जय श्री कृष्ण जी।
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मोहे तो भरोसो तिहारो री किशोरी राधे
मेरी प्यारी जु, सच आपकी करुणा का आश्रय ही तो मेरा जीवन है।
आपका नाम, आपका प्रेम , आपके लिए व्याकुलता यदि क्षण मात्र भी इस कलुषित जीवन मे उठती है , स्वामिनी जु यह आपका ही तो प्रेम है।
प्रेम और करुणा ही तो स्वभाव है न आपका , मेरा स्वभाव तो विमुखता , जन्म जन्म की विमुखता ही ।
हाँ किशोरी जु, आपके नाम लेने का सामर्थ्य भी तो आपकी करुणा बिना सम्भव नहीं है।
अपने पर दृष्टि जाती है न स्वामिनी जु, तो लजा ही जाती हूँ,
वाणी ही मूक हो जाती है, आपका प्रेम सच मे किसी पुण्य का फल नहीं, किसी साधना का फल नहीं, ऐसा कोई बल ही नहीं जिससे आपका प्रेम प्राप्त हो सके।
वास्तव में आपका प्रेम तो नित्य ही है न किशोरी जु। विमुखता के साथ विस्मृति भी तो हमारी ही है न । स्वामिनी यही विस्मृति अब पीड़ा हो गई।
क्यों विस्मृत किया अपने प्राणधन श्रीश्यामाश्याम को। जन्म जन्म की विमुखता ने ही ऐसे आवरण कर दिए स्वामिनी , जिससे आपकी करुणा भी न निहार पाई यह बाँवरी।
सच एक एक नाम पुकारना भी अब ऐसे लगता जैसे आपकी ही चरण रज को छू लूँ किशोरी जु।
यह नाम भी आपकी ही करुणा से निकल रहा हृदय से, आपको पुकारने भर की सामर्थ्य भी नहीं न इस मलिन के पास।
बस एक ही आशा इस दासी के जीवन की जो इसमें प्राणो का संचार कर देती । आपका नाम , हाँ किशोरी जु आपका नाम , बस यही बल दो की आपको पुकारती ही रहूँ।
किसी दिन मेरी स्वामिनी मुझे ऐसे पुकार लें कि मेरी जन्म जन्म की विस्मृति ही विस्मृत हो जाये। हाँ हाँ किशोरी जु ,
मैं तुम्हारी ही हूँ न , यह मैं ही भुलाय रही, आप कभी न भूली। आपकी करुणा ही मेरे जीवन का आधार है किशोरी जु।
मोहे तो भरोसो तिहारो री किशोरी राधे
मोहे तो भरोसो तिहारो री किशोरी राधे…….
हाँ मेरी श्यामाजु…..
जय श्री राधे राधे जी।
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