श्रीकृष्णकर्णामृत - 68
बलि जाऊँ लला…
वक्षः स्थले च विपुलं नयनोत्पले च,
मन्दस्मिते च मृदुलं मदजल्पिते च,
विम्बाधरे च मधुरं मुरलीरवे च,
बाल विलास-निधिमाकलये कदा नु ॥६६॥
हे साधकों ! इस दिव्य रसराज्य की यात्रा थोड़ी गम्भीरतापूर्वक कीजिए ….ये दिल्लगी नही है …ये तो जीवन मरण का प्रश्न है ….इसमें अपने प्रियतम के साथ चलना है …हाँ , वो कभी छिप जाएगा तो कभी सामने आजाएगा ….ये खेल वो खेलता है…..ये खेल उसे बड़ा ही प्रिय है …इसलिए उसे खेलने देना ।
“श्रीकृष्णकर्णामृत” में आप लोगों ने पूर्व में सुना ही है कि – अपने प्रियतम के दर्शन की स्फूर्ति बिल्वमंगल को हो रही है ..उसी स्फूर्ति में उन्हें कभी श्यामसुन्दर चारों ओर दिखाई देते हैं तो कभी सामने । अब उनकी ये स्फूर्ति भी चली गयी है …इसलिए बिल्वमंगल आज- “कदा नु विलास निधि माकलये” कहते हैं ..यानि – हे विलास निधि किशोर! कब मैं तुम्हारे दर्शन करूँगा ।
कल के श्लोक में आप लोगों ने सुना कि …बिल्वमंगल कह रहे हैं ….”वो माधुर्य निधि है….बड़े मधुर है….मधुर के भी मधुर है” , आदि आदि । आज के श्लोक में बिल्वमंगल से मानों पूछा गया …कि बताओ वो कैसा मधुर है ? तो बिल्वमंगल उसका वर्णन करके आज बता रहे हैं ।
अरे ! तुम्हें क्या पता उस नव किशोर के वक्षस्थल विशाल हैं । बिल्वमंगल ये कहते हुए आनंदित हो उठते हैं ….उसके विशाल वक्ष हैं । फिर स्वयं ही कहते हैं …पता है क्यों ? इसलिए कि हम जैसे दीन दुखी भी इनके हृदय में आसकें । कितना करुणामय है ना ये लाला ।
बिल्वमंगल फिर कहते हैं …वो मधुर ऐसे ही नही है …उसके नयन भी विशाल हैं ….इसका मतलब नयन से मात्र नही हैं ….इसके भाव भी विशाल हैं …सोच भी विशाल है । यानि जन जन के प्रतिपाल हैं ।
अरे ! तुम लोगों को क्या पता मेरे नवल किशोर की ‘मंदस्मित’ अद्भुत है …उसके मुख में जब मंदस्मित छा जाता है , तब अस्तित्व खिल जाता है ….समस्त में आनन्द की धारा प्रवाहित होने लगती है । ‘स्मित’ हंसने को नही कहते ….हँसने में तो मुख खुलता है …दंतपंक्ति दिखाई देती हैं ..लेकिन ‘स्मित’ उसे कहते हैं ….जहाँ न मुख खुलें न दंत दीखें ….बस अधरों में और नयनों में मुस्कान तैर जाये …..जी , उसे ही कहते हैं …मंदस्मित । यहाँ बिल्वमंगल कहते हैं …मेरे नवल किशोर की मंदस्मित जादू है , यानि अधरों में और नयनों में मुस्कान लिए वो फिरता है ।
उस रसराज्य में आज घूमते हुए बिल्वमंगल विभोर हैं – इतना ही नही …मेरे नवकिशोर की “मद जल्पना” भी अत्यन्त मधुर है । तो किसी ने पूछा …मद ? और जल्पना ? मद तो कहते हैं गर्व को …मत्तता को । जी, बिल्वमंगल कहते हैं – किशोर वय में अगर मद नही है …तो कैशोर अवस्था ही क्या हुई ! और ये मेरा जो किशोर है ना …ये तो प्रेम की मत्तता में ही मत्त रहता है । मद के साथ यहाँ एक शब्द और है …’जल्पना’ । जल्पना यानि बकवास । हए ! इस किशोर की कभी बकवास सुनो , और बकवास ऐसे ही नही …मद से भरी बकवास । ऐसा लगता है सुनते रहो …जीवन बीत जाएगा लेकिन तुम तृप्त नही होओगे । कुछ भी बोलता है …बिल्वमंगल हंसते हैं ….”अजी” कितने प्यार से बोलता है , बस उसका ‘अजी’ कहना और हमारा कलेजा चूर हुआ ।
“बेदर्द कलेजा चूर करे , हंसकर तेरा ‘अजी’ कहन”
बिल्वमंगल कहते हैं – नही , इतना ही होता तो कोई बात नही थी …ओह , इसके तो वो अधर । पतले और अरुण अधर । किसी को भी बाबरा बना दे । उन अधरों पर धर कर ये जब वेणु बजाता है ….तो अस्तित्व पगला जाता है । अरे ! ये मेरा नव किशोर विलास निधि है ….हए ! अब मुझे बताओ , कोई बताओ …मैं कैसे उसे अपने नयनों का अलंकार बनाऊँ । कब मैं उसे अपने नयनों में बसाऊँगा, बिल्वमंगल फिर बिलख उठते हैं ।
क्रमशः….
Hari sharan
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