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July 20, 2025 8:27 am

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अनुचिंता-4(ईश्वरीय प्रेम) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman ईश्वरीय प्रेम क्या है? ऐसा प्रेम कहाँ से प्राप्त होगा?

अनुचिंता-4(ईश्वरीय प्रेम) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman ईश्वरीय प्रेम क्या है? ऐसा प्रेम कहाँ से प्राप्त होगा?


प्रेम ही वो सूत्र है जो हरेक आत्मा को आत्मा से और उस इश्वर से बिना स्वार्थ के जोड़ता है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने प्रेम के इसी स्वरुप की बात की है। श्रीमद्भगवत गीता में प्रेम के बारे में कहा गया है कि ‘प्रेम किसी को पाना नहीं, बल्कि उसमें खो जाना है! प्रेम वही है, जिसमें त्याग हो और स्वार्थ की भावना नहीं हो। प्रेम में त्याग करने से हम अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं’।
आध्यात्मिक प्रेम आध्यात्मिक संबंध में निहित प्रेम से होता है जो हमें अपने जीवन में अर्थ और उद्देश्य खोजते हुए, भगवान का अनुभव करवाता है। । ये आध्यात्मिक प्रेम विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं: कुछ हमारे साथ जीवन भर चलने के लिए होते हैं, जबकि अन्य हमें सबक सिखाने के लिए होते हैं। आत्मा का पहला फल प्रेम है I प्रेम पहले आता है, और हमारा बाकी विश्वास परमेश्वर के प्रेम के उस गहरे कुएँ से बहता है, जो हमें दिया गया है।

आदर उसी का करो जो उसका अधिकारी है, अव चाहे वो कोई पुरुष हो या फिर कोई नारी हो I
आत्मा अपने ही प्रकाश मे जब स्वयं को देखती है तो उसकी विमुग्धता का नाम है प्रेम।
प्रेम एक ऐसी भावना है जिसके कई रूप हैं लेकिन हर रूप में वह हमारे जीवन को मिठास से ही भरता है। पवित्र प्रेम शब्दों से परे एक एहसास है, जो रूह से महसूस किया जाता है, जिसके बिना हमें अपना जीवन निरर्थक लगता है, हम मृत प्राय हो जाते हैं।

आत्मा और आत्मा के संबंध का नाम प्रेम है, तो इसका अर्थ यह है कि प्रेम पूरे तरीके से एक आत्मिक घटना है, इसका वास्तव मे किसी दूसरे से कोई लेना देना नहीं है।
कई लोग इस प्रेम को कलुषित विचारों से मलिन कर लेते हैं या फिर गहराई से इसे समझ नहीं पाते और इस पर अत्यधिक विचार नहीं करते , अगर आप सोचते है कि आप बिना स्वयं को जाने, सत्य को जाने, बिना पूरे तरीक़े से जाग्रत हुए प्रेमी हो सकते हैं। आप प्रेम को छू भी नहीं पाएँगे, आपकी जिंदगी बीत जाएगी और अधिकांश मानवता ऐसे ही जीती है। सत्तर साल, अस्सी साल, सौ साल के होकर मर जाते है, प्रेम का एक पल उन्हें नसीब नहीं हुआ होता है। हालांकि आप उनसें पूछेंगे तो वो आपसे कहेंगे कि हाँ हाँ बड़ा सुखद, स्वस्थ, सामान्य जीवन है मेरा! मेंने प्रेम किया है, मेंने प्रेम पाया है। पर उन्हें कुछ मिला नहीं होता।
सच्चा प्रेम वही है जो कभी बढ़ता या घटता नहीं है। मान देनेवाले के प्रति राग नहीं होता, न ही अपमान करनेवाले के प्रति द्वेष होता है। प्रेम से दुनिया निर्दोष दिखाई देती है।
जिसनें आत्मा को नहीं जाना, उसका मन और जीवन प्रेम से सदा शून्य रहेगा, खाली! और दूसरी बात, जिसने आत्मा को जान लिया अब उसके जीवन से सिर्फ प्रेम की ही धार बहेगी, उसके एक-एक संबंध में प्रेम छलकेगा, प्रेम के अतिरिक्त अब वो और कुछ हो नहीं सकता, बाँट नहीं सकता – ये भी एक र्निविकल्पता ही है। आप चाहें तो भी आप हिंसक नहीं हो सकते। हिंसक होने का अभिनय कर सकते है, पर वो अभिनय भी आप प्रेम के कारण ही कर रहे हैं।
मन का मन से संबंध प्रेम नहीं, शरीर का शरीर से संबंध प्रेम नहीं, और कोई भी संबंध प्रेम नहीं। इसका अर्थ ये है कि अगर प्रेम की अभीप्सा उठती है मन में तो इतना निश्चय जान लीजिए कि बिना आत्म बोध के वो आपको नहीं मिलेगा।
आत्मा ही परमानन्द स्वरूप हैं, यदि आत्मा न हो तो शरीर से कौन प्रेम करेगा?
शरीर की बात नहीं है, तुम्हे जब भी प्रेम का अनुभव होगा, वो आत्मा से और आत्मा के प्रति ही होगा; आत्मा के अभाव में प्रेम हो नहीं सकता।
आत्म-प्रेम का अर्थ है अपने आत्मा को समझना, उससे जुड़ना, और उसे स्वीकार करना। यह एक ऊँचे स्तर का स्वानुभूति, स्वातंत्र्य और अध्यात्मिक विकास का माध्यम से व्यक्ति को अपने आत्म-सत्य की पहचान करने में मदद करता है, जिससे उसका मानवीय और आध्यात्मिक विकास हो सकता है।
और ऐसा प्रेम हो वहाँ बालक भी रहते हैं। अनपढ़ भी रहते हैं, और पढ़े-लिखे बैठे रहते हैं, बुद्धिशाली भी रहते हैं, सभी लोग समा जाते हैं, उठते नहीं। क्योंकि वातावरण इतना अधिक सुंदर होता है।
सिर्फ भगवन ही जो केवल प्रेम कि जीवंत मूर्ति हैं, प्रेम कि सही परिभाषा हैं।
यानी प्रेम है!

हे आनंदस्वरूप ! जब आप रथयात्रा के दौरान रथ में विराजमान होकर जनसाधारण के मध्य उपस्थित होते हे तो अपने प्रेमियों को बहुत ही प्रेम से निहारते हे,अर्थात अपना प्रेम वर्षण करते है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी लक्ष्मी जी सहित मेरे पथप्रदर्शक बने और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे |

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Author: admin

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