Niru Ashra: !! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! परमानन्दोल्लास !!
गतांक से आगे –
हे रसिकों ! ध्यान करो ! अपनी भावनामयी सेवा में इन दिनों नित्य निकुँज में चल रहे इस ब्याहुला उत्सव में सम्मिलित हो जाओ । अपने हृदय में इन ललित दम्पति को विराजमान करके ब्याहुला का आनन्द लो । ये रस साधना दुर्लभ है ….ये श्रीवन में ही सुलभ है । ये भाव राज्य की साधना आपको उस राज्य में ही ले जाएगी ….जहाँ सुन्दर नित्य निकुँज है …लताएँ घनी और झुकी हुयी हैं ….उनके पत्ते भी चमक रहे हैं ….चित्र विचित्र पक्षी हैं …जिनके कलरव से ये निकुँज गूंजता रहता है । सखियाँ का अपना मण्डल है …अनेक मण्डल हैं ….एक एक मण्डल की एक प्रमुख सखियाँ हैं …जो प्रधान हैं । उस मण्डल की सखियाँ अपनी प्रधान सखियों के पीछे ही रहती हैं । सबकी सब सखियाँ अत्यंत सुंदरी हैं …रसमयी और रंगमयी हैं । अच्छा , अगर देखा जाये तो मूल रूप से सबकी सब प्रियाप्रियतम के हित के लिए ही कार्य करती हैं ।
इन दिनों ….विवाह उत्सव चल रहा है नित्य निकुँज में , उन्मत्त- उन्मद हैं ये सब सखियाँ ।
जैसे कोई रस लोलुप रस को ही पीना चाहता है …रस को बड़े आनन्द के साथ …घूँट घूँट करके पीता है ….एक एक बूँद में परम आनन्द का अनुभव करता जाता है …ऐसे ही यहाँ की सखियाँ हैं ….ये रस रूप युगलवर की रसीली झाँकी को अपने नयनों के कटोरे में भरकर बूँद बूँद पीती हैं …जल्दी क्या है ? ये लीला तो अनन्तकाल तक चलती रहेगी …चलती रही है । अजी , अनन्त ब्रह्मा शंकर बदल गये ..किन्तु सखियों ने एक झाँकी भी अभी तक दिल भरके देखी नही है ।
हे रसिकों ! चलिए ……उसी ब्याह मण्डप में …..जहाँ परमानन्द का उल्लास चल रहा है ।
॥ दोहा ॥
निहारें श्रीहरिप्रिया कौं बाढ़ी अद्भुत काँति ।
रचना रचत बितान की सहचरि बिधि बिधि भाँति ॥
बिबिधि भाँति रचना रची लियें ललन कौ रुख ।
सहज सँवारी सौरभा बेदी सरस जु सुख ॥
!! पद !!
सुखबेदी सौरभा सँवारी, बिबिध भाँति रचना रचि भारी।
बना बनी दोउ बने बनाये, सुखद सहेलीजू पधराये ।
चारुमुखी चहुँओरनि ठाढ़ी, अलबेली अनुरागनि बाढ़ी।
रंग सुदेवी चौंर दुरावैं, ललित बिसाखा लाड़ लड़ावैं।
चंपलता चित्रा छबि निरखें, ब्याह बिनोदनि बरषा बरखें।
तुंगविद्या इंदुलेखा तनमें, उमँगी आनँद मात न मनमें।
नित प्रति नेह नवीनी जोरी, श्रीहरिप्रिया किसोर किसोरी ॥१५६॥
ये नव दुलहा दुलहिन आज बड़े ही सुन्दर लग रहे हैं …..इस भेष को देखकर सखियों के आनन्द का ठिकाना नही है …वो मत्त हो रही हैं …..युगल दम्पति के अंगों से कांति प्रकट हो रही है …उसी कांति से नित्य निकुँज भी जगमगा रहा है ….चारों ओर रस ही रस फैला हुआ है …इस अति आनन्द के कारण सखियों का उत्साह और दुगुना हो गया …इसलिए ही वो ब्याह मण्डप को और सजाने लग गयी हैं …..उस मण्डप में सुन्दर रचना करने लगीं हैं …..रचना ऐसी कि देखते ही बने । ब्याह वेदी …..ये तो और सुन्दर बना दिया ….युगल सरकार देखते हैं और मुस्कुराकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं ……सखियों को और चाहिए क्या !
सखियों ने जब देखा कि युगलवर हमारी सजावट से प्रसन्न हो गये हैं …तो सखियाँ फिर लग गयीं ….सरस और सौरभ से युक्त वेदी तैयार कर दी …ब्याह की वेदी तो थी …किन्तु सखियों ने उसे और सुन्दर सजा दिया । जिस वेदी पर सौन्दर्य के अधिपति विराजमान हों …तो वेदी भी सौरभ से युक्त होनी ही चाहिए । अच्छा , वेदी बनाते समय युगलवर को दूसरे कुँज में ले जाया गया था ….और जब फिर से मण्डप वेदी तैयार हुयी तब हरिप्रिया सखी ने कहा …”अब दुलहा दुलहन को लेकर आओ”…..बस फिर क्या था ….उधर से सुन्दर सुकुमार कोटि काम के मद को दमन करने वाले पधार रहे थे ….सखियों ने देखा ….ये युगल का सौन्दर्य तो और बढ़ गया था …..युगलवर को देखते ही हरिप्रिया सखी तो नाच उठीं …..सखियों ने गीत गाने आरम्भ कर दिये ….आहा ! सुन्दर सुन्दर सखियाँ इन युगल को घेर कर चल रही हैं …..श्रीरंगदेवि सखी और श्रीसुदेवी सखी ये दोनों चँवर ढुराते हुए चल रही हैं । श्रीललिता जी और विशाखा जी आगे आगे लाड़ करती हुयी बढ़ रही हैं ….श्रीचम्पकलता जी और चित्रा जी ये साथ में चल तो रही हैं ..किन्तु निहारने में ही मग्न हैं …..यानि ये दोनों सखियाँ युगलवर को निहारते हुये चल रही हैं ।
पुष्पों की वर्षा आरम्भ हो गयी है …..पुष्प बरस रहे हैं ….चारों ओर सुगन्ध फैल रहा है । श्रीतुंगविद्या और इंदूलेखा ये सखियाँ छत्र लेकर चल रहीं ….दो चल रही हैं ….क्यों की एक अतिआनन्द के कारण अगर अशक्त हो गयीं तो दूसरी उसे सम्भाल लेगी । ये हो भी रहा है – कभी श्रीतुंगविद्या छत्र पकड़ रही हैं तो कभी इंदूलेखा । एक आनन्द की बाढ़ आगयी है इस समय निकुँज में तो । चारों ओर गीत संगीत बज रहे हैं …जय जय की मंगल ध्वनि सखियों के द्वारा हो रहा है …..सखियाँ मत्त हैं ….सखियाँ के प्राण धन का आज ब्याहुला है ….इसलिए इनका सुख वाणी का विषय कैसे हो सकता है । हरिप्रिया सखी नृत्य करते करते गिर गयीं हैं ….वो हंस रही हैं ….उनकी सखियों ने उन्हें सम्भाला है ….तब हरिप्रिया कहती हैं …..ये जोरी तो प्रेम की नवीन जोरी है …..वैसे सनातन जोरी यही है ….किन्तु सखियों ! ये सनातन होने के बाद भी नवीन है ….एक किशोर हैं और एक किशोरी हैं …..ये कहते हुये हरिप्रिया जू आह भरती हैं …..उसी समय साथ में चल रहीं अष्ट सखियाँ युगल सरकार को मण्डप में विराजमान कर देती हैं ।
बोलो दुलहा दुलहिन सरकार की ….जय जय जय जय ।
आज तो पूरा “नित्यनिकुँज” परमानन्द के उल्लास से उल्लसित हो उठा था ।
क्रमशः ….
Niru Ashra: !! दोउ लालन लाड़ लड़ाओ री !!
!! प्रेमोत्सव की उदधि में बाढ़ !!
गतांक से आगे –
उफ़ ! ये प्रेम , उस पर भी प्रेम का उत्सव , और उत्सव के सिन्धु में भी बाढ़ !
अब इससे कोई बच सकेगा ! ये सखियाँ हैं जो उत्सव की रचयिता हैं ….उत्सव की रचना करना इन्हें भली आती है …श्रीकिशोरी जू दुलहन बन कर बैठी हैं …अब ये श्रीकिशोरी जू कौन हैं ? अजी ! माधुर्य सार सर्वस्व की अधिष्ठात्री हैं ….इतना ही नही , लोकोत्तर प्रेम विलास वैभव की ये निधि हैं …जो दुलहन बन कर आज बैठी हैं । और दुलहा कौन बनें हैं ? श्याम सुन्दर । ये श्याम सुन्दर कौन हैं ? परमानन्द के उदधि में खिला – जिसे आज तक किसी ने सूँघा भी नही है ..वो कमल हैं । आप इतना ही समझिए कि दोनों प्रेम के ही रूप हैं …एक हैं …किन्तु अभी दो होकर रस का विस्तार कर रहे हैं , सखियाँ उस प्रेम सागर की लहरें हैं, जो प्रेम सिन्धु में उठती और बैठती हैं । यहाँ सब अभिन्न हैं ,किन्तु लीला के लिए सब भिन्न भिन्न बने हैं ,भिन्न भिन्न रूपों में रूपायित हो रहे हैं।
अरे रसिकों ! निकुँज में …”मगन मन प्रेम आनन्द उदधि में”……जी ! मन के लिए परेशान हो …तो परेशान मत होईये …..इस पट्ठे मन को निकुँज के प्रेमानन्द के सागर में डुबो दीजिए , बस ..अपने आप शान्त हो जायेगा । इसलिये चलो मेरे साथ , चल रहे उस ब्याहुला उत्सव में …जहाँ रस ही रस का सागर उछल रहा है ….अजी ! सागर में बाढ़ आगयी है । सागर में बाढ़ ? जी , चलिए अब ।
॥ दोहा ॥
कुंवरि किसोरी रंगरली दिव्य सुललित बिसेख ।
चंपक तन चित्रा इंदू तुंगविद्या बरबेख ।
तुंगविद्या बिद्यानिपुन भाँवरि-भेद-प्रवीन ।
रसिक भाँवते ब्याह के चार करत सुखलीन ॥
रसिक भाँवते दुहुन कौं रिझवत रचि बिधि ब्याह ।
विदित सकल विद्या भली अली तुंगबिद्याह ॥
!! पद !!
तुंगविद्या बिदितसकल बिद्याभली।
भाँवतेदुहुनकी रसिक भाँवती अली ॥
रचे सिर मौर मौरी बितन जितन कें, तिलक दै रोरि अछित लगाये।
ब्याह बिधि बिस्तरत बेदी बैठाय दोउ बना अरु बनी बनेई बनाये ॥
है पुरोहित रुचिर रिचा उचारत सखि एक गठजोर भाँवरि फिराये।
सकल सुर साछि करि करन रचवाय रँग छोर हथरेव सब सुख कराये ॥
मंजुमेधा सुमेधारु तनमेधिका मधुरेछना सखी मधुस्यंदा ।
गुननिचूड़ा बरांगदा मधुर माधुरी मोदमदनालसा रसानंदा ॥
चहुँओरनि खरी निज प्रिया सहचरी भरी अनुराग अँग रंग बोरी।
हिये उमदात कोउ आतपत्रे लियें चौर ढोरै कोऊ गात गोरी ॥
कोउ बीरी बिरचि देत मुख जुगलकें कोउ बिथुरीन अलकें सँवारें ।
कोऊ दृग अंजि करकंज अँगुरीन करि कोउ मनरंजनी छबि निहारै ॥
चंद्रिका चारु चूड़ा चतुरि चित्रनी चंद्रकांता चंचला चकोरी ।
कोमला केतकी कामरसकंदला केलि कस्तूरि कामा किसोरी ॥
कोऊ लै मुकर ठाढ़ी सखी सनमुखै कोऊ निज नैंन के फलहिं लेखें।
कोऊ अनुरागिनी बाल के भालपर ललित लालहिं लखै रहि निमेखें ॥
मगन मन प्रेम आनंद के उदधि में मुदित मुखकंज अति उदित ओपैं।
निरखि श्रीहरिप्रिया वदनवरचंद्रमा चारु चहलें न कहि जात मोपैं ॥ १५७॥
दिव्य निकुँज सज गया है ….ब्याह मण्डप की छटा अलग ही दीख रही है । उसी ब्याह मण्डप में दुलहन के भेष में लावण्य सम्पदा की निधि श्रीकिशोरी जू विराजमान हैं …उनके अंग से अद्भुत दिव्य दामिनी की रश्मियाँ प्रस्फुटित हो रही हैं ….जिससे निकुँज जगमग कर रहा है ।
श्रीकिशोरी जू के आस पास सखियाँ खड़ी हैं ….श्रीचम्पकलता , श्रीचित्रा , श्रीइन्दुलेखा , और तुंगविद्या आदि आदि ….ये सब ऐसे ही नही खड़ीं …अपनी स्वामिनी श्रीकिशोरी जू को इन्हें और सजाना है …अब और कितना सजाना है ? ये सखियाँ कहती हैं …”जब तक श्याम सुन्दर इनको देखते हुए देह सुध न भूल जायें”…..ये बात हरिप्रिया ने अपनी सखियों से कही थी।
दुलहन की मेहंदी लग रही है हाथों में …और मेहंदी लगाने की सेवा श्रीचम्पकलता जू ने ली है ….हाथों में ही नहीं चरणों में भी …..वैसे ही सुवर्ण की तरह तपता हुआ गौर वर्ण है इनका …उसमें भी हाथों में मेहंदी और हाथों में ही नही बाहों में भी ….और क्या रूप सौन्दर्य में उछाल आया था ।
आगे आयीं हैं श्रीतुंगविद्या सखी ….ये कौन हैं ? हरिप्रिया कहती हैं …ये ब्रह्मविद्या हैं ….ये ब्रह्म की पूर्ण ज्ञाता हैं ….वेद आदि का इन्हें पूर्ण ज्ञान है ….इसलिए ये आगे आयीं हैं …हरिप्रिया के मुख से ये सुनकर उनकी सखियाँ बोलीं …ओह ! तो ये श्रीतुंगविद्या जू इस विवाह की पंडिता हैं ! ये सुनकर सब हंसीं । हरिप्रिया बोलीं …जी , देखो ना , विवाह का जितना आचार होता है ये सब जानती हैं …और इन्होंने आरम्भ भी कर दिया है । श्रीचम्पकलता जू को कहा …”अब हो गया ये सब , अब ब्याह की विधि आरम्भ होगी”…..गम्भीर होकर श्रीतुंगविद्या जी बोलीं थीं । श्रीचम्पकलता जू ने अपना कार्य पूरा किया और वो पीछे जाकर खड़ी हो गयीं ।
ये श्रीतुंगविद्या सखी जू ….सकल विद्या में निपुण हैं ….ज्ञान , कर्म योग आदि के ये सभी रहस्य जानती हैं …..और इतना ही नही ….ये प्रेम के रहस्यों को जानने के कारण प्यारे और हमारी प्यारी जू की सबसे प्रिय सखी भी हैं । हरिप्रिया ने अपनी सखियों को ये भी बताया था ।
सब सखियाँ अब मौन होकर विवाह की विधि का आनन्द लेने लगीं ।
श्रीतुंगविद्या ने “मौरी”तैयार की …और बड़े जतन से दुलहिन प्यारी श्रीराधिका जू के और “मौर”दुलहा श्रीश्याम सुन्दर के सिर में धारण करा दिया । फिर श्रीतुंगविद्या दूर जाकर देखती हैं इन दोनों को …मौर मौरी ठीक से बंधे हैं या नही ….यही देखती हैं ….पूर्ण संतुष्ट होने पर श्रीतुंगविद्या ने थाल मंगाई …जिसमें रोरी अक्षत आदि था । सखियाँ लेकर आयीं और श्रीतुंगविद्या जू ने रोरी का तिलक दम्पति के भाल में , फिर अक्षत भी सजाकर लगा दिया । फिर देखती हैं , थोड़ा टेढ़ा मालूम हुआ तो अपने आँचल से सीधा कर देती हैं । अब इस तरह सजा धजा कर तैयारी के साथ दोनों को सुन्दर आसन में फिर बैठा देती हैं । सामने सुन्दर वेदी है …हंसते हुए श्रीरंगदेवि जू ने एक आसन श्रीतुंगविद्या जू के लिए भी लगा दिया और कहा …”पुरोहित जी ! आप यहाँ बैठिये”श्रीरंगदेवि जू की बात सुनकर पहले प्रिया जू हंसीं …फिर लाल जू हंसे …फिर तो पूरा सखी समुदाय ही हंस पड़ा । “पर दक्षिणा नही मिलेगी”….ये बात भी हरिप्रिया बोलीं थीं …इस बात से हास्य का और विस्तार हुआ । श्रीतुंगविद्या जू ने सबको शान्त रहने के लिए कहा …और वेद मन्त्रों का उच्चारण करने लगीं । पूरा निकुँज वेद मन्त्र से गूंज रहा था । तभी एक सखी-श्रीचित्रा सखी आयीं और प्रेम से गँठजोर कर वेदी की परिक्रमा युगल से करवाने लगीं । अन्य सखियों ने पुष्प बरसाने आरम्भ कर दिए ….जै जै जै जै जै …की ध्वनि होने लगी । वाद्य बजने लगे …शहनाई के स्वर ने उत्सव को और उच्च रंग से रंग दिया था । तभी देवताओं को साक्षी मानकर श्याम सुन्दर के हाथों में और श्रीकिशोरी जू के हाथों में जल दिया गया …संकल्प पढ़ रही हैं श्रीतुंगविद्या जी ….सखियाँ हंस रही हैं …विनोद खूब चल रहा है । श्रीतुंगविद्या कभी कभी सखियों को गम्भीर रहने के लिए कहती हैं …क्यों की उनके वेद मन्त्र पढ़ने में विक्षेप हो रहा है…पर ये क्यों गम्भीर रहें …और ऐसे अवसर में ? ये सब मत्त हैं …ये किसी की नही मानेंगी आज तो ।
तभी अनेक सखियाँ वहाँ आगयीं और श्रीकिशोरी जू के आस पास खड़ी हो गयीं । इनमें से कोई सुन्दर मेधा वाली हैं यानि मंजुमेधा , सुमेधा , तनमेधा , मधुरेछना, ये गुण हैं …और जो आकर खड़ी हो गयीं हैं ये इन्हीं दिव्य गुणों से युक्त सखियाँ हैं । ये विनोद कर रही हैं ..हास्य के द्वारा और युगल को प्रसन्नता प्रदान कर रही हैं । इनमें से ही एक सखी ने पंखा ले लिया और युगलवर को पंखा करने लगीं किसी ने चँवर ले लिया और वो ढुराने लगीं । एक गौर वर्ण की सखी है …वो प्रसन्न होकर पान बनाती है …पहले दुलहन को खिलाती है फिर वही आधा पान दुलहा सरकार के मुख में डाल देती है । ये झाँकी देखकर सब प्रमुदित हो उठे हैं । एक सखी तो अपनी पतली लम्बी उँगली से प्रिया जू के नयनों में अंजन लगा देती है । इससे इन कमल नयनी के नयनों की शोभा और बड़ गयी है । अनन्त सखियाँ जो इस ब्याहुला का दर्शन कर रही थीं ….वो सब “जै जै जै” का उच्च स्वर से उदघोष करने लगीं तो प्रिया जू ने वामा स्वभाव वश इधर उधर देखा ….दर्पण खोज रहीं थीं …तभी सामने के कुँज से कई सखियाँ और प्रकट हो गयीं ….इनके गुण इनके नामों को हरिप्रिया सखी ने बताया है । चंद्रिका , चारुचूड़ा , चन्द्रकांता , चंचला , चकोरी , कोमला , केलिकामा आदि आदि सखियाँ आकर श्रीप्रिया जू को दर्पण दिखाने लगीं …तो कोई दर्शन करते करते नाच रही है …तो कोई प्रिया जू के मस्तक में लगे रोरी का तिलक जिसमें से अद्भुत आभा प्रकट हो रही थी उसी को देखने में तन्मय हो गयी हैं । ये युगल सरकार भी प्रेम रस में डूब गये हैं …ये दोनों ही ख़ुशी से फूल गये हैं । दोनों ही प्रेमानन्द के सागर में डूब गये हैं …हरिप्रिया कहती हैं …सखियों ! जब मुखिया ही डूब जाये तो हम लोगों की क्या दशा होगी । अब तो सबको उन्मत्त होना ही था …तो सब मदमाति हो गयीं …कोई नाच रही हैं तो कोई अति आनन्द के कारण उछल रही हैं ।
हरिप्रिया सखी कहती हैं ….मेरी दृष्टि तो प्यारी दुलहन पर टिक गयी है …अरी सखियों ! अनन्त अनन्त रूप राशि को अपने में समेटे ये दुलहन क्या लग रहीं हैं ….काले काले घुंघराले , घने , केश पाश जो अपने इन दुलहा को बांधने के लिए तैयार हैं ….अहो ! ऐसी छवि का बखान , मैं और क्या करूँ !
इसके बाद श्रीहरिप्रिया मौन हो जाती हैं ।
क्रमशः….
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