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September 14, 2025 12:18 am

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दरअसल, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े 2007 के कानून में बदलाव की पहल तब की, जब समाज में बुजुर्गों की अनदेखी व दुर्व्यवहार के मामले तेजी से बढ़े हैं। : किशोर वैष्णव

दरअसल, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े 2007 के कानून में बदलाव की पहल तब की, जब समाज में बुजुर्गों की अनदेखी व दुर्व्यवहार के मामले तेजी से बढ़े हैं। : किशोर वैष्णव

“अखिल विश्व अखण्ड सनातन सेवा फाउंडेशन”(पंजीकृत) द्वारा संचालित

अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳 सौजन्य

https://photos.app.goo.gl/9DxHay515CnthQtm8

मां बाप की सुध…

यह विडंबना है कि हमारे सामाजिक ताने-बाने में तेजी से आए बदलाव के बीच वृद्ध माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अदालतों में गुजारा-भत्ते से जुड़े विवाद बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं।

यही वजह है कि केंद्र सरकार वृद्ध माता-पिता की देखभाल के लिये बाध्य करने वाले 2007 के कानून में बदलाव लाकर, इसका दायरा बढ़ाने के मकसद से नये कानून लाने की तैयारी में है। माता-पिता और बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े वर्षों पुराने कानून को प्रभावी व व्यावहारिक बनाने की कोशिश है। पहले वृद्ध माता-पिता अपनी संतानों से दस हजार रुपये तक का गुजारा भत्ता पाने के हकदार थे।

बताया जा रहा है कि नये विधेयक के अनुसार अब माता-पिता का गुजारा भत्ता बच्चों की आर्थिक हैसियत से तय होगा। वहीं बच्चों के साथ कटुता कम करने के प्रयासों में माता-पिता व बुजुर्गों को त्यागने अथवा दुर्व्यवहार पर बच्चों को दी जाने वाली सजा में कमी करने की तैयारी है। सामाजिक संगठनों से विमर्श में यह बात सामने आई थी कि लंबी सजा से माता-पिता और बच्चों के संबंधों में ज्यादा खटास बढ़ती है।

कहा जा रहा है कि सरकार बजट सत्र में इस विधेयक को पेश कर सकती है। दरअसल, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े 2007 के कानून में बदलाव की पहल तब की, जब समाज में बुजुर्गों की अनदेखी व दुर्व्यवहार के मामले तेजी से बढ़े हैं।

दरअसल, नये विधेयक में इससे जुड़े कानून की व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, मंत्रालय ने कानून में बदलाव की पहल वर्ष 2019 में कर दी थी। इसी साल लोकसभा में एक विधेयक भी पेश किया गया था। इसके व्यापक पहलुओं की पड़ताल के लिये विधेयक को बाद में संसदीय समिति के पास भेज गया था। संसदीय समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने एक बार फिर एक विधेयक को संसद में पेश किया था। लेकिन वह पारित नहीं हो पाया था। कालांतर 17वीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के कारण विधेयक निष्प्रभावी हो गया था। जिसके बाद अब सरकार नये सिरे से इस विधेयक को संसद में लाने की तैयारी में है।

उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में कई नये प्रावधानों को जोड़ा गया है। एक ओर जहां गुजारा भत्ते के सीमित दायरे को खत्म किए जाने का प्रावधान है, वहीं विगत में आए बच्चों की सजा बढ़ाने के प्रस्ताव को टाला गया है। अब इसे सिर्फ प्रतीकात्मक तौर पर ही रखा जाएगा। वहीं गुजारा भत्ता देने की जवाबदेही का विस्तार करते हुए अब पात्र बच्चों के दायरे में दामाद, पुत्रवधु,नाती-पोते, पोती-नातिन व अल्पवयस्क बच्चों के विधिक अभिभावकों को भी शामिल किया गया है। अब तक इस जवाबदेही के दायरे में बेटा-बेटी व दत्तक बेटा-बेटी ही शामिल थे। इसके अलावा विधेयक में प्रत्येक जिले में बुजुर्गों की गणना, मेडिकल सुविधाओं से लैस वृद्ध आश्रम व जिला स्तर पर एक सेल गठित करने जैसे प्रावधान हैं।

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