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November 22, 2024 10:46 am

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श्रीसीतारामशरणम्मम(32- 2),“कलियुग और कल्कि अवतार”भागवत की कहानी – 66,भक्त नरसी मेहता चरित (66) & श्रीमद्भगवद्गीता : नीरु आशरा

श्रीसीतारामशरणम्मम(32- 2),“कलियुग और कल्कि अवतार”भागवत की कहानी – 66,भक्त नरसी मेहता चरित (66) & श्रीमद्भगवद्गीता : नीरु आशरा

🙏🥰 #श्रीसीतारामशरणम्मम 🥰🙏

#मैंजनकनंदिनी…. 3️⃣2️⃣
भाग 2

( माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)
🌱🌻🌺🌹🌱🌻🌺🌹🥀💐

जब तें राम ब्याही घर आए ……..
📙( रामचरितमानस )📙
🙏🙏👇🏼🙏🙏

मै वैदेही ! ……………._

सुदिन सोधि कर कंकण छोरे।
मंगल मोद विनोद न थोरे॥
💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫🍃💫

बोली एक नारी सुनो अवध बिहारी यह शंभुधन है न जाय बैग गहि तोरोगे।
रसिक बिहारी हौ तिहारी चतुराई तब जानौगी सुकंकण की गांठ जब छोरोगे॥
ताछिन छबीली एक दूजी हंस बोली श्याम आज धीरताई वीरताई सब बोरोगे।
तुम पै न तो लौकवै छूटहै छबीलेलाल जौ लौ नाहीं जनकलली के कर जोरोगे॥
💫🌾💫🌾💫🌾💫🌾💫🌾💫

ऐसा ब्राह्मण ? श्रीमन्त ब्राह्मण ! लगता है ब्राह्मणों में अपवाद है ये …..है ना बहू ! मुझे ही ये सारी बातें बताती थीं मेरी सासू माँ ।


हम दोनों बैठे हैं ………………मेरे श्रीरघुवर राम ……और मैं ।

सारी तैयारियां हो चुकी हैं……..पर वो ब्राह्मण अभी तक नही आया ।

गुरुमहाराज ! आएगा न वो ब्राह्मण ? कहीं हमारी ये विधि अधूरी न रह जाए……चक्रवर्ती महाराज नें अपनें गुरु वशिष्ठ जी से कहा था ।

नही आएगा वो ……………ब्राह्मण बात का पक्का है ………….इसलिये आएगा ……………गुरु वशिष्ठ जी नें कहा ।

तभी एक विमान अवध के आकाश में उड़नें लगा था ………..

सब लोग देख रहे थे उस विमान को ………………

लगता है वो ब्राह्मण आगया ……………….गुरु महाराज , चक्रवर्ती अवध नरेश को लेकर बाहर गए ………………।

बड़ा अजीब ब्राह्मण था वो …………वो हमारे पास आरहा था …..तो वैदिक मन्त्रों का उच्चारण स्वयं उसके देह से हो रहा था …….

उसकी चाल ! गम्भीर थी ………मानों कोई गजराज चल रहा हो ।

वो आया था हम लोगों के पास …………………….

मैने घुँघट से उसको देखा ……………….मैं चौंक गयी ।

रावण ! ओह ! ये तो दशानन रावण है ।

मैने अपना घूँघट हटा दिया था ………………रावण मुझे देखता रहा ।

वैदेही !

वो मुझे देखता रहा ।

फिर उसनें हम दोनों के हाथों में बन्धे कँगन को खोला ।

वो मुझे देखता जा रहा था ।

हे वैदेही ! हे मैथिली ! हे जनक दुलारी !

उसकी आवाज आकाश की तरह गम्भीर थी …………मेरा नाम स्पष्ट सब लोगों के सामनें ले रहा था रावण ।

क्रमशः ….
शेष चरिञ अगले भाग में……….


💐🥀🌹🌺🌻🌱💐🥀🌹🌺🌱
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥

ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
💐🥀🌹🌺🌻🌱💐🥀🌹🌺🌱

“कलियुग और कल्कि अवतार”भागवत की कहानी – 66


श्रीशुकदेव कहते हैं – हे राजा परीक्षित ! भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन के पश्चात ही कलियुग आरम्भ हो जाएगा …..इस युग की आयु चार लाख बत्तीस हजार वर्ष की है ……जब तक भगवान श्रीकृष्ण धरा धाम पर थे तब तक कलियुग की हिम्मत नही हुई वो आजाए …लेकिन जैसे ही भगवान अपने धाम गये कलियुग आगया । और इसनें तुरन्त ही अपना प्रभाव दिखाना आरम्भ भी कर दिया था ।

श्रीशुकदेव कहते हैं – कलियुग जैसे जैसे बढ़ेगा …लोग धर्म को मानना छोड़ देंगे ….धर्म की व्याख्या अपने स्वार्थ को देखकर किया जाएगा । पृथ्वी रहने लायक नही रहेगी । मनुष्य ने इतना कचरा ( प्लास्टिक ) पैदा कर दिया होगा कि चारों ओर वही वही होगा । कचरे को समुद्र में भी डाला गया था इसलिए तो समुद्र में अब कोई जीव बचा नही है …कुल मिलाकर समुद्र भी कचरा से भरने लगा है । पृथ्वी में तो वृक्ष हैं हीं नहीं …..इसलिए वर्षा भी अब नही होती । मनुष्य की कुल आयु तीस वर्ष की हो चुकी है …..पाँच छ वर्ष की लड़कियाँ गर्भवती हो रही हैं …..पृथ्वी में जन संख्या के बढ़ने से अब स्थान की भी कमी हो रही है ….इसलिए मनुष्य को अब बौना बनाया जा रहा है ….इंजेंक्शन आदि से । मनुष्य से एक भारी गलती हो गयी है कि उसने मशीनी आदमी ( रोबोट ) बना डाले ….अब ये मशीन मनुष्य पर ही हावी हो रहे हैं । अन्न की उपज है नही ….लेकिन मनुष्य ने कृत्रिम अन्न बना दिए …अन्न के सारे गुण कृत्रिम रूप से उसमें डालकर ( टेबलेट ) वो खाता है अब मनुष्य । साँस लेने लायक अब वायु नही है …वायु में विष घुल चुका है ….ये मनुष्य का ही तो किया धरा है ।

हे राजा परीक्षित ! शुकदेव कहते हैं ……शुरुआत के कलियुग में राजा होंगे लेकिन सारे के सारे राजा अल्प अवधि के लिए ही होंगे ….क्षत्रिय राजा नही रह जायेंगे …यवन आकर राज्य को चलायेंगे ….फिर उसके बाद ग्यारह सौ वर्ष तक मौन होकर राजा को चुनने की व्यवस्था बनेगी …..( जो अभी चुनाव व्यवस्था चल रही है ) हे परीक्षित ! इस तरह पाँच पाँच वर्षों में राजा आयेंगे और चले जायेंगे ……फिर इसके बाद राजा पूर्ण अधार्मिक होंगे …..और फिर जैसा राजा होगा प्रजा भी वैसी ही होगी । मनुष्य की आयु ही कम नही होगी ….उनकी लम्बाई भी एक फुट या दो फुट तक की रह जाएगी …..ऐसी ऐसी औषधियाँ ये कलियुगी मनुष्य खायेंगे …जिसके कारण ही ये जिएँगे…..नही तो कब के मर जाते ….क्यों की अन्न नही …पानी नही ..और शुद्ध वायु नही । अब आपस में मनुष्य लड़ेंगे ….एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को मारने के लिए अस्त्र बनाएगा ……शुकदेव कहते हैं …हे परीक्षित ! इन कलियुगी राजाओं का ध्यान प्रजा को सुख देना , प्रजा के अच्छे के लिए काम करना …ये सब नही होगा …होगा ये कि राष्ट्र का धन …दूसरे राष्ट्र को समाप्त करने में राजा लोग लगायेंगे । वो उस राष्ट्र को ख़त्म करने की सोचेगा और ये इस राष्ट्र को । लोग आलसी हो जायेंगे …धर्म नामकी कोई वस्तु नही रह जाएगी …..धर्म अगर दिखाई भी देगा तो वो पूर्णनाटकीय होगा …..शूद्र लोग में उपदेशक बनेंगे, वेद आदि की मन मुताबिक़ व्याख्या होगी …..साधु संत कहीं दिखाई देंगे नही …दिखाई भी देंगे तो वो पाखण्डी ही होंगे ….बस बाहरी दिखावे के सिवा उनमें और कुछ नही होगा । जिसमें शक्ति होगी , धन होगा वही महान कहलायेगा । जटा और नख जिसके बड़े होंगे वही साधु माना जाएगा । शुकदेव कहते हैं – इस तरह कलियुग अपना प्रभाव पूरी तरह से पृथ्वी में छोड़ देगा …लोग बहुत छोटी छोटी बातों में एक दूसरे की हत्या कर देंगे । सत्ता कब बदल जाएगी ये पता नही चलेगा । सत्ता के लिए भाई भाई को मारेगा …पुत्र पिता की हत्या करने में भी संकोच नही करेगा । लोग बहुत हो जाएँगे पृथ्वी में । अब जगह नही बची है पृथ्वी में …इसलिए एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को पूरी तरह से मिटा देगा …..लोग धुएँ की तरह उड़ जाएँगे …किसी को दया नही आएगी …दया , सत्य , करुणा , स्नेह ये सब बेकार की बातें होंगी ….इन बातों को कोई सुनेगा नही । युद्ध आए दिन होते रहेंगे और लोग मरते रहेंगे ।


पृथ्वी हंस रही है ….कलियुग ने पृथ्वी को हंसा दिया है …..ये हंसना सुख का नही है …ये हंसना अति दुख के कारण है । हे परीक्षित ! पृथ्वी हंसती है कलियुग के लोगों की सोच पर …इनकी बुद्धिमत्ता पर । पृथ्वी के एक छोटे टुकड़े को लेकर ये कलियुगी मनुष्य एक दूसरे की हत्या कर देते हैं …..तब पृथ्वी हंसती है ……वो कहती है ….मेरे ऊपर पुरुषोत्तम श्रीराम ने राज्य किया , सत्यवादी हरिश्चन्द्र ने शासन किया …यदु , रघु आदि कितने कितने प्रतापी राजा हुए लेकिन एक दिन वो सब कुछ यहीं छोड़कर चले गये …..लेकिन ये कलियुगी राजा ! पृथ्वी कहती है ….ये लोग मेरे लिए एक दूसरे की हत्या करते हैं और सोचते हैं कि ये मुझे अपने साथ ही ले जायेंगे ।
पृथ्वी हंसती है …….शुकदेव कहते हैं ।


अब तो दुर्बल को मारा जा रहा है …सबल ही उत्तम है …और निर्बल अधम है ….ये सब कलियुग का ही प्रभाव है । वर्ण व्यवस्था कब की ख़त्म हो चुकी है ….यज्ञ आदि अब होते नही हैं …..भजन कोई करता नही है ….बस भोग वृत्ति सबकी बन गयी है ….स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध, उसके लिए ही सारे प्रयास हो रहे हैं ….काम वासना के कारण स्त्री निर्लज्ज हो चुकी है ….अपने पति को छोड़कर वो किसी के साथ भी जा सकती है …पति भी ऐसा ही हो गया है । अब जब माता पिता ऐसे होंगे तो सन्तानों से क्या अपेक्षा रखोगे । विश्व युद्ध छिड़ जाएगा …..आपस में सब मर कट जायेंगे ……तभी भूकंप अग्नि वर्षा आदि घटनायें घटनी आरम्भ हो जाएगी …..चारों ओर त्राहि त्राहि मच जाएगी …..शुकदेव कहते हैं ।


“भगवान परशुराम की प्रतीक्षा कर रहे हैं हम लोग”……कलाप ग्राम में आज सभा बैठी है …सप्त चिरंजीवियों की …”कलियुग का आतंक चरम पर है …क्या करें , कुछ समझ नही आ रहा “। लंकापति विभीषण ने कहा ।

जो बात हमारी समझ में न आए उसे भगवान के ऊपर छोड़ देना चाहिए …
ये बात श्रीरामभक्त हनुमान जी ने कही थी ।

सब लोग अब प्रतीक्षा कर रहे हैं भगवान परशुराम की …….तभी आकाश मार्ग से भगवान परशुराम उतरे …….उनको सबने प्रणाम किया ….फिर भगवान परशुराम ने कहा …..संभल ग्राम में विष्णुयश नामके ब्राह्मण के यहाँ ….भगवान विष्णु, कल्कि के रूप में अवतार लेकर आ रहे हैं ।

ये सुनते ही कलाप ग्राम में आनन्द छा गया था ।


विष्णु यश नामक ये ब्राह्मण हैं …सदाचारी हैं ….इतने घोर कलियुग में भी ये पूर्ण सदाचार का पालन करते हैं ……इन्होंने एक ग्राम ऐसा तैयार किया है ….संभल ग्राम , जिसमें पीपल के अनेक जंगल हैं …और नीम आदि के भी ….तुलसी का वन विशेष है ……इस गाँव को इन्होंने छुपाकर रखा है …..यहाँ सामान्य कोई पहुँच नही सकता । इन्हीं ब्राह्मण पत्नी की कुक्षि से भगवान कल्कि का अवतार होता है …..इनके पास एक अश्व आकाश से उतर कर आता है …..भगवान परशुराम इन्हें धनुष और तलवार देते हैं ……दिव्य शक्तियाँ इन्हें समस्त ऋषि मुनि प्रदान करते हैं ……तब ये कलियुगी राजाओं पर टूट पड़ते हैं ……ये काट डालते हैं सबको …..जो जो अधर्म का मूल बन बैठा है उसका संहार करते जाते हैं पूरी पृथ्वी में ………….हे परीक्षित ! इस तरह कल्कि भगवान कलियुग का अंत करते हैं …..नभ से घनघोर वर्षा होती है …जिसमें सब कुछ बह जाता है …या कहें धुल जाता है ……और पृथ्वी सुन्दर स्वच्छ हो जाती है …….इसके बाद सतयुग का आरम्भ होता है ……भागवत में शुकदेव यही कहते हैं ।

भक्त नरसी मेहता चरित (66)


मुरली वाले से
नन्द लाला से
गोकुल ग्वाला से जिनकी प्रीत है,
मानो दुनिया में उनकी ही जीत है

बड़ा प्यारा नट खत नन्द लाल रे,
वो सब का दुलारा गोपाला रे,
जिसके होठो पे भगति के गीत है ,
मानो दुनिया में उनकी ही जीत है

मोहन जिस पे है होता किरपला रे ,
उस के जीवन में करता उजाला रे
जिसकी भावना में भगति पुनीत है,
मानो दुनिया में उनकी ही जीत है

श्याम सूंदर से नैना लगाओ रे सुने जीवन में प्रेम को सजाओ रे,
जिसके तन मन भगति संगीत है,
मानो दुनिया में उनकी ही जीत है

🌸👏👏🌸

भक्तराज नरसीराम भगवत कृपा से प्रसन्न हो भाव विभोर

” कौन है ?” सोये -सोये धरणीधर ने प्रश्न किया। __

भक्तराज रूप ‘भगवान श्रीहरि’ ने कहा – ” द्वार खोलिये । मैं नरसि़ंहराम हूँ । ऋणमुक्त होने के लिये आया हूँ । “

भक्तराज की आवाज सुनकर धरणीधर की स्त्री ने द्वार खोल दिये । भक्तराज रूप भगवान के सामने आने पर धरणीधर ने नमस्कार किया और कहा- ” भक्तराज ! इतनी कौन -सी जल्दी थी कि आपने इस समय कष्ट किया ? अगर कुछ दिन रुपया रह भी जाता तो कोई हर्ज नहीं था । “

भक्तराज नें उत्तर दिया – “भाई ! यह तो ठीक ही है । परंतु जब एक उदार गृहस्थ से रुपये मिल गये तब उन्हें घर पर रखने से लाभ ही क्या ? फिर इसी समय मुझे केदारराग गाने की भी बड़ी देर हो रही है, इसी से विचार किया कि अभी चलकर रुपये दे दूँ और राग को छुड़ा लाऊँ ।”

भगवान ने इतना कहकर धरणीधर के सामने साठ रुपये रख दिये । धरणीधर ने रुपये गिनकर रख लिये और ‘
नरसि़ंहराम के प्रतिज्ञा पत्र पर भरपाई लिखकर उसे भगवान को दे दिया ।’

प्रतिज्ञा पत्र लेकर भगवान राजमहल के मन्दिर में आये जहाँ व्यथित हृदय भक्तराज एकाग्रचित् से भगवद्भजन और ध्यान कर रहे थे ।

‘भगवान ने अन्तरिक्ष से उस पत्र को भक्तराज के सामने गिरा दिया । परंतु इस बात को भक्तराज के अतिरिक्त और किसी ने नहीं देखा । भक्तराज ने पत्र सामने गिरते देख कौतूहलवश उसे उठा लिया । उन्होंने जब यह देखा कि यह तो मेरा ही प्रतिज्ञा पत्र है तब तो उन्हें बड़ा विस्मय हुआ ,फिर उन्होंने उस पर के नवीन अक्षरों को पढा़ । उसमें लिखा था – ‘आज आधी रात को जगाकर नरसि़ंहराम ने मेरे साठ रुपये चूका दिये । अतएव मैने भरपाई लिख दी, अब वह केदारराग प्रेम से गा सकते है ।” –धरणीधर राय।

पत्र पढ़ते -पढ़ते भक्तराज के नेत्रों में प्रेमाश्रु छलक पड़े, कण्ठ भर आया, शरीर में रोमांच हो आया ।

न निन्दितं कर्म तदस्ति लोके,
सहस्रशो यन्न मया व्यधायि।
सोऽहं विपाकावसरे मुकुन्दः ,
क्रन्दामि सम्प्रत्यगतिस्तवाग्रे ।।

हे भोग एवं मोक्ष को प्रदान करनेवाले मुकुन्द ! संसार मेँ ऐसा कोई निन्दित कर्म नहीँ बचा है जिसे मैँने हजारो बार नही किए हैँ । ऐसे भयंकर महान पापोँ को करने वाला मैँ अब जब समस्त कृत पाप पककर फल देने की अवस्था मेँ पहुँच गये हैँ तब दुःखो से अपनी रक्षा हेतु अन्य को रक्षक न पाकर आपके सामने रो रहा हूँ ।।

अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवास्थितम् ॥

*’हे प्रभो ! आप सभी जीवों के बाहर और भीतर एकरस स्थित हैं, फिर भी इन्द्रियों और वृत्तियों से देखे नहीं जाते क्योंकि आप प्रकृति से परे आदिपुरुष परमेश्वर हैं. मैं आपको बारम्बार नमस्कार करता हूँ.

उन्होंने सोचा यह कार्य भी भगवान् का ही किया हुआ है । वह प्रेम में उन्नत होकर नाचने लगे । उनकी इस स्थिति को देखकर वहाँ पर उपस्थित लोग नाना प्रकार की कल्पनाएँ 9अपने मन में करने लगे । अनन्तराय ने कहा– “देखो, अब पोल खुल जाने के भय से यह पागल बनने का दम्भ कर रहा है ।”

सरंगधर ने कहा – “प्रातःकाल होते ही राजा की तलवार से अपने -आप उसका पागलपन दूर हो जायेगा ।”

क्रमशः ………………!

श्रीमद्भगवद्गीता

अध्याय 10 : श्रीभगवान् का ऐश्वर्य
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श्लोक 10 . 36
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द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् |
जयोSस्मि व्यवसायोSस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् || ३६ ||

श्रीमद्भगवद्गीता

द्यूतम् – जुआ; छलयताम् – समस्त छलियों या धूतों में; अस्मि – हूँ; तेजः – तेज, चमकदमक; तेजस्विनाम् – तेजस्वियों में; अहम् – मैं हूँ; जयः – विजय; अस्मि – हूँ; व्यवसायः – जोखिम या साहस; अस्मि – हूँ; सत्त्वम् – बल; सत्त्व-वताम् – बलवानों का; अहम् – मैं हूँ |
भावार्थ
🪷🪷🪷
मैं छलियों में जुआ हूँ और तेजस्वियों में तेज हूँ | मैं विजय हूँ, साहस हूँ और बलवानों का बल हूँ |

तात्पर्य
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ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार के छलियाँ हैं | समस्त छल-कपट कर्मों में द्यूत-क्रीड़ा (जुआ) सर्वोपरि है और यह कृष्ण का प्रतीक है | परमेश्र्वर के रूप में कृष्ण किसी भी सामान्य पुरुष की अपेक्षा अधिक कपटी (छल करने वाले) हो सकते हैं | यदि कृष्ण किसी से छल करने की सोच लेते हैं तो उनसे कोई पार नहीं पा सकता | इनकी महानता एकांगी न होकर सर्वांगी है |
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वे विजयी पुरुषों की विजय हैं | वे तेजस्वियों का तेज हैं | साहसी तथा कर्मठों में वे सर्वाधिक साहसी और कर्मठ हैं | वे बलवानों में सर्वाधिक बलवान हैं | जब कृष्ण इस धराधाम में विद्यमान थे तो कोई भी उन्हें बल में हरा नहीं सकता था | यहाँ तक कि अपने बाल्यकाल में उन्होंने गोवर्धन उठा लिया था | उन्हें न तो कोई छल में हरा सकता है, न तेज में, न विजय में, न साहस तथा बल में |


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