(भक्ति से मोक्ष

भक्ति करने से ही मोक्ष होता है । तथा यही मेरा जीवन का प्रथम व अन्तिम लक्ष्य है । भक्ति मार्ग’ पर चल कर मैं समाज की सेवा करना चाहती हूँ और परमात्मा की दिव्य प्रेम की अनुभूति के समीप जाने का सहज मार्ग निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज करना चाहता हूँ। इसके लिए मैं कठिन मेहनत कर रही हूँ I इस खोज का आरंभ, मध्य और अंत प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति को देनेवाली होती है। ‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, …‘‘भगवान् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है। भक्ति कर्म से श्रेष्ठ है और ज्ञान तथा योग से भी उच्च है, क्योंकि इन सबका एक न एक लक्ष्य है ही, पर भक्ति स्वयं ही साध्य और साधन-स्वरूप है।
बार बार हारने के बाद एक और बार प्रयास करना ….आशान्वित नज़रिया रखकर पूरे जतन से सफलता के लिए प्रयास करना ही मेरा जीवन लक्ष्य है । प…
पूरी ईमानदारी से एक अंतिम प्रयास एक और ……..कदम,भक्त पछताते नहीं हैं, क्योंकि उनके मन हमेशा परमानंद से परिपूर्ण होते हैं, वे न सम्मानित महसूस करते हैं न अपमानित। परमानंद के अतिरिक्त उनके मन में और कुछ नहीं होता है – आनंद का निर्बाध प्रवाह। इसीलिये वे दुख और सुख से अप्रभावित रहते हैं। केवल एक भक्त ही ऐसा कह सकती है, सिर्फ और सिर्फ एक भक्त बनना मेरे लिए एक गर्व की बात होगी और इससे मैं अपने और समाज को गर्वित कर सकूँगी। जय श्री जगन्नाथ👏

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