!! दोउ लालन लाड़ लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! जीवन जोरी सखिन की !!
गतांक से आगे –
मैं फिर आपको स्मरण कराऊँ कि ….सखियाँ तत्सुख अभिलाषा से पूर्ण हैं …यानि प्रिय को सुख मिले …बस यही कामना है इनके मन में । स्वसुख वांछा शून्य हैं …..”अपना सुख” इनका है नही ..युगलवर को ही सुख देना इनका साध्य है । अद्भुत उपासना से ये सब भरी हैं । गारी भी देती हैं तो इसलिए कि इन्हें सुख मिले …..प्रेम में प्रिया को जोड़ कर कुछ भी प्रिय को कहा जाये तो प्रिय को बुरा कहाँ लगता है ! प्रिय तो प्रसन्न हैं ….प्रिया का नाम उनके साथ जुड़ा तो । ये अगाध भाव से परिपूर्ण रहती हैं ….ये युगल के चारों ओर घूमती रहती हैं …इनकी चिन्ता केवल युगल वर हैं ….ये नित्य नूतन शृंगार करती हैं ….स्वयं सजती हैं और युगल को सजाने के उपक्रम में लग जाती हैं । उत्सव इनके प्राण हैं ….नित्य उत्सव है यहाँ । ये सखियाँ त्रैलोक्य का सुख भी तुच्छ मान कर त्याग देती हैं और युगल को ही अपना सर्वस्व जानकर उनके लिए ही जीती हैं ।
हे रसिकों ! सखी भाव उच्चतम भाव है …ये ऐसा भाव है जिसमें सब कुछ अपने प्रिया प्रियतम के लिए ही किया जाता है । विवाह हुआ …और विवाह के पश्चात् उस शयन कुँज में युगल को पधराया गया ….सेज सजाई है सखियों ने …दिव्य धवल वस्त्र बिछाये हैं ….चारों ओर पुष्पों की लड़ी है ….यानि अद्भुत से भी अद्भुत उस कुँज को सजाया गया । अब नव दुलहा दुलहन जब वहाँ विराजे …..और और और …भोर हुयी …सखियाँ आयीं ….कुँज रंध्र से देख रही हैं …नही नही ….अभी कुँज में प्रवेश मत करो ….श्रीरंगदेवि जू ने कहा । क्यों ? देखो ना सो रहे हैं ….रात भर सोये कहाँ होंगे ….जागते ही तो रहे । इसलिए शान्त रहो ….ऐ कमलों ! तुम मत खिलो अभी …तुम खिलोगे तो सुगन्ध फैलाओगे …तुम्हारे सुगन्ध से दम्पति जाग जायेंगे । अभी मत खिलो …..सुनो , जब हमारे युगल जाग जाये तब खिलाना । ये प्रार्थना है इन सखियों की ।
ऐसे भाव में सदैव भावित रहने वाली ये सखियाँ , युगल की प्राण प्यारी हैं । इनके विषय में , इनके भाव के विषय में कितना भी लिखा जाये कम ही है ।
चलिए हम तो चलते हैं नित्य निकुँज में ….जहाँ ब्याहुला चल रहा है …धूमधाम से विवाह उत्सव मनाया जा रहा है …सखियाँ उन्मत्त हैं ….अजी ! पूरा निकुँज ही मत्तता से भर गया है । सुगन्ध की वयार जो चल रही है ….वो किसी को भी माती बना दे । किन्तु सखियाँ अपनी मत्तता को सम्भालती भी हैं ….अगर ये अपने को छोड़ दें …तो फिर युगल की सेवा में विघ्न आजाएगा ….मैंने कहा ना ! स्वसुख इन्हें देखना ही नही हैं …ये तो युगल को ही सुख देने में लगी हैं ।
!! दोहा !!
जोरी गोरी रँगभरी, सहचरि सब सुख देत ।
भाँवरि भरि गुन गारि गय, बदन बलैयाँ लेत ।।
लेत बलैयाँ बदन की , फूली मात न अंग ।
रहसि बधाई गावहीं , ललिता भीनी रँग ।।
*अब ब्याहुला उत्सव का दर्शन करो – तो श्रीरंगदेवि आदि सखियाँ , जो केवल इन दुलहा दुलहन को सुख देने वाली हैं ….उन्होंने आगे बढ़कर युगल को उठाया ….उठने की प्रार्थना की …दोनों उठे ब्याह मण्डप में ….सामने सुन्दर सी वेदी है ….उस वेदी की प्रदक्षिणा करने के लिए कहा । आहा ! ऐसी भाँवरि ……दोनों श्याम गौर वेदी की परिक्रमा लगा रहे हैं ….श्रीरंगदेवि जू चँवर लेकर साथ में चल रहीं हैं …..ललिता सखी जू गारी गा रही हैं …इनका कण्ठ अत्यन्त मधुर है …गारी के साथ ये बधाई भी गाती जा रही हैं । पुष्पों की वृष्टि कर रही हैं अन्य सखियाँ । भाँवर लेते हुए युगल के अंग से जो दिव्य आभा प्रकट हो रही है …उसे देखकर सखियाँ फूल गयी हैं ….कैसे फूल रही हैं …उपमा देखिये श्रीमहावाणी में ….जैसे – माता अपने पुत्र के विवाह में फूली रहती है …ऐसे ।
सखियाँ भाँवर लेते अपने प्राणधन को देखती हैं …तो इनके समझ में नही आता कि क्या करें ? युगल दम्पति के श्रीअंग की शोभा इतनी दिव्य है कि ये अपने आपको भी सम्भाल नही पातीं …गिरने लगती हैं दूसरी सम्भाल लेती है …और कहती है …ऐसा मत करो ….अगर हम ही ऐसे गिरने पड़ने लगीं तो इनका ख़्याल कौन रखेगा । ये सुनकर सखियाँ संभल जाती हैं ….और फिर बलैयाँ लेने लग जाती हैं ….आज ललिता सखी जू के खूब दर्शन हो रहे हैं …ये भाँवर के समय सामने आयीं हैं …और रँगरस से सराबोर दिखाई भी दे रही हैं ।
क्रमशः ….


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