अनुचिंता-5(मन्दिर) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman

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अनुचिंता-5(मन्दिर) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman


नाहं तिष्ठामि वैकुंठे
योगिनाम हृदयेषु वा
तत्र तिष्ठामि नारद यत्र
गायंति मदभक्ताः
“मेरे प्रिय नारद, वास्तव में मैं अपने धाम वैकुंठ में नहीं रहता, न ही मैं योगियों के हृदय में निवास करता हूँ, बल्कि मैं उस स्थान पर रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरा पवित्र नाम जपते हैं और मेरे रूप, लीलाओं और गुणों की चर्चा करते हैं। हमारे मन भी एक मंदिर के समान हैं

             पांच तत्त्वों से ऊर्जा का सन्ग्रहण करके मनुष्य को ऊर्जा का प्रसाद वितरित करने के लिए मन्दिर बनाए जाते हैं । भगवान संपूर्ण सृष्टि के मालिक हैं, संपूर्ण सृष्टि में मौजूद पंचतत्व, प्राकृतिक ऊर्जाएं, समय, जीवन मृत्यु, बीमारियां, आपदाएं आदि आदि का मिश्रण ही भगवान है।

तो मेरे यह बताने का तात्पर्य था कि वेद काल से मंदिर बनाने का एकमात्र उद्देश्य यह था कि उसकी बनावट ऐसी हो और वह ऐसी जगह पर स्थित हो जिससे वह सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा संग्रह कर सके। मंदिर का स्थान ऐसी जगह पर हो जहां पृथ्वी का चुम्बकीय प्रभाव सबसे ज्यादा हो जिससे वह अधिक से अधिक ऊर्जा समा सके। और मंदिर में स्थित मूर्तियों को “गर्भगृह”, जहां वह मंदिर में सबसे ज्यादा चुम्बकीय ऊर्जा सोख सके, रखा जाता था। इसलिए जब हम इनकी परिक्रमा करते हैं या स्पर्श करते हैं तो इस ऊर्जा का कुछ अंश हमारे अंदर आता है। ये सब विज्ञान सिद्ध बातें है।
मंदिरों में लगी तांबे की घंटी बजाने से अगर आप सोचते हैं कि भगवान खुश होते हैं तो ऐसा नही है। इसके पीछे भी एक विज्ञान है। तांबे की घन्टी बजाने से आस पास के वातावरण में कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। अगरबत्ती जलाने एवं फूल चढ़ाने के पीछे भी एल कारण है- यह हमें ध्यान केंद्रित करने में सहायता करतें हैं जिससे कि हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। मंदिरों में जाने वाले श्रद्धालु सकारात्मक बातें सोचते हैं I
अगर मंदिर वैदिक तरीके से बनाया जाए और सही तरीके से तो उससे आम जन का कल्याण ही होगा। शांति और सकारात्मकता बढ़ेगी। सनातन धर्म और वेदों में लिखी एक एक बात के वैज्ञानिक कारण है जो मानवता के हित में हैं। किसी राह चलते ने नही लिखे हैं वेद।
मंदिर” किसका बने ? इस पर विचार करने की जरूरत है,
हे मधुसूदन ! विशाल सागर के किनारे, सूंदर नीलांचल पर्वत के शिखरों से घिरे अति रमणीय स्वर्णिम आभा वाले श्री पूरी धाम में आप अपने बलशाली भ्राता बलभद्र जी और आप दोनों के मध्य बहन सुभद्रा जी के साथ विध्यमान होकर सभी दिव्य आत्माओ, भक्तो और संतो को अपनी कृपा दृष्टि का रसपान करवा रहे है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथपर्दशक हो और मुझे शुभ दृष्टि प्रदान करे |
जय श्री जगन्नाथ🙏

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