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December 12, 2024 9:29 pm

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अनुचिंता-6(प्रेम- अनुराग) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman

अनुचिंता-6(प्रेम- अनुराग) By Anjali Nanda,(Anjali R Padhi) President Shree Jagannath Mandir Seva Sansthan (SJMSS),Daman


प्रेम को समझने के लिए हृदय चाहिए, निभाने के लिए धैर्य चाहिए और पाने के लिए सौभाग्य। प्रेम ही दिव्य है , प्रेम ही सत्य है , प्रेम ही आंनद है । जो असफल है वो वासना है , वह काम है , वह लोभ ।
प्रेम ही परमात्मा है और प्रेम ही आंनद है ।
हे दामोदर !आप मधुर प्रेम रस से सराबोर हो रहे है जैसे ही आप श्रीराधा जी को आलिंगन करते है, जैसे कमल किसी सरोवर में आनंद पता है,ऐसे ही श्री जी का हृदय आपके आनंद को बढ़ाने वाला सरोवर है, ऐसे जगन्नाथ स्वामी मेरे पथप्रदर्शक और शुभ दृष्टि प्रदान करने वाले हो |

भगवान के प्रति अनुराग भक्ति का उच्च स्वरूप उनमें आसक्ति है। इससे हमारा मन शांत हो जाता हैं। हमारे मन के संस्कारों में परिवर्तन होना चाहिए। यदि हमारे मन में संस्कारों का परिवर्तन होगा तो भक्ति का महत्व प्रकट होगा। चमत्कार भगवान में नहीं चमत्कार भक्ति में है। जो नि:स्वार्थ भाव से भक्ति करते है मन के विकारों का शमन करते है, जो भक्ति में पागल एवं व्याकुल हो जाते है, उन्हें ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। वे ही अपना जीवन आत कल्याण करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते है।
परमात्मा से प्रेम हमारी जीवन नैया को पार लगता है। परम प्रेम की अभिव्यक्ति ही हमारे आत्म कल्याण का कारण हैं। स्वार्थ प्रेरित अनुराग मोह का कारण है। अनुराग प्रेम की गहरी भावना को दर्शाता है। अनुराग का अर्थ है “लगाव, भक्ति, जुनून और शाश्वत प्रेम।
प्रेम एक दिव्य ऊर्जा है। यह हमारे जीवन में नई ऊँचाइयों तक पहुँचने और अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर सकता है। प्रेम देना भी ईश्वर की पूजा करने का एक तरीका है। प्रेम मानव जीवन का सार है। ईश्वर ने मनुष्य को विभिन्न प्रकार की भावनाएँ दी हैं जिन्हें वह जीवन के विभिन्न पहलुओं का अनुभव करने के लिए महसूस कर सकता है। प्रेम सभी मनुष्यों में होती है। जब कोई हमारे प्रति अपना प्यार दिखाता है तो हम विशेष महसूस करते हैं।
प्यार एक ऐसा एहसास है जिसकी हम सभी को चाहत होती है। जिस दिन हम पैदा होते हैं, उसी दिन से हम प्यार की चाहत रखते हैं। इस दुनिया में आने वाला छोटा बच्चा किसी भी चीज़ से अनजान होता है। उसे सिर्फ़ प्यार की ही समझ होती है। दिल से दिल की यात्रा ये बड़ी अजीब सी है । प्रेम सभी भावनाओं में सबसे गहरा और सबसे सार्थक है।
प्रेम में त्याग की आवश्यकता होती है। विश्वास का निर्माण दूसरा तत्व है। प्रेम में सहयोग अंतिम तत्व है। प्रेम एक विशुद्ध समर्पण का रूप है । प्रेम कभी असफल नहीं होता है , जो असफल है वो प्रेम नही हो सकता है । है प्रेम की दिशा निष्काम हो तो वह सफल है , प्रेम जब स्वार्थ को लिए हुए होगा तब वह हमेशा असफल होगा ।
प्रेम में एकात्मकता होती है प्रेम में द्वैत मिट जाता है । प्रेम जब अनंत हो जाता है तब रोम रोम संत हो जाता है । मावजी महाराज ने प्रेम के विषय में बहुत सुंदर बात कही है – प्रेम त्या परमेश्वर …..! प्रेम एक शक्तिशाली भाव है। जिस प्रेम में भावनाओं का विनिमय नहीं किया जाता उसे अप्रतिदेय प्रेम कहते हैं। ऐसा प्यार परिवार के सदस्यों, दोस्तों और प्रेमियों के बीच नही पाया जाता हैं अगर कई पाया जाता है तो वहां राधा और कृष्ण है , अर्जुन और श्री कृष्ण है , हनुमानजी और राम को अन्यत्र ढूढने की जरूरत नही है, क्योंकि जगत में सब कुछ स्वार्थ पर टिका है और प्रेम स्वार्थ से परे है ।
यह प्रेम ईश्वर के प्रति हो जाए तो जीवन सफल हो जाता है । इस प्रेम का अंतिम छोर निर्विकल्प समाधि की ओर ले जाता है । इसी प्रेम के चलते तुलसी तुलसीदास बन जाते है । मीरा बाई ,सूरदास , नरसिंह मेहता , कबीर , नानक विवेकानंद जैसे महापुरुष बना देता है ।
हम लोगों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करना और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
सामान्यतः प्रेम , प्रिती , स्नेह , अनुराग आदि एक साथ एक जैसे अर्थ में समझे
जाते है । इनके व्यापक अर्थ अलग अलग है । अगर इनको समझे तो यह सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है , नही समझे तो समानार्थी शब्द ही है ।
अनुराग शब्द का प्रयोग प्रेम की गहरी भावना को दर्शाने के लिये किया जाता है। भाई- भाई में , भाई -बहन में , माता- पिता के प्रति और गुरु- शिष्य और भगवान- भक्त के प्रति अनुराग संभव है ।
अनुराग स्नेह को भी प्रकट करता है , प्रेम को भी प्रकट करता है , यह प्रीति को भी दर्शाता है । । जो असफल है वो वासना है , वह काम है , वह लोभ है ।

भगवान की कृपा दृष्टि से भक्त उनके साथ एकाकार होने का परमानंद प्राप्त कर सकता है। राग का मतलब है लगाव, विराग का मतलब है अलगाव अर्थात संसारी व्यक्ति, वस्तु में या तो हमें लगाव होता है या उससे हमारा विलगाव होता है। इन दोनों स्थितियों में रहने वाला मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर सकता। ईश्वर तो अनुराग से मिलता है। अनुराग का मतलब लगाव-विलगाव के मध्य की स्थिति।

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