जय श्री कृष्ण जी।
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आज अहिल्याबाई होल्कर की जयंती है। मुझसे एक बार किसी ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में पूछा था, ‘भारतीय इतिहास में कौन सी महिला आदर्श है?
ह्रदय विदारक प्रश्न था, ब्रह्मवादिनी गार्गी और मैत्रेयी से लेकर झांसी की रानी तक भारतीय इतिहास में कई महिलाएँ हैं, लेकिन उस प्रश्न के उत्तर के रूप में पहली बार जो महिला मेरी आँखों में आई, वह एक गोरी, एक अजीब बोलती महिला जिसने अपनी पूरी जिंदगी जी ली दुसरो के लिए ।
नगर जिले के जामखेड के चौंडी गांव की एक साधारण धनगर की ये लड़की, मल्हारराव होलकर की नजर में क्या आती है ,इनकी कुवत इनकी विदेशी नजर क्या समझती है और मध्यप्रदेश के इंदौर संस्थान में क्या आती है और इतिहास में अपना नाम क्या तराशती है पूरा देश, चमत्कऋत। अद्भुत है इनकी कहानी।
अहिल्याबाई को निजी जीवन में बहुत कम खुशी के दिन मिले थे। उनके पति बहुत जल्दी चले गए। सती होने जाने वाली अहिल्याबाई को मल्हारराव ने राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाते हुए वापस खींच लिया। मल्हारराव के वचन अनुसार अहिल्याबाई ने सती का बाना उतारकर कई लोगों के वाद-विवाद ,व्यंग झेले । लेकिन उसके बाद जो जीवन जिया वह शुद्ध व्रत ही था। इनके सुदीर्घ जीवन में पेशवाई की स्थिति, महान बाजीराव पेशवाई से नारायणराव तक, पानीपत की जोरदार हार, राघोबादादा का कारस्थान, अंग्रेजों का धीरे धीरे भारत पर कसता शिकंजा और उनकी आँखों के सामने इतनी राजनीतिक उथल पुथल की स्थिति रही है,। ह
अपने उस छोटे से राज्य में न्याय और अच्छाई कायम की होल्कर के राज्य में।, लेकिन इसके साथ पूरे देश में धर्म का काम के रूप में
बहुत बडे काम किये। मुसलमान के द्वारा नष्ट हुए मंदिर फिर से बनाए, गरीबों के लिए अस्पताल बनाए, नदी घाट बनाए, और यह सब अपने निजी धन से किया।
दुर्भाग्य से, जिस रानी ने इतने बड़े काम किये पर लङका नशेड़ी व बुरा निकला। एक बच्चे की दर्दनाक मौत आंखों के सामने देखनी पड़ी अहिल्याबाई को। बहुत प्यारी बेटी मुक्ता अपने पति के पीछे सती होकर चली गई ।
स्वयं सती होजाने से पीछे हटने वाली अहिल्याबाई बेटी कोनहीं रोक पाई। उसका बेटा, उनका पोता, वह भी उनकी आँखों के सामने मर गया। यह सब आघात वे झेलती हैं । पर अपनी जनता और किसान के लिए जीवित रहती हैं।
बेदाग चरित्र, तेज प्रशासक इस मजबूत महिला का चरित्र वास्तव में प्रेरणादायक है। उनकी जयंती पर यह पुराना लेख फिर से साझा कर रहा हूँ।
नमामि देवी नर्मदे
एक समय की बात है दुर्गाबाई भागवत का अहिल्यादेवी होलकर पर लेख ‘महेश्वराची महाश्वेता’ पढकर मन अभिभूत हो गया। देवी अहिल्याबाई के उज्ज्वल, सभ्य व्यक्तित्व,था पर निजी जीवन में उनको एक के बाद एक पहाड़ जैसे दुख झेलना पड़े। लेकिन उन्होंने न केवल इन्दोर , बल्कि पूरे भारत में गरीबों, पीड़ितों, धर्म और भगवान के लिए, हिंदुत्व के लिए महान काम किए । उनक किये गए कार्यों का मन में सम्मान किया है,। और उसके उपवास ने मेरे कोमल मन को प्रभावित किया था। तब से अहिल्याबाई और उनके प्रिय महेश्वर मन में विराजमान थे। किसी का दिया हुआ मोर पंख का टुकड़ा किताब के पन्नों में रख देना चाहिए।
महेश्वर के विशाल पत्थर बंधिव घाट की सीढियां पर नर्मदे धीरे से गुदगुदी करती है, महेश्वर में ही बुनाई हुई माहेश्वरी साड़ी, झूले में नर्मदा का प्रचंड प्रवाह, सफेद साड़ी में अहिल्याबाई की कृष मूर्ति, हाथ में बेलपत्र से सजी शिवलिंग, बिन देखे सब मन में बैठे थे। पांच साल पहले जब पहली बार महेश्वर गया था बहुत साल बाद माहेरी जाकर बहुत खुशी हुई
इंदौर। मल्हारराव होल्कर मध्य भारत में अपने कर्तव्य से निर्मित एक इवलंस संस्थान है। मल्हारराव का एक ही पुत्र था अहिल्याबाई के पति खंडेराव होलकर कुंभेरि के युद्ध में खंडेराव शहीद हो गये । मल्हारराव ने उस समय के बचाव आंदोलन की तरह जब अहिल्याबाई सती होने पीछे जाने गयी तो उनकी आँखों में आँसू ला कर वापस खींच लिया। वे जानते थे अहिल्याबाई के व्यक्तित्व को। आगे मल्हारराव ने पूरा राजकारभार उनको सोंप दिया। उस समय देश में धर्मांध मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अनेक हिन्दू मंदिर तोड़ दिए थे। वो जख्म जो मंदिरों पर पड़े थे वो पत्थर की दीवारों पर ही नहीं लगे थे बल्कि उन जख्मों ने हिंदुओं के दिल भी बिखरा दिए। जब अहिल्यादेवी ने सोमनाथ और काशी को नये शिवालय बनाने का प्रयास किया तब वो पत्थर मिट्टी की इमारत नहीं बल्कि आम हिन्दुओं के हौसले बना रहे थे। लगातार हार के कारण गंडुल की तरह लिब्लिबी बन गए आम हिन्दू समाज को कभी अहिल्याबाई शिक्षा दे रही थी।
आज भी अगर भारत का नक्शा देखोगे तो हर जगह अहिल्याबाई के पद चिन्ह नज़र आएंगे। भारत के लोग आज भी अपनी बनाई नदी पर घाट पर तीर्थ स्नान करने जाते हैं। काशी-सोमनाथ से लेकर गगया तक उनके बनाये मंदिरों में आज भी हिन्दू दर्शन के लिए लगे हैं ।कतारें हिमालय के बद्रीकेदार से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक इनके द्वारा निर्मित धार्मिक निर्माण हम पा सकते हैं। वो धर्मशाला आज भी थके हुए, तीर्थयात्रियों को शरण देते हैं। अहिल्याबाई ने अपने पूरे अट्ठाईस साल के करियर में खुद उपवास करके, अपनी व्यक्तिगत जरूरतों को कम करके ये सब जबरदस्त काम किया। अपनी निजी संपत्ति के पैसे से धर्म के लिए पहाड़ की तरह काम किया अहिल्याबाई ने।
सुना है औरंगज़ेब ने टोपी बुनकर कुरान की लिखावट करके कफ़न के लिए पैसे जमा किए थे, लेकिन अहिल्याबाई सालों तक भक्त रही, एक साधारण सफेद माहेश्वरी सूती साड़ी, महा रानी के बदन पर कोई और कपड़ा नहीं पहना। । जब तक रूद्राक्ष का हार नहीं बनता तब तक वे अपने शरीर में दूसरा आभूषण नहीं लाये। अपने महेश्वर को रजवाड़ा लेने जैसा भव्य दिव्य और भव्य कभी नहीं बनाया।। आप में से कितने लोग अहिल्याबाई ने इतना करके जो पैसा बचाया, मंदिर निर्माण, नदी घाट, धर्मशाला आदि खर्च किया, उसका इतिहास जानते हैं?
पिछले सप्ताह एक बार फिर महेश्वर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। को-ऑप्टेक्स, तमिलनाडु के एमडी वेंकटेश नरसिंहन द्वारा आयोजित दौरे के भाग के रूप में हम महेश्वर गए कि कैसे माहेश्वरी साड़ी बुनती है। मेरा पहला महेश्वर यात्रा पहले गर्मियों में हुआ था तो नर्मदा का बहाव कुछ कम हुआ और निमाड़ की गर्मी भी कम हुई। इस बार हालांकि महेश्वर की सुहावना सर्दियों का अनुभव हुआ। इस वर्ष बहुत बारिश हुई इसलिए नर्मदा का बहाव बहुत व्यापक और व्यापक था। घाट पर पहुचे तो ठंडी शाम थी. बस अभी-अभी वो धमाके करने लगे थे। नर्मदापार गांव के लोग मार्केटिंग करके अपने गांव लौटे थे। नर्मदा का प्रवाह शांत था। जिस जगह हम खड़े थे वहाँ अहिल्यादेवी भी कभी खड़ी होगी, । महेश्वर की जनता के लिए आज भी अहिल्याबाई ‘रानी माँ’ हैं। महेश्वर में उनके अस्तित्व को आज भी महसूस करते हैं।
सूरज धीरे धीरे क्षितिज की ओर झुक रहा है। धारा में खड़ी एक बड़ी चट्टान जैसे चल रही थी, ग्रामीणों से भरी नावें धीरे धीरे पानी को काट रही थी नर्मदा बहाव अब नदी के बहाव पर सूर्य का रसदार लालची गोला झुक रहा था, जैसे माँ नर्मदे के माथे पर कुंकवा का तिलक हो। अब घाट पर भीड़ कम थी। धारा के ठीक पास ही एक महिला घाट के अंतिम चरण पर खड़ी थी डूबते सूर्य को अर्ध्य चढ़ाते हुए। चारो तरफ मौन सन्नाटा, बस नर्मदा की धीमी बहती लहरों की आवाज और हमारी गहरी सांस। मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गए।
एक गुरुजी तबक लेकर आये पूजा की तैयारी करते हुए। दैनिक नर्मदा आरती का समय हो गया। यह आरती ऋषिकेश या वाराणसी की गंगा आरती जितनी भव्य नहीं है, बस सरल, घर का बना, उतनी तेजस्वी और शांत है जितनी अहिल्याबाई का व्यक्तित्व है। एक गुरुजी आरती करते हुए दूसरा उनके पीछे ताली और तीसरा युवक उनके पीछे कोरस में गाते हुए। बस इतना ही है। सिर्फ तीन लोग और हमारा ग्रुप भी आरती में सम्मिलित हो गया।
आरती हो गयी और वो गुरुजी स्वच्छ स्वर में आदि शंकराचार्य जी का नर्मदाष्टक कहने लगे।
सबिन्दुसिन्धुसुस्खलत्तरङ्गभङ्गरञ्जितं
द्विषत्सु पापजातजातकारिवारिसंयुतम् ।
कृतान्तदूतकालभूतभीतिहारिवर्मदे
त्वदीयपादपङ्कजं नमामि देवि नर्मदे…..
मनमोहक संध्या थी, आदि शंकराचार्य जी के अलौकिक शब्द, नर्मदामय्या की अनन्त धारा, माँ अहिल्याबाई की कृपा, नर्मदा के प्रवाह के साथ बहते ड्रोन के दीप और हमने मंत्रमुग्ध कर के सुना। जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं जब आप उन्हें अनुभव करते हैं जो सार्थक महसूस करते हैं। नर्मदेकाठ की वो शाम कुछ ऐसी ही थी।
शेफाली डॉक्टर।
जय श्री राधे राधे जी।
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