॥ ॐ नमोः नारायणाय । ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ।।
माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों
धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं
।। ॐ नमोः नारायणाय। ॐ नमोः भगवते
वासुदेवाय ।।
माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों
धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं
तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने
धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में
गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में
भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्वरम में
विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण
पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के
नाथ अर्थात जगन्नाथ पुरी का जगन्नाथ धाम
चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ
बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ
विराजते हैं।
जगन्नाथ रथयात्रा : श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र
हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी
उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ
मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।
भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर
बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी
भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है। आज का उड़ीसा
प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता
था। यहां देश की समृद्ध बंदरगाहें थीं, जहां जावा,
सुमात्रा, इंडोनेशिया, थाईलैंड और अन्य कई देशों
का इन्हीं बंदरगाह के रास्ते व्यापार होता था।
jagannath puri mandir
पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह
भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे
श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल,
नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां
लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं।
ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान
विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए
और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए।
सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां
भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की
तरह है। पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की
मूर्तियों को काष्ठ से बनाते थे। जगन्नाथ मंदिर में
सबर जनजाति के पजारियों के अलावा ब्राह्मण
सबर जनजाति के पुजारियों के अलावा ब्राह्मण
पुजारी भी हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक
सबर जाति के दैतापति जगन्नाथजी की सारी
रीतियां करते हैं।
पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की
पूजा की जाती है। पुरुषोत्तम हरि को यहां भगवान
राम का रूप माना गया है। सबसे प्राचीन मत्स्य
पुराण में लिखा है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी
विमला है और यहां उनकी पूजा होती है। रामायण
के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के
भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता
भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा।
आज भी पुरी के श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की
परंपरा कायम है।
स्कंद पुराण में पुरी धाम का भौगोलिक वर्णन
मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार पुरी एक
दक्षिणवर्ती शंख की तरह है और यह 5 कोस यानी
16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। माना जाता है कि
इसका लगभग 2 कोस क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में डूब
चुका है। इसका उदर है समुद्र की सुनहरी रेत जिसे
महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है। सिर वाला
क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा महादेव करते
हैं। शंख के दूसरे घेरे में शिव का दूसरा रूप ब्रह्म
कपाल मोचन विराजमान है। माना जाता है कि
भगवान ब्रह्मा का एक सिर महादेव की हथेली से
सपने में हुए थे जगन्नाथ के दर्शन। कई ग्रंथों में राजा
इंद्रदयुम्न और उनके यज्ञ के बारे में विस्तार से लिखा
है। उन्होंने यहां कई विशाल यज्ञ किए और एक
सरोवर बनवाया। एक रात भगवान विष्णु ने उनको
सपने में दर्शन दिए और कहा नीलांचल पर्वत की
एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते
हैं। तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति
स्थापित कर दो। राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल
पर्वत की खोज में भेजा। उसमें से एक था ब्राह्मण
विद्यापति। विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर
कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और
उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत
की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि
सबर कबीले का मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का
उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा
है । चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर
लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए
नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया।
उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी।
विश्ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से
बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त के दुख से भगवान भी
दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन
साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक
दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन
उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे | राजा ने मंदिर
बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में
विराजमान होने के लिए कहा। भगवान ने कहा कि
हा लगा। सभा शता आर चतावानया का दराकनार
करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का
आदेश दिया।
जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति गायब था
और उसमें 3 अधूरी मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं।
भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे
हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं, जबकि सुभद्रा
के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे। राजा ने इसे
भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को
स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक तीनों
भाई बहन इसी रूप में विद्यमान हैं।
वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया
था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में
भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है।
1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने
इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्य मंदिर के
आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।
अगले पन्ने पर पहला चमत्कार…
हवा के विपरीत लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ
मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के
विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण
होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन
यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात है।
यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के
ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर
बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह
लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं । ध्वज
पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
अगले पन्ने पर दूसरा चमत्कार…
गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे
भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट
में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214
फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख
पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के
किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस
एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी
के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित
किया गया।
अगले पन्ने पर तीसरा चमत्कार…
चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान
से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को
देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा
दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से
निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता
है। क्रमशः
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