🙏🥰 श्रीसीताराम शरणम् मम 🥰🙏
#मैंजनकनंदिनी…. 8️⃣
भाग 3
( #मातासीताकेव्यथाकीआत्मकथा)_
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#हियहरषहिंबरसहिंसुमन ………._
📙( #रामचरितमानस )📙
#मैवैदेही ! ……………._
🙏🙏👇🏼🙏🙏
उनके वो नशीले नयन ………..कटीले नयन …………..जो देखे वो मर ही जाए ……ऐसे सुन्दर ……सिया जू !
हम फूल बरसाती जा रही थीं …………………वो हमारी और देखते जाते थे ….और मुस्कुराते जाते ।
सिया जू ! क्या कहें उनकी हँसी तो और मादक थी ।
तभी उस घर की दो तीन बूढी माताएं आगयी ……………….
ये कौन हैं …….? बड़े सुन्दर राजकुमार लग रहे हैं ?
एक बूढी माता नें दूसरी से पूछा …………..।
ये बाबा विश्वामित्र के साथ आये हैं ……………..राम नाम है इन बड़े का ….और लखन है छोटे का ………राजा दशरथ के पुत्र हैं ये दोनों ।
अरी हमारी तो प्रार्थना है विधाता से …..कि इनके ही साथ हमारी जानकी का विवाह हो जाए ।
हमारे सबरे पुण्य इनको ही मिल जाएँ …………………
ये बताते हुए मेरी सखी पद्मा कितनी हँस रही थी ………..
सिया जू ! तब दूसरी माता नें कहा …….पर पिनाक ये तोड़ पायेंगें ? इतनें कोमल हैं ये राजकुमार …….और पिनाक धनुष तो बड़ा ही कठोर और भारी है …….ये नही तोड़ पायेंगें ……….
तब दूसरी कहती …………..क्या पता इनको देखकर हमारे राजा जनक अपनी प्रतिज्ञा ही तोड़ दें ………..!
नही ………..हमारे राजा, बात के तो पक्के हैं ……….वो अपनी प्रतिज्ञा नही तोड़ेंगें ……….
ये सुनकर पहली वाली माता चुप हो जाती ………..और बाद में यही कहती ………..हम ही क्या सारा जनकपुर नगर ही यह चाहेगा कि इनके साथ ही हमारी लाड़ली जानकी का विवाह हो …..।
सिया जू ! तभी हमनें देखा ……….वो अब जा रहे हैं …………तेज़ चाल से चलनें लगे थे ………
हमनें ये सब देखा ……….तो अंतिम फूलों का एक गुच्छा फेंका उन बड़े राजकुमार के ऊपर ……..और ये कहते हुए फेंका …..
“फूल, पुष्प वाटिका में मिलते हैं………कल वहीं आजाना ……
और हाँ….अहंकार मत करना….हमारी राजकुमारी तुमसे भी सुन्दर है “
ऐसा क्यों कहा ! मैने उस चारुशीला की बच्ची को डाँटा …….तू ऐसे कुछ भी कैसे बोल देती है ………..
अरी ! मेरी प्यारी किशोरी जू ! कुछ नही होगा …………..उन बड़े राजकुमार नें मेरी ओर देखा ……..और मुस्कुरा दिए थे ……चारु शिला नें हँसते हुए ये बात कही ।
सच ! चारुशीले ! वो कैसे लग रहे थे ! मै पूछ रही थी …….चारुशीला से ……………..
कल मिल लेना ………………और हाँ …..कल शरद पूर्णिमा भी है ……
एक तरफ आकाश का चन्द्र और दूसरी तरफ धरती में उतरा ये श्री राम चन्द्र !……….
खूब हँसी मेरी सखियाँ …………मैने सोनें का नाटक करके आँखें बन्द कर ली थी ……..।
पर मुझे नींद कहा आएगी ………नही आई ……
मै तो कल की प्रतीक्षा में थी …………..पुष्प वाटिका की ।
#शेषचरिञअगलेभागमें……….
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जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
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] Niru Ashra: !! बृज दर्शन – 1 !!
अच्छा ! तो ये नन्द गाँव है…
25, 4, 2024
परसों की बात है , मैं प्रातः घर से कहकर चला था कि श्रीबाँके बिहारी जी दर्शन करने जा रहा हूँ ….मन में मेरे और कुछ था भी नही …दस दिन में लौटा हूँ मिथिला से तो दर्शन करने ही निकला था …प्रातः आठ बजे । मोबाईल था नही पास में , पैदल था और पैसा भी नही लिया था । कुटिया से निकल कर रोड तक पहुँचा ही था कि …..बरसाना , नन्दगाँव , गोवर्धन …..एक टेम्पो वाले ने आवाज दी …..मैं रुका ….मानों मुझे कोई अज्ञात शक्ति खींच रही थी अपनी ओर …..बरसाना ! नाम सुनकर मुझे रोमांच हुआ ….मैं बिना कुछ सोचे विचारे बैठ गया उस टेम्पो में ।
नन्दगाँव …..एक घण्टे ही हुए होंगे कि नन्दगाँव पहले आया ….आप कहाँ उतरोगे ? मैं अपने में था ही नही …..कहाँ ? टेम्पो वाले ने फिर पूछा । नन्दगाँव है ये । ओह ! नन्दगाँव ! मेरे नेत्रों से अश्रु बहने लगे …..क्यों न पहले नन्द के लाला के दर्शन किए जायें ? मैं उतर गया । “सौ रुपए दो”……टेम्पो वाले ने मुझ से कहा ….मैं क्या कहूँ ! कहाँ से दूँ ? मेरे पास थे नहीं …..आप जाओ महाराज ! हम दे देंगे …एक सज्जन थे टेम्पो में बैठे ….मेरे अपरिचित थे ….किन्तु उन्होंने कहा …कोई बात नहीं ….हम आपका पैसा दे देंगे , मैं भी उनको धन्यवाद बोलकर आगे चल दिया …..
ओह ! ये नन्द गाँव है ! कुछ देर के लिए मैं ठिठक गया था ….मेरे नन्दलाला का गाँव !
फूस की झोपड़ियाँ थीं , स्थान स्थान पर सूखे कण्डे गोबर के पड़े थे ….किन्तु भूमि स्वच्छ थी …..कहीं कहीं दूब लगी है …मानों हरी कालीन बिछा रखी हो …..सरोवर हैं …सरोवर बड़े ही सुन्दर हैं …..गौएँ हैं ….सुन्दर स्वस्थ गौएँ ….बछड़े उछल रहे हैं ….गौएँ उन्हें चाट रही हैं ।
मैं आगे बढ़ा ……
माताएँ अपने अपने कार्यों में व्यस्त हैं …..सुबह का समय जो है …..पुरुष भी अपने कामों के लिए घर से निकल गये हैं ….किन्तु किसी पुरुष का माथा सूना नही है ….चन्दन लगाया है …इससे लगता है कि ये पुरुष वर्ग अपनी ही मस्ती में हैं । मैंने नन्द महल की गली पकड़ी …..घरों के द्वार खुले हैं …..सुबह की बेला है ….कोई स्त्री आँगन लीप रही है …तो कोई अपने बच्चे को खिला रही है ….नौ बज चुके हैं विद्यालय जाने वाले बालक तो जा चुके अब जो घर के बालक हैं जो दो वर्ष या तीन वर्ष के हैं …या उससे भी कम ….उनको उनकी माताएँ खिला रहीं हैं ….किन्तु ……..
ये बालक तो बड़ा ही हठीला जान पड़ता है ….उस घर के आगे तो मैं भी रुक गया …..ये बालक अपनी मैया की बात मान नही रहा ….हठ कर रहा है …..इस बालक के मुँह में मलाई लगी है …..अभी अभी इसकी मैया ने इसे दूध पिलाया होगा । दो वर्ष का होगा …किन्तु बालक में बड़ा आकर्षण है । साँवला है …नंगा है ….पेट थोड़ा उभरा है ….गाल गोल गप्पे जैसे हैं …केश बिखरें हैं …..इसकी मैया ने आकर इसे मनाना चाहा …पर नही माना …..अपने पैरों से मटकी को गिरा दी थी ….जल से भरी मटकी थी ….उसकी मैया ने भी उसे पीठ में दो थप्पड़ लगाये थे ….पीठ में इसलिए ताकि लगे नही ….थप्पड़ लगाकर मैया अपने काम में लग गयी थी ……ये रो रहा है ….चीख कर रो रहा है….मारा नही इसकी मैया ने इतना , पर ये रो रहा है ….बड़ा जिद्दी है …..रो , ओर रो …इसकी मैया कहती जा रही है…इस बात पर ये और चीख रहा है ….मैं इस झाँकी को देख रहा हूँ …मुझे उसकी मैया ने देख लिया है ….वो हंसते हुए बोली भी “देख ! बाबा ले जाएगो तोय रोये मत” मेरी ओर उस बालक ने देखा है ….अब उसकी रोने की आवाज़ कम हो गयी है ..वो मुझे ही देख रहा है ..फिर आगे बढ़ा …जोर से दरवाज़ा भिड़ा दिया …मैं फिर भी वहीं खड़ा रहा पता नही क्या मोहनी डाल दी थी उसने….उस बालक ने मेरे ऊपर । तुरन्त ही दरवाज़ा खोल कर फिर देखा उस बालक ने …मैं उसे देखकर मुस्कुराया तो उसने फिर दरवाज़ा बन्द कर दिया । मैं फिर भी खड़ा रहा ….पर ये बालक तो बड़ा ही बदमाश है ….इस बार द्वार खोला और मुँह में पानी भरकर मेरे ऊपर …उसकी मैया दौड़ी आयी …और अपने बालक को पीटा …..पर इस बार वो बालक रोया नही ….जल लाकर मुझे दिया मैया ने , ताकि मैं अपनी चादर धो लूँ , उनके बेटे ने पानी थूंक जो दिया था ….किन्तु मेरे मन में ऐसा कुछ नही था ….बालक , वो भी बृजवासी बालक और उसमें भी नन्दगाँव का ! मुझे उसकी मैया ने ज़बरदस्ती चादर धोने के लिए कहा और जल दिया । मैंने धोया …..फिर नन्द महल की ओर दर्शन के लिए चला गया ।
जा रहा था तो वो बालक द्वार पर खड़े होकर मुझे देख रहा था …….मैंने उसकी ओर देखा तो वो हंस दिया ….ओह ! उसकी हंसी ।
नन्दमहल में दर्शन किए मैंने …..तीन घण्टे करीब मैं वहाँ बैठा ….ध्यान लग गया …बड़ा आनन्द आरहा था ….मेरे परिचित के कुछ गोस्वामी भी थे …उन्होंने कृपा की और मुझे नन्दलाला के निज महल का “राजभोग” भी कराया …..मेरा पेट भर गया था ….मुझे और क्या चाहिए । मैंने गदगद भाव से सबको प्रणाम किया और वहाँ से चल दिया । मेरा अंतःकरण अत्यन्त पवित्र हो गया था नन्दलाला के दर्शन से और उनके प्रसाद ग्रहण करने से । सच में , मुझ में अलग ही खुमारी चढ़ रही थी ….मैं अपनी धुन में उसी गली से निकल रहा था …और उसी घर का दरवाज़ा फिर खुला था ।
मेरे कदम फिर रुक गए …उस घर के भीतर देखने की फिर इच्छा हुई ….तो रुका , मैं देखने लगा …ये क्या है ! उस बालक के अपने तीन भाई थे जो विद्यालय से आचुके थे ….एक थाल में रोटी साग और दही बूरा , उसकी मैया ने रख दिया था ….वो बालक बीच में बैठा था ….और दही बूरा लेकर अपने भाइयों के खिला रहा था ….बड़े प्रेम से ….उसके भाई खा रहे थे …..उस बालक के पूरे मुँह में दही लगी हुई थी पेट में भी ….आपस में सब झूठा खा रहे थे ….मेरे संस्कार जाग गये …क्यों जागे ? नही जागने चाहिये थे ….किन्तु संस्कार तो संस्कार हैं ….कुछ देर के लिए नाक भौं मैंने सिकोड़ा ….उस बालक ने मुझे देख लिया था ….मेरे पास आया वो दौड़ा हुआ …हंसते हुए हाथ में वही अपनी जूठी दही लेकर …और मुझे देता हुआ बोला ….ले , खा । व्यर्थ के संस्कार ! दुर्भाग्य मेरा , मैंने मना किया ….वो बालक लौट कर गया और फिर मस्ती में दही बूरा खाने लगा । मैं आगे बढ़ गया था …किन्तु ये क्या ….मैंने क्या देखा वहाँ ? मैं फिर पीछे लौटा ….ओह ! सिर में मोर पंख , सुन्दर , नील वर्ण ….जिसके मुँह में दही लगा है ….पीली काछनी कसी हुई है …..और सबके मध्य में बैठा …दही खा रहा है …..मेरे समझ में नही आया ये क्या है ? मेरे आँखों का भ्रम ! मैं सोच ही रहा था की किसी ने वो दरवाज़ा बन्द ही कर दिया ….मैंने एक दो बार खटखटाया भी ….पर खुला नही । मैं कुछ देर खड़ा रहा …एक बृजवासी ने मुझे कहा …आगे जाओ । आगे जाओ ।
मेरे नेत्रों से अविरल अश्रु बह रहे थे ।
शेष कल –
[Niru Ashra: 🙏🥰 श्रीसीताराम शरणम् मम 🥰🙏
#मैंजनकनंदिनी…. 8️⃣
भाग 3
( #मातासीताकेव्यथाकीआत्मकथा)_
🌱🌻🌺🌹🌱🌻🌺🌹🥀💐
#हियहरषहिंबरसहिंसुमन ………._
📙( #रामचरितमानस )📙
#मैवैदेही ! ……………._
🙏🙏👇🏼🙏🙏
उनके वो नशीले नयन ………..कटीले नयन …………..जो देखे वो मर ही जाए ……ऐसे सुन्दर ……सिया जू !
हम फूल बरसाती जा रही थीं …………………वो हमारी और देखते जाते थे ….और मुस्कुराते जाते ।
सिया जू ! क्या कहें उनकी हँसी तो और मादक थी ।
तभी उस घर की दो तीन बूढी माताएं आगयी ……………….
ये कौन हैं …….? बड़े सुन्दर राजकुमार लग रहे हैं ?
एक बूढी माता नें दूसरी से पूछा …………..।
ये बाबा विश्वामित्र के साथ आये हैं ……………..राम नाम है इन बड़े का ….और लखन है छोटे का ………राजा दशरथ के पुत्र हैं ये दोनों ।
अरी हमारी तो प्रार्थना है विधाता से …..कि इनके ही साथ हमारी जानकी का विवाह हो जाए ।
हमारे सबरे पुण्य इनको ही मिल जाएँ …………………
ये बताते हुए मेरी सखी पद्मा कितनी हँस रही थी ………..
सिया जू ! तब दूसरी माता नें कहा …….पर पिनाक ये तोड़ पायेंगें ? इतनें कोमल हैं ये राजकुमार …….और पिनाक धनुष तो बड़ा ही कठोर और भारी है …….ये नही तोड़ पायेंगें ……….
तब दूसरी कहती …………..क्या पता इनको देखकर हमारे राजा जनक अपनी प्रतिज्ञा ही तोड़ दें ………..!
नही ………..हमारे राजा, बात के तो पक्के हैं ……….वो अपनी प्रतिज्ञा नही तोड़ेंगें ……….
ये सुनकर पहली वाली माता चुप हो जाती ………..और बाद में यही कहती ………..हम ही क्या सारा जनकपुर नगर ही यह चाहेगा कि इनके साथ ही हमारी लाड़ली जानकी का विवाह हो …..।
सिया जू ! तभी हमनें देखा ……….वो अब जा रहे हैं …………तेज़ चाल से चलनें लगे थे ………
हमनें ये सब देखा ……….तो अंतिम फूलों का एक गुच्छा फेंका उन बड़े राजकुमार के ऊपर ……..और ये कहते हुए फेंका …..
“फूल, पुष्प वाटिका में मिलते हैं………कल वहीं आजाना ……
और हाँ….अहंकार मत करना….हमारी राजकुमारी तुमसे भी सुन्दर है “
ऐसा क्यों कहा ! मैने उस चारुशीला की बच्ची को डाँटा …….तू ऐसे कुछ भी कैसे बोल देती है ………..
अरी ! मेरी प्यारी किशोरी जू ! कुछ नही होगा …………..उन बड़े राजकुमार नें मेरी ओर देखा ……..और मुस्कुरा दिए थे ……चारु शिला नें हँसते हुए ये बात कही ।
सच ! चारुशीले ! वो कैसे लग रहे थे ! मै पूछ रही थी …….चारुशीला से ……………..
कल मिल लेना ………………और हाँ …..कल शरद पूर्णिमा भी है ……
एक तरफ आकाश का चन्द्र और दूसरी तरफ धरती में उतरा ये श्री राम चन्द्र !……….
खूब हँसी मेरी सखियाँ …………मैने सोनें का नाटक करके आँखें बन्द कर ली थी ……..।
पर मुझे नींद कहा आएगी ………नही आई ……
मै तो कल की प्रतीक्षा में थी …………..पुष्प वाटिका की ।
#शेषचरिञअगलेभागमें……….
💐🥀🌹🌺🌻🌱💐🥀🌹🌺🌱
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
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Niru Ashra: श्रीमद्भगवद्गीता
अध्याय 8 : भगवत्प्राप्ति
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श्लोक 8 . 24
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अग्निज्र्योतिरः श्रुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् |
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः || २४ ||
अग्निः – अग्नि; ज्योतिः – प्रकाश; अहः – दिन; शुक्लः – शुक्लपक्ष; षट्-मासाः – छह महीने; उत्तर-अयणम् – जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर रहता है; तत्र – वहाँ; प्रयाताः – मरने वाला; गच्छन्ति – जाते हैं; ब्रह्म – ब्रह्म को; ब्रह्म-विदः – ब्रह्मज्ञानी; जनाः – लोग |
भावार्थ
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जो परब्रह्म के ज्ञाता हैं, वे अग्निदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभक्षण में, शुक्लपक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण में रहता है, उन छह मासों में इस संसार से शरीर त्याग करने पर उस परब्रह्म को प्राप्त करते हैं |
तात्पर्य
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जब अग्नि, प्रकाश, दिन तथा पक्ष का उल्लेख रहता है तो यह समझना चाहिए कि इस सबों के अधिष्ठाता देव होते हैं जो आत्मा की यात्रा की व्यवस्था करते हैं | मृत्यु के समय मन मनुष्य को नवीन जीवन मार्ग पर ले जाता है | यदि कोई अकस्मात् या योजनापूर्वक उपर्युक्त समय पर शरीर त्याग करता है तो उसके लिए निर्विशेष ब्रह्मज्योति प्राप्त कर पाना सम्भव होता है | योग में सिद्ध योगी अपने शरीर को त्यागने के समय तथा स्थान की व्यवस्था कर सकते हैं | अन्यों का इस पर कोई वश नहीं होता | यदि संयोगवश वे शुभमुहूर्त में शरीर त्यागते हैं, तब तो उनको जन्म-मृत्यु के चक्र में लौटना नहीं पड़ता, अन्यथा उनके पुनरावर्तन की सम्भावना बनी रहती है | किन्तु कृष्णभावनामृत में शुद्धभक्त के लिए लौटने का कोई भय नहीं रहता, चाहे वह शुभ मुहूर्त में शरीर त्याग करे या अशुभ क्षण में, चाहे अकस्मात् शरीर त्याग करे या स्वेच्छापूर्वक |
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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877