयी श्रीराधिका बोलीं ।
आप युगल हैं ……..आप हैं और श्याम सुन्दर हैं……..ये युगल का रहस्य क्या है ? ललिता सखी नें शान्त भाव से पूछा था ।
हे ललिते ! तुम बोलती बहुत हो……..सूर्य का ताप कितना बढ़ गया है प्रातः ही में……थोडा शीतल जल तो पिला दो । श्याम सुन्दर नें हँसते हुए कहा ।
हाँ हाँ …..
…इतना कहकर ललिता सखी उस कुञ्ज से निकल कर बाहर गयी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🙌 राधे राधे🙌


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