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August 1, 2025 7:54 am

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!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! सहचरी गावत गारि !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )-!! सहचरी गावत गारि !! : Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

!! सहचरी गावत गारि !!

गतांक से आगे –

मैंने दर्शन किए हैं उन निकुँजोपासक संत के …वो सखीभाव से ही भावित रहते थे …श्रीबरसाना छोड़ कर कहीं जाते नही थे ..अब तो उनका देह नही रहा …किन्तु मैंने उनका सत्संग भी किया है ।

मैंने जब उनसे सखी भाव और निकुँज के सम्बन्ध में पूछा तो वो बोले – “श्रीभागवत जी का नित्य पाठ कीजिए ,बस इतना ही”। मैं समझ गया कि ये ऐसे नही बतायेंगे । तो मैंने उन्हें कहा …श्रीमहावाणी जी का पद सुनाऊँ ? वो मुस्कुराए ….वहीं बैठ गये ….भाव में डूब कर सुनने लगे…..हाथों में मिट्टी लगी थी बासन धो रहे थे …वो भी भूल गये । उनकी स्थिति बड़ी विलक्षण हो गयी थी जिसका वर्णन सम्भव नही है । वो बोले – नित्य निकुँज की भावना ऐसे ही नही आती …न तुम्हारी कोरी कल्पना से आती है ….मैं बोला …फिर ? वो आती है रस की सिद्धि से । मैंने उनसे कहा …ये रस की सिद्धि कैसे होती है ? “वाणी जी का पाठ और युगल मन्त्र का जाप”…वो तो मैं करता हूँ ….मेरे साधना का अहंकार ही बोला था । नही , ऐसे नही ….वो बोले – जब नाम स्वाँस के साथ सहज निकलने लगे ….जब नाम को लेना नही पड़े ….वो स्वयं ही प्रकट हो रहा है …उस स्थिति को कहते हैं -“रस सिद्धि” । इसी रस सिद्धि से तुम नित्य निकुँज में प्रवेश पा जाओगे । ये सुनकर मुझे रोमांच हुआ था, वो सिद्ध रसिक सन्त थे, उनकी वाणी मिथ्या होगी ये सोचना तो अपराध ही था ।

वो बोलते गये …प्रेम की प्रगाढ़ता के साथ ….नाम का जाप हो ….रूप का ध्यान हो ….और वाणी जी का पाठ हो । इससे होगा कि नाम आपके मन को ही खतम कर देगा ….चित्त शान्त हो जाएगा ….तब जिस प्रिया प्रियतम के भावना की स्फुरणा होगी ….वही नित्य निकुँज पहुँचा देगी ।

ये उत्सव आदि वहाँ होते रहते हैं ? मैंने पूछा अन्तिम में …तो उनका कहना था वहाँ उत्सव ही है …उत्सव और सखियों के मन में उत्साह …जिसके कारण प्रिया लाल जू उमंग में भरे रहते हैं ।

मैं कुछ दिन रहा था श्रीबरसाने में …एक दिन और गया उनकी कुटिया में …तो वो सिर में चुनरी डाले ब्याहुला का ये पद ही गा रहे थे …..वो गारी दे रहे थे । दुलहा सरकार को गारी देते हुए रोमांचित हो रहे थे …कुछ समय तक मैं वहाँ रहा ….फिर प्रणाम करके चला आया ।

हे रसिकों ! निकुँज उपासना ये विलक्षण है ….रसात्मक श्यामाश्याम ही उन उपासक के नयनों में नित्य के लिए ही बस जाते हैं । आज ये ब्याहुला के प्रसंग में गारी लिखते हुये …वो सखी भावापन्न सन्त जी याद आगये थे ।


॥ दोहा ॥

निज निज अंग लड़ाय के, सहचरि गावत गारि ।
कहत सबै गोरे तुमहिं, देखौ मुकर निहारि ।।

॥ पद ॥

तुम गोरे हो मोहन गोरे । कोउ स्याम कहैं ते भोरे ॥
सो तौ यह दोष हमारौ । आँखिन में अंजन कारौ ॥
तुम्हें जाने हो मोहन जाने। अब नेकु रहौ किन छाने ।
नातर कहिहैं वा दिन की। बोलनि प्यारीजू बिनकी ॥
तुम आछे हो मोहन आछे । को परै तिहारे पाछे ॥
अहो अधरसुधा-अनुरागे । प्यारीजू के पाँयन लागे ॥
तुम प्यारे हो मोहन प्यारे । कहा कहिये कर्म तिहारे ।।
कहौ यामें कहा बड़ाईं हम देखत हा हा खाई ॥
तुम लोने हो मोहन लोनें। आगे भये न अब कोउ होनें ॥ क्यों
नीचे नीचे झाँखें। ये लाज-लपेटी आँखें ॥
तुम कैसे हो मोहन कैसे । हमरे गुन देखो ऐसे ॥
पहिराय कमल की माला । करि दिये लाड़िले लाला ॥
तुम्हें गारि कहा अब दीजै। मुख पर पानी वारि पीजै ॥
संग गोरी हो संग गोरी । बनी श्रीहरिप्रियाजू की जोरी ॥१६१॥

*अनन्त सखियाँ जो इन युगल सरकार की ही आत्मा हैं ….और ये सेवा भी करती हैं तो आत्मवत करती हैं …इन दिनों तो उत्साह-उमंग में सरावोर हैं । इनके पाँव अवनी में नही हैं ….ये उन्मत्त और बाबरी सी हो गयी हैं । पूरा का पूरा निकुँज ही इन दिनों ऐसा बना हुआ है ।

अब आइये ब्याह मण्डप में ……..

धूम मची है ….सखियाँ नाच रही हैं , गा रही हैं , वाद्य बजा रही हैं …..युगल सरकार इन प्रेम जल में अभिषिक्त सखियों को देखकर बड़े प्रसन्न हो रहे हैं ….सखियों ने गारी गानी शुरू कर दी थी ….उस गारी को सुनकर श्याम सुन्दर की जो दशा हुयी और सखियों ने जो सुख लूटा उसे आप भी अनुभव करें । ये उसी के लिए है ।

हरिप्रिया सखी आगे बैठी हैं …मुखिया यहीं बनी हैं ….चुनरी सिर में बाँध कर बड़े प्रेम से आलाप लेते हुए गायन में गारी दे रही हैं श्याम सुन्दर को यानि दुलहा सरकार को ।

“हे श्याम सुन्दर ! तुम गोरे हो” ….मस्त होकर हरिप्रिया कहती हैं । हरिप्रिया को ऐसे देखकर प्रिया जू बहुत प्रसन्न होती हैं….वो हंस रहीं हैं …हंस तो लाल जू भी रहे हैं ।

“जो कहता है तुम काले हो ….वो झूठ कह रहा है” ….क्या ये काले नही हैं ? सखियाँ पूछती हैं ….तो हरिप्रिया कहती हैं …काले दिखाई देते हैं ….किन्तु असल में ये गोरे हैं । सखियाँ हरिप्रिया की ओर देखती हैं ….श्रीरंगदेवि जू भी हरिप्रिया की ओर देखकर ये पूछना चाहती हैं कि – आगे क्या कह रही हो , जल्दी कहो ।

हमारा दोष है , ये तो गोरे हैं, अरी ! हमारे आँखों में ही दोष भरा है तो दोष ही दिखाई देगा ।

अब सुनो ! हरिप्रिया मटकते हुये कहती है …हमारे आँखिन में जो काला अंजन लगा है ना ..सारा दोष इसी अंजन का है …जो आँखों में होगा वही तो दीखेगा …ये तो गोरे हैं ….काले कहाँ हैं ।

हरिप्रिया के मुख से ये सुनते ही श्याम सुन्दर बड़े प्रसन्न हो गये …प्रिया जू ने भी श्याम सुन्दर की ओर देखा …बोलीं ….तुम गोरे हो ? और क्या ! आप की ही सखी कह रही है …श्याम सुन्दर भी बोल पड़े । हरिप्रिया मंद मुस्कुराईं फिर बोलीं ……हे मन मोहन ! हम तो एक ही बात जानती हैं कि तुम्हें वही जान सकता है …जिसका मन निर्मल हो ….हरिप्रिया तुरन्त बोलीं …हम जानती हैं ….अच्छे से जानती हैं तुम्हें …..ज़्यादा चार पाँच न करना …नही तो तुम्हारी यहीं सारी पोल पट्टी खोल देंगीं । हरिप्रिया के मुख से ये सुनते ही प्रिया जू हंसने लगीं ….सखी समाज हंस पड़ा ….श्याम सुन्दर अब गम्भीर से हो गए …पर ये हरिप्रिया अभी रुकने वाली कहाँ है …कहो प्यारे ! उस दिन की बात कह दूँ ? नयन मटकाकर वो कमलनयनी हरिप्रिया पूछती हैं । “कहो , आज कह दो”….पूरा सखी समाज अति उत्साह से बोल उठा था । हरिप्रिया बोलीं …रहने दो ..इनका मुख मण्डल देखो ..मुख अरविन्द का रंग ही उड़ गया है …डर रहे हैं लाल जू कि ये तो मेरी पोल पट्टी खोल देगी । इस बात पर खिलखिलाकर प्रिया जी हंसीं …अष्ट सखियों का हंस हंस कर बुरा हाल है ।

अच्छा सुनो तो उस दिन की बात – लाल जू ! हरिप्रिया श्याम सुन्दर की ओर देखकर कहती हैं …उस दिन क्या हुआ ? क्यों प्रिया जू के पीछे पीछे हाथ जोड़कर डोल रहे थे …और हाँ …कहते भी जा रहे थे कुछ कुछ । ये बात सुनकर श्याम सुन्दर इधर उधर देखने लगे ।

छोड़ो इन बातों को …हरिप्रिया हंसते हुए फिर बोलीं – श्याम सुन्दर ! तुम्हें सब लोग अच्छा बोलते हैं ना ? पर तुम अच्छे कहाँ हो ? जो अच्छा कहते हैं वो तुम्हें जानते नही हैं इसलिए ऐसा कहते हैं ।

मैंने क्या बुरा काम किया है ? अब तो श्याम सुन्दर से रहा नही गया और बोल पड़े ।

हरिप्रिया ने कहा ….इतनी सखियों के मध्य प्यारे ! तुम्हें बोलना नही चाहिए था ….अब बोल ही दिये हो तो लाल जू ! फिर सुनो । अरी सखियों ! बताओ अपनी दुलहन के कोई पाँव पड़ता है ? ये सुनते ही …हो हो हो हो हो …कहकर सखी तालियाँ बजाने लगीं । “ये उस दिन अपनी दुलहन के पाँव पड़ रहे थे” हरिप्रिया झूठ कह रही हो तो अपने मुख से ये कहें ! ये सुनकर तो लाल जू बिल्कुल मौन हो गये । हम बोलना नही चाहतीं …पर यही बुलवाने पर तुले हों …तो किया क्या जा सकता है ।

अब पूरा निकुँज हंस हंसकर पागल हो उठा था ।

हे हरिप्रिया सखी जू ! ये तो बताओ कि ये उस दिन अपनी दुलहन के पाँव क्यों पकड़ रहे थे ?

एक सखी ने ये भी पूछ लिया ।

हरिप्रिया हंसते हुए बोली ….इनके जैसा लम्पट दुनिया में दूसरा नही देखा …प्रिया जू के अधरामृत का पान करने के लिए ये उनके पाँव पड़ रहे थे …पाँव ही नही गिडगिड़ा भी रहे थे , इनकी ये स्थिति है , और इतरा और रहे हैं । इसलिए हम कह रही हैं ज़्यादा तनों मत ….हम ही हैं जो तुम्हें अच्छे से जानती हैं । हरिप्रिया ये कहकर फिर प्रिया जू की ओर देखती हैं …प्रिया जी भीतर ही भीतर हंस रही हैं ….और लाल जू ने तो अब अपनी दृष्टि नीचे कर ली थी ।

प्यारे ! तुम्हारे कोई कर्म हम से छिपे नही हैं …और आज के दिन हमारा मुँह मत खुलवाओ …हम कहना नही चाहतीं इसलिए चुप ही बैठे रहो ….हरिप्रिया के मुख से ये सब सुनकर किशोर लाल जू नीचे दृष्टि करके बैठे हैं ….कुछ नही कह रहे । हरिप्रिया ने एक बार कहा भी कि ऊपर देखो …हमारी ओर देखो …किन्तु नही देखा लाल जू ने । हरिप्रिया समझ गयीं ….तो वो हंसते हुए बोलीं …..बहुत सुंदर हो …सही में सुन्दर हो …तुम्हारे जैसा न कोई हुआ है …न आगे होगा…अब छोड़ो भी प्यारे ! ऊपर देखो , हमारी ओर देखो ….हमारे हृदय में देखो ….हमारे गुण भी देख लो ।

अब तुम कहोगे सखी ! क्या गुण हैं तुममें ? तो प्यारे ! एक ही गुण हैं हममें कि “तुम्हें बहुत चाहती हैं”…..अपने प्राण वारती हैं तुम पर । सजल नेत्रों से हरिप्रिया ने ये बात कही थी । फिर भी अपनी दृष्टि जब श्याम सुन्दर ने ऊपर नही की ….तो हरिप्रिया ने तुरन्त एक कमल की माला ली और उठकर लाल जू के कण्ठ में धारण करा दी ….और उनके मस्तक को चूम लिया ।

लाल जू ने ऊपर देखा …प्रिया जी ने करतल ध्वनि की …सारी सखियाँ जय जयकार करने लगीं ।

तब हरिप्रिया ने कहा …तुम को क्या गारी दें …प्यारे ! तुम्हें देखकर तो पानी वार कर पीने की इच्छा होती है …ताकि तुम्हें नज़र न लगे ।

अब क्या हो गया ? पहले तो बड़ी बड़ी बातें कर रही थीं …कि हम कपटी हैं …हम लम्पट हैं …अब क्या हुआ ? लाल जू के मुख से ऐसा सुनते ही हरिप्रिया फिर अपने में आगयी और बोलीं ….तुम हो तो कपटी , और लम्पट भी ….किन्तु प्यारे ! तुम्हारे साथ गौर वर्णी ये प्रिया जी हैं ना इसलिए तुम्हारे अवगुण छुप जाते हैं …तुम्हारा रंग रूप भी छुप जाता है …तुम काहे के सुन्दर हो …सुन्दरी के साथ हो इसलिए सुन्दर लग रहे हो । ये जैसे ही हरिप्रिया ने कहा …बस फिर तो पूरा निकुँज हंसी के ठहाकों से गूंज उठा था ।

क्रमशः….

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