Niru Ashra: !! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! रसिक दम्पति का परिणय महोत्सव !!
गतांक से आगे –
अरे ओ कमलों ! तुम और प्रसन्नतापूर्वक खिले रहो , पता है हमें , तुम सूर्य अस्त के बाद अपने को समेट लेते हो …किन्तु आज नही …आज तो महामहोत्सव है , आज तुम को खिले रहना है …फिर भी तुम्हें सूर्य की किरणें आवश्यक हैं तो हमारी प्यारी जू की चंद्रिका की ओर देख लेना …सूर्य की किरणें तुम्हें वहाँ से मिल जाएँगीं । अरे ! ओ तारे ! तुम लोग कितने हो …सब ही एक साथ क्यों नही चमकते ….देखो ! यही अवसर है ….सेवा में लग जाओ । इस उत्सव को और सुन्दरता प्रदान करो । अरे कोयली ! तू उत्सव के गीत गा ….देख ! हमारी स्वामिनी दुलहन बनीं हैं …..उनको तू कुछ तो गा कर सुना । ये सब आज जो बोल रही हैं , नई सखियाँ हैं ….जिनका आज इस ब्याहुला उत्सव में प्रवेश हो गया है ….हरिप्रिया जू ने इन सखियों को देखा …एक सखी का “प्रेम मंजरी” नाम था …इसके साथ आठ सखियाँ थीं …..जो प्रेम मंजरी के साथ ही प्रकट हुयी थीं । ये सब बहुत सुंदर हैं …..इनके अंग से कमल की सुगन्ध प्रकट हो रही है । ये ब्याहुला उत्सव के लिए ही आयीं हैं । आयीं क्या कहें ? प्रकट हुयी हैं ….क्यों की यहाँ आना जाना नही है ।
श्रीहरिप्रिया से ये सब गले मिलीं ……….फिर सेवा में लग गयीं ।
सुन्दर दुलहा और दुलहिन ब्याह मण्डप पर विराजमान हैं । सखियाँ उन्मत्त होकर नाच गा रही हैं ।
॥ दोहा ॥
राजें री दोउ रंगभरे, दूलहै श्री दुलही।
सोभा सरस निहारिकें, अलबेली उलही ॥
उलही बेलि अनंद की अद्भुत सोभा पेखि ।
दूलह दूलहनि लालकी, रंगभरि छबि देखि ।
॥ पद ॥
देखि देखि छबि दूलह दुलही ।
उर में आनंद-वेली उलही ॥
भाँति भाँति दम्पतिहि रिझावैं । रसरंगनि बरषा बरषावैं ॥
भाँना रीति भाँति बिस्तारै। सुभगा साखाचार उचारै ॥
चिमतकारिनी चित्त चुरावैं। प्रेममंजरी प्रेम पुरावैं ॥
बृन्दारिका बधाई देत। नवल जुगल दूलह कें हेत ॥
रसिका राई लोन उतारें। आनंदा जू आरती वारै ॥
भद्रसौरभा भाग मनावैं। गुण गरबीली गारी गावैं ॥
*अरी सखियों ! देखो तो …हमारे दुलहा दुलहिन कितने सुन्दर लग रहे हैं ….वैसे दुलहा के भेष में तो सामान्य भी सुन्दर लगता है …फिर ये तो “मन्मथ मन्मथ” हैं …इनकी तुलना किनसे ?
हरिप्रिया आनन्द में विभोर हैं ….तन की कोई सुध नही है । वो बोल भी रही हैं तो ऐसे जैसे मधु भर पेट पी लिया हो ….जी ! मधु तो पीया ही है …युगल के अपार-अगाध सौन्दर्य का मधु , युगल के ब्याहुला रस का मधु , उत्सव और उमंग का मधु ।
और ये दम्पति प्रेम में रंगे हैं ना , इसलिए और ज़्यादा सुन्दर लग रहे हैं …हरिप्रिया कहती हैं ।
हाँ , देखो तो प्रेम साक्षात इनके बाम भाग में ही विराजमान हैं …उनके कारण ही इनकी शोभा बन रही है । हरिप्रिया की बात सुनकर अन्य सखियाँ भी हर्षोंन्माद से भर गयीं ।
तभी देखते ही देखते अष्ट सखियाँ और प्रकट हो गयीं ….ये कौन हैं ? सखियाँ हैं ।
इन सबके हृदय में आनन्द की लता फूट गयी थी जो देखते देखते बढ़ती ही जा रही थी ।
हरिप्रिया जू ने देखा …एक सखी जो इनकी प्रमुख थीं …उनका नाम था …”प्रेम मंजरी”…ये गम्भीर थीं …गौर वर्ण था इनका और पीली साड़ी पहनी हुयी थीं । ये क्यों आयीं हैं ? ये प्रश्न नही उठना चाहिये …अरे ! “भाँति भाँति दम्पति ही रिझावै”….अपने इन रसिक दम्पति को रिझाने आयी हैं ….और क्या । इनके साथ में एक सखी हैं जिनका नाम है “सुभगा”….ये तो विचित्र हैं …वेद मन्त्र पढ़ते हुए युगल की परिक्रमा लगा रहीं हैं ….उनके हाथों में एक सुन्दर सा शंख भी है , वो बजा रही हैं …और वेद मन्त्र का उच्चारण भी कर रही हैं । आहा ! इससे तो निकुँज का वातावरण और सरस-गम्भीर हो उठा था । रस तो यहाँ है ही …किन्तु गम्भीर रस के होने से अब तो जो डूबेगा वो अपने को बचा नही पाएगा । एक सखी और हैं इनके साथ …हरिप्रिया कहती हैं …इनका नाम है “चमत्कारिनी सखी”….ये सेवा परायण हैं …ये सेवा करके ही युगल को रिझाना जानती हैं । सबने देखा कि ये सखी ….कभी प्रिया जू के पास जा रही हैं और कान में कुछ कहती हैं ….तो प्रिया जू हंसने लग जाती हैं ….लाल जू की ओर संकेत करती हैं हंसते हुए प्रिया जू …तो वो चमत्कारिनी सखी लाल जू के पास जाकर कान में ही कहती हैं ….लाल जू खुल कर हंसे नहीं …मंदमुस्कुराहट देकर गम्भीर हो गए । ऐसा क्या कहा इन सखी जू ने ? अन्य सखियाँ हरिप्रिया से पूछती हैं …तो हरिप्रिया उत्तर देती हैं ….”प्यारी जू ! आप इतनी गोरी हैं किन्तु लाल जू तो कारे हैं”…..ये बात प्रिया जू के कान में कही थी …प्रिया जू ने श्याम सुन्दर को भी कहने के लिए कहा था ….इसी बात पर प्रिया जू हंसे जा रहीं हैं किन्तु लाल जू गम्भीर हो गये हैं । हरिप्रिया चंचल होती हुयी बोलीं ….ये तो ब्याह है , ब्याह में गारी नही हो तो ब्याह ही क्या ।
तभी एक सखी और दिखाई दीं …इनका नाम था “वृंदारिका सखी”….ये तो बस बधाई बाँटने का ही काम कर रहीं थीं …बधाई बाँट भी रही थीं और बधाई गा भी रहीं थीं । इनकी ही एक सखी और है ….जो राई नौंन लेकर आयीं और युगल दम्पति की नज़र उतारने लगीं …इनका नाम था “रसिका सखी” । और तभी “आनंदा जू” नामकी एक सखी ने इतनी सुंदर आरती की थाल सजाई ….उस आरती की शोभा ही अलग थी । वो आरती करते हुए नाच रहीं थीं । “भद्र सौरभा” नामकी सखी तो अपने भाग को मना रही है …..गर्व से फूल रही है । ये इतनी गदगद हैं कि इनसे कुछ बोला ही नही जा रहा । तभी हरिप्रिया जू ने देखा कि ये सब सखियाँ युगल के सामने बैठ गयीं हैं और गीत गाने की इनकी तैयारी है ….इन सखियों ने हरिप्रिया जू को भी अपने पास बैठाया …हरिप्रिया फिर अपनी सखियों को भी अपने पास बैठाती हैं …और सब मिलकर श्याम सुन्दर यानि दुलहा सरकार को गारी सुनाती हैं …गारी गाती हैं । युगल सरकार आनन्द से विराजे हैं और सखियों की गारी सुन रहे हैं l
Niru Ashra: !! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! आवौ री मिलि गारी गावैं !!
गतांक से आगे –
*ब्याह में गारी नही तो ब्याह कैसा ? अजी ! ये रसिक दम्पति तुम्हारे वेद मन्त्र से कब प्रसन्न हुए हैं ? ये तो प्रसन्न हैं तुम्हारी प्रेम भरी बोली से । अब उस प्रेम सनी बोली से चाहे तुम प्रार्थना करो या गारी दो ….इन्हें तो प्रेम चाहिए । ये प्रेम के ही भूखे हैं । और सखियाँ इनके रूप माधुरी की भूखी हैं ….इनका आहार भी तो यही है ….युगल की रूप माधुरी ।
आज निकुँज में प्रेम महामेघ अविश्रान्त “रस विनोद” की वर्षा कर ही रहा है …ये वर्षा इतनी बरस रही है कि पूरा निकुँज ही रस विनोद के जल में डूबने लगा । ये युगल को सुख दे रहा है ….और सखियों को क्या चाहिए ….युगल को सुख मिले ….और दम्पति को सुख मिला तो ये तो डूबी ही हुई है इस रस विनोद के अगाध जल राशि में । विवाह मण्डप में दम्पति विराजमान हैं …वो दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं …बस इनके मुस्कुराते ही कमल कुमुदिनी खिल उठती हैं …अनन्त अनन्त कमल-कुमुदिनी । चारों ओर सखियाँ हैं , उनके हिय में प्रेम ही प्रेम भर गया है ….ये गाती हैं , नाचती हैं , उत्सव को अति उत्साह से मानती हैं …इनका लक्ष्य केवल इन नवल दम्पति को सुख पहुँचाना है । सखियों के हृदय में स्नेह की धारा बहती है युगल के प्रति ….क्या कहें उस निकुँज के विषय में । चलिए , चलिए उस नित्य निकुँज में जहाँ ब्याहुला उत्सव मनाया जा रहा है । और और हाँ , आज सखियाँ गारी दे रही हैं ….जी । आप भी गाइये इन पदों को , श्रीमहावाणी जू के रस भरे पद हैं ये ।
!! गारी !!
आवौ री मिलि गारी गावैं, सुंदर श्याम रिझावैं री ।
श्याम सुन्दर के नैंन सलोने , लखि निज नैन सिरावैं री ।।
कहत तुम्हें सब स्यामसुंदर तुम कैसे सुंदर स्याम जू।
जानत हैं हमतौ तुम्हें नीके लीन्हें हौ बिन दाम जू ॥
बेद पुरान भेद कहा जाने कहत तुम्हें गुनजाल जू।
सोतो एक दिना हम देखे पहिरे बिनु गुन माल जू ॥
होय निरंजन मनरंजन आँखिन में अंजन द्यायौ जू।
प्यारीजू को प्याय सुधाधर जगजीवन हम ज्यायौ जू ॥
मोहन होय मुहायो मन होय कृष्ण कहाये लाल जू।
दीखत के सूधे सुलटे पर सब अँग उलटी चाल जू ॥
जैसे हो तैसे कहा कहिये श्रीहरिप्रियाजू के संग जू।
रंगमहल के रति-बिहार में हारि रहे निज अंग जू ॥ १६० ॥
*युगल दम्पति रस में भींगे मण्डप में विराजे हैं ….निकुँज में उद्दाम आनन्द का ज्वार चल पड़ा है ….कोई किसी से क्या बोले , क्या कहे …सखियों की भीड़ उमड़ पड़ी है ….सब नृत्य कर रही हैं ….तो कोई गा बजा रही हैं । इस अद्भुत रसार्णव की थाह कौन पा सकता है भला ।
अष्टसखियाँ हैं …प्रमुखा हैं श्रीरंगदेवि जू …जो इन रसिक रसीले दम्पति को चँवर ढुरा रही हैं …और उन्मत्त हो रही हैं । हरिप्रिया सखी के विषय में तो कहना ही क्या ! ये तो घूम घूम कर इस रसोत्सव के बारे में बताकर परम सुख का अनुभव कर रही हैं …..
एकाएक कई सखियाँ वहाँ पर उपस्थित हो गयीं ….ये सखियाँ अनन्त सौन्दर्य की धनी थीं । मुस्कुराहट इनके मुखमण्डल में बनी ही रहती थी । अति उमंग से भरी इन सखियों को देखकर हरिप्रिया उन सबका हाथ पकड़ कर बोलीं ….अरी ! सुनो , अवसर सुन्दर है क्यों न हम इन दुलहा सरकार को गारी सुनायें । ये कहकर सबका हाथ पकड़ हरिप्रिया रसिक दम्पति के सामने ही बैठ गयीं …और अन्यों को भी बैठा लिया । श्याम सुन्दर को देख रही हैं …और अपने नयनों को शीतल कर रही हैं ……दुलहा इतने सुंदर हैं , अति सुंदर हैं कि ये सब सखियाँ – क्या कहना है, ये भी भूल गयीं । प्रिया जू , जो दुलहन बनी हैं उनको हंसी आगयी । ये देखकर हरिप्रिया सखी अन्यों को कहने लगीं ….भूल गयीं ? अरे इन दुलहा सरकार को गारी सुनाओ । सब सुनाओ ।
हरिप्रिया आगे बैठीं हैं …..वो श्याम सुन्दर को देखती हैं श्याम सुन्दर उन्हें देखते हैं ….हाय ! छाती में हाथ रखकर कहती हैं हरिप्रिया …हे प्यारे ! तुम्हें सब श्याम सुन्दर कहते हैं ….कैसे सुन्दर श्याम हो तुम ? तुम्हारे अन्दर सुन्दरता कहाँ है ? अरे ! हमारी प्रिया जू ने आपको अपनाया तब जाकर सुन्दर हुए हो …..और ये बात हम अच्छे से जानती हैं कि बिना दाम के ही तुम प्रिया जू के हाथों बिके हो …तभी सुन्दर बने ……नही तो श्याम यानि काले ही कहलाते ।
हरिप्रिया की बातें सुनकर श्याम सुन्दर हंसे ….सारी सखियाँ ताली बजाकर हंस पड़ीं थीं ।
अरी सखी हरिप्रिया जू ! इनमें गुन भी बहुत हैं …वेद पुराण में इनके गुणों का बहुत वर्णन है ।
हरिप्रिया तुनक कर बोलीं …वेद-पुराण क्या जानें इनके विषय में । वो तो बाहर बाहर की बातें जानते हैं , अरे ! इनके अन्दर की बात तो हम सखियाँ ही जानती हैं ….हम बता रही हैं…सुनो ।
वेद-पुराण कहते हैं …इनके गले में केवल गुणों की माला है …लेकिन हमने तो इनकी एक अवगुण से भरी माला भी देखी है । हाय ! क्या कह रही हो ? श्याम सुन्दर में अवगुण ? हरिप्रिया बोलीं …अवगुण नही अवगुणों की माला पहने हमने देखी है …यानि ये छल छिद्र से भरे हैं …इन बातों को बाहर वाले यानि वेद-पुराण क्या जानें !
किन्तु हरिप्रिया जू ! वेद कहते हैं कि ये निरंजन हैं ….अलख निरंजन …जिसे कोई लख यानि देख नही सकता ये वो हैं ।
हरिप्रिया जू हंसने लगीं …फिर बोलीं …..”उसी अलख निरंजन को हमने अपनी आँखों में अंजन बनाकर लगा लिया है “। इसलिए हमने निरंजन को अंजन बनाया क्यों कि हमें बस आँखों से यही दीखें ….हे प्यारे ! जिधर देखूँ उधर तुम ही तुम दीखो …इसलिए तो तुम्हें अंजन बनाकर लगा लिया । हरिप्रिया को अब रोमांच हो रहा है ..हे दुलहा सरकार ! हमने तो इसलिए आँखों में तुम्हें ही अंजन बना लिया ताकि तुम इन्हें शीतलता प्रदान करो । अब कैसे शीतल होंगे तुम सबके नयन ? मनौं श्याम सुन्दर ने पूछा ….तो हरिप्रिया ने उत्तर दिया …हमारी लाड़ली को अपने अधरों का अमृत पिला देना …उसी से हमारे नयन शीतल हो जायेंगे । हरिप्रिया के मुख से ये सुनकर दोनों दम्पति शरमा गए …और मुस्कुराते हुए नीचे देखने लगे थे । तुम्हारा एक नाम “मोहन”भी है ना ? श्याम सुन्दर ने हाँ में सिर हिलाया । तो अपना नाम सार्थक करो …हमारे मन को मोह लो …..मोह लो ना ! वैसे तो तुम सीधे लगते हो ..किन्तु टेढ़े मेढ़े अंग के हो , इसलिए टेढ़ी चाल चलते हो …पर हमारी प्रिया जू ही आपको सीधा रख सकती हैं । उन्हीं के सामने सीधा रहते हो । ये कहकर सब खिलखिलाकर हंसने लगीं । अरे ! कोई कुछ भी कहे , कहता रहे …वेद या पुराण ….किन्तु सुरत विहार के एकान्त क्षण में हमारी प्रिया जू तुम्हारा सारा टेढ़ापन निकाल कर तुम्हें सीधा कर देती हैं । आप को तो “अजित “कहा जाता है …कोई आपको जीत नही सकता …किन्तु हमारी प्रिया जू ही हैं जो आपको पराजित करके आपके ऊपर अपने विजय ध्वज रूपी काले लम्बे घुंघराले केशों को लहरा देती हैं ।
ये सुनकर ताली बजाकर सब सखियाँ हंसते हंसते लोट पोट हो गयीं थीं ।
अद्भुत इस रस का वर्णन कौन कर सकता है …रसिकों ! ये तो अनुभव का ही विषय है , है ना ?
क्रमशः….


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