श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! बृजवासी लौटे वृन्दावन !!
भाग 1
जीजी ! जीजी !
अति उत्साहित और आनन्दित होकर दौड़ रही हैं बृजरानी के पास रोहिणी ।
क्या हुआ ! ऐसी क्या ख़ुशी की बात बतानें जा रही हो रोहिणी ?
बृजरानी पूछती हैं ।
जीजी ! कंस को अपनें लाला नें मार दिया ।
क्या ! बृजरानी उठकर खड़ी हो गयीं ……….चिन्ता की लकीरें उनके मष्तिक पर साफ दिखाई दे रही थीं ।
ओह ! वो अक्रूर इसीलिये तो लेकर गया था यहाँ से ………..स्वार्थी हैं सब नगर में रहनें वाले ये लोग……कंस का वध मेरे लाला के द्वारा करवानें के लिये ही तो ……….फिर शून्य में तांकनें लगीं थी बृजरानी ।
कितना कष्ट हुआ होगा मेरे लाला को ……….कुछ खाया है कि नहीं उसनें …..बृजराज भी तो ज्यादा कुछ कहते नही है ………..कहाँ कहाँ लगी होगी उसके ……….वो तो बालक है बेचारा ………बृजराज को सम्भालना चाहिये ना ! बृजरानी को रोष हैं ।
जीजी ! पर मैं बहुत खुश हूँ ………..अब तो पतिदेव भी मथुरा नही रहेंगे उग्रसेन वहाँ के राजा बन गए हैं ना ! रोहिणी चहकते हुये बोलीं …..जीजी ! मैं पतिदेव को कहूँगी ……..हम लोग भी क्यों न वृन्दावन में ही आकर रहें …….बलराम का भी मन लगा रहेगा …………
हाँ, बलराम का मन कहाँ लगेगा अब मथुरा में …….कन्हैया यहाँ होगा …..और बलराम मथुरा में ! नही , नही ……..रोहिणी तुम वसुदेव जी को बोलकर यहीं आजाओ ……….हम सब साथ रहेंगे ।
जीजी ! पर एक बात कहूँ ……..मथुरा का राजा अपनें कन्हैया को बना रहे थे मथुरावासी …….पर कन्हैया ही नही माना ………..ये कहते हुये रोहिणी हंसीं ………………..
ठीक ही तो किया …………कन्हैया भोला है ……..वो देखनें में ही चंचल उछलकूद करनें वाला लगता है ……पर अंदर का वो बहुत भोला है …….उसे कोई भी पागल बना सकता है ………और किसी की भी बातों में वो आ भी जाता है ……….इसलिये ठीक किया उसनें …….उससे ये राजनीति सत्ता का सञ्चालन नही होता ……..वो तो बहुत भोला है ।
बृजरानी ये कहते हुये एकाएक चहक उठीं ……..क्यों की कौआ आँगन में आकर बोल रहा था ।
रोहिणी ! आज ही आएंगे बृजराज और मेरा लाला ………देख ! देख काक बोल रहा है ………..है ना ? बृजरानी यशोदा बहुत प्रसन्न हो गयीं ।
“मेरा लाला आएगा”……..कुछ कुछ गुनगुना रही हैं ।
बृजरानी !
सुना है मथुरा में “वासुदेव” कह रहे हैं मथुरावासी अपनें लाला को ?
एक बूढी गोपी बोली थी ।
चुप रह तू ! कुछ भी बोलती रहती है ………मुझे पता है ऋषि गर्ग नें ये नाम रखा था लाला का …….तब मैने पूछा था तो उन्होंने समाधान किया ……….पूर्व जनम में ये वसुदेव का पुत्र रहा था ……..फिर ये वसुदेव थोड़े ही , इस नाम के ओर वसुदेव होंगे ……..और मुझे चिंतित देखकर ऋषि बोले भी थे ……..इस जनम में तो आपका ही पुत्र है ।
समझी ? कुछ भी बोलती रहती है …………यशोदा जी को उस गोपी पर भी रोष हो आया था ।
मूर्च्छा से जागे बृजराज …………….
उनके चरणों के पास उनका लाला कन्हैया है …………चारों ओर मनसुखादि बृजवासी और वसुदेव देवकी आदि सब थे ………
बृजराज नें जब अपनें सामनें देखा आचार्य गर्ग भी खड़े हैं …….बड़े संकोची हैं ये नन्द बाबा …….उठकर बैठ गए ।
“हे ब्रजपति ! मुझे क्षमा करें” ……….आचार्य गर्ग नें हाथ जोड़े ।
नही, नही भगवन् ! ऐसा पाप क्यों चढ़ा रहे हो आप मुझ पर ।
हाँ मैं अपराधी हूँ ………क्यों की मैने परिचय नही दिया और न मैनें स्पष्ट कहा कि ये वासुदेव है ………नन्दनन्दन नही ……….मुझे कह देना चाहिये था ……पर मै कह नही पाया ।
बृजराज नें हाथ जोड़े अपनें………और उठते हुए बोले ……..कोई बात नही ……….हमें भी पता नही था कि ये लाला हमारा जाया नही है ………….मनसुख नें सम्भाला बृजराज को ……….नेत्रों में अश्रुओं की बाढ़ है …..पर यहाँ रोकर क्या लाभ !
“मैं वृन्दावन जाऊँगा”……..बृजराज अपनें कक्ष की ओर चल पड़े थे ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल-
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