[] Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग >>>>>>>>>1️⃣2️⃣2️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,भाग 3

*(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*
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वैदेही की आत्मकथा गतांक से आगे-
मैं वैदेही !
पुष्पक विमान में बैठकर…….हम दोनों चले…….रात्रि का समय हो गया था…….चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था श्रीराम की सेना में ।
मैं नीचे देखती हुई जा रही थी……….मेरा हृदय बहुत तेजी से धड़क रहा था …………….
न हीं ! ! ! ! …………मैं ऊपर से ही चिल्लाई ……………
त्रिजटा नें भी देखा उस दृश्य को ……………….
नाग पाश से बन्धे हुए मूर्छित थे मेरे श्रीराम और लक्ष्मण ………….
सब लोग विलाप कर रहे हैं ……………..।
मै उसी समय पुष्पक विमान में आसन लगा कर बैठ गयी ।
विमान अस्त व्यस्त होनें लगा ……..ऐसा लगा अन्धड़ शुरू हो गया है ।
प्रचण्ड अन्धड़ में फंस गया है …….वो विमान ।
मुझे झकझोरा त्रिजटा नें …………..क्या कर रही हैं आप ?
मेरे मुँह से निकला – स्वामी ! ये जानकी आरही है आपकी सेवा में ।
नही ………नही ….रामप्रिया ! श्रीराम लक्ष्मण दोनों जीवित हैं ।
क्या ? मेरे आर्य श्रीराम जीवित हैं !………..मैने अपनी आँखें खोलीं ।
हाँ ……हाँ रामप्रिया ! देखो ……..मुखमण्डल में कैसी प्रसन्नता है श्रीराम और लक्ष्मण के …………
हम दोनों फिर बड़े ध्यान से नीचे देखनें लगी थीं ।
पर मुझे कुछ करना होगा……….मैं फिर आसन बाँध कर बैठ गयी ।
क्या कर रही हैं आप ?
त्रिजटा को उत्तर देना अभी मुझे आवश्यक नही लगा ।
गरुण ! कहाँ हो तुम ? मैने गरुण का आव्हान किया ।
उसी समय गरुण मेरे सामनें उपस्थित थे ……..
आज्ञा करें महालक्ष्मी ! गरुण नें मुझे प्रणाम करते हुए कहा ।
मेरे आर्य श्रीराम को बन्धन मुक्त करो ……………मैनें महालक्ष्मी के आवेश से गरुण को आज्ञा दी ।
गरुण श्रीराम की ओर उड़े ……….और देखते ही देखते नागों को खाते चले गए ……………..कुछ ही देर में मेरे श्रीराम नें अपनें नेत्र खोल लिए थे ………..लक्ष्मण नें भी ।
मैं आनन्दित हो उठी ………..मैने ऊपर से प्रणाम किया ………..अपनें श्रीराम को ……और विमान पुष्पक लौट चला था अशोक वाटिका की ओर ………।
जय श्रीराम …..जय श्रीराम …………नाच उठे थे वानर ।
रावण फिर परेशान हो रहा था …….मेघनाद की समझ में नही आया कि इस नागपाश से किसनें मुक्त किया इन दोनों को ……..?
गरुण के सिवा तो कोई काट नही सकता !
पर हम , त्रिजटा और मैं बहुत खुश थे अब ।
शेष चरित्र कल …..!!!!!
🌷 जय श्री राम 🌷
[] Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-59”
( दामोदर लीला – भाग 14 )
कल से आगे का प्रसंग –
मैं मधुमंगल ……….
मैं तौं या “दामोदर लीला” कौ पूर्ण साक्षी हूँ …..मैंने देख्यो कि जब कुबेर के पुत्र स्तुति करके कन्हैया की चार परिक्रमा लगायवे लगे ….तब ऐश्वर्य शक्ति ने अपनौं प्रदर्शन कियौ …….
हे कुबेर पुत्रों ! मोकूँ पतौ है ….कि तुमने देवर्षि नारद जी कौ अपमान कियौ हो …कन्हैया ऐश्वर्य पूर्ण वाणी बोलवे लगे हे । और देवर्षि कौ ही नही ….तीरथ कौ हूँ अपमान कियौ …..तीरथ के देवता कौ अपमान कियौ ……..
कन्हैया की ऐश्वर्य पूर्ण वाणी ते चमत्कृत है रहे हैं कुबेर पुत्र । अभै तक जौ बालक के नाईं बोल रो …सोच रो …वो अब पूर्ण ऐश्वर्य ते भरौ भयौ देवन कौ देव नन्द लाला पूर्णब्रह्म के रूप में दिखाई दै रौ ।
हे कुबेर पुत्रों ! मदिरा कौ पान , परस्त्री गमन , और जुआ । ये तीनों नरक के द्वार हैं । लेकिन जहां धन अतिमात्रा में आय जाए और वा कौ सही उपयोग अगर नही होय …तौ वही धन मदिरालय में लै जावै ….परस्त्री गमन करवाय देय …और जुवा खेलवे तै तौ वो और नष्ट है जाए है ।
कन्हैया अद्भुत तेज सम्पन्न बोल रहे हैं ……हे कुबेर पुत्रों ! धनमद सबते बड़ौ मद है ……या लिए या मद ते बचनौं चहिए । रही तुम्हारी बात ….तौ तुम्हारे ऊपर तौ देवर्षि की कृपा है गयी ….नही तौ नरक ही तुम्हारौ ठौर हो …..लेकिन साधु पुरुष की कृपा कछु भी कर सके है ……आज तुम्हें मुक्ति ते हूँ बड़ी वस्तु भक्ति मिल गयी है ….हे कुबेर पुत्रों ! पतौं है …भक्ति हमारौ पुरुषार्थ कौ फल नही है ….जे तौ जब महापुरुषन की कृपा होवे तबहीं मिले है …..तुम्हारे ऊपर कृपा भई । अब जाओ अपने लोक …..और सन्त कौ संग करौ ….सन्त कौ संग सब कछु दै वै में समर्थ है ।
इतनौं कहके कन्हैया मौन है गये ……..कुबेर के पुत्रन ने फिर साष्टांग प्रणाम कियौ और आकाश मार्ग ते कन्हैया के मंगलमय नामन कौ उच्चारण करते भए अपने लोक में चले गए ।
काल कूँ रोक दियौ हो मेरे कन्हैया ने …….वृक्ष गिरे …तबही कन्हैया ने काल कूँ रोक दियौ ……सब कछु रुक गयौ । नही तौ विचार करौ – मैया निकट में ही तौ है …का बाकूँ वृक्षन के गिरवे की आवाज़ नही गयी होती ? और मैया कौ सबरौ ध्यान कन्हैया की ओर ही तौ हो …..काहू ने वा समय नही सुनी आवाज …अरे कहाँ ते सुनेंगे, काल कूँ रोक दियौ मेरे लाला ने ।
और तब तक रोक्यो जब तक इन कुबेर के पुत्रन ने स्तुति नही करी और कन्हैया ने इनते वार्ता नही करी ……अब तुम मोते अगर पूछो ….कि मधुमंगल ! कब तक रोक्यो कन्हैया ने काल कूँ ? तौ कछु पतौ नही ….पतौ नही कितने वर्ष बीत गए होंगे …या है सके कितने युग बीत गए होंगे …..चौं कि काल रोक्यो तौ पूरे ब्रह्माण्ड कौ ही तौ रोक्यो है । देवगनन कूँ हूँ नही पतौ चली कि वृक्ष टूटे हैं ….फिर मैया और यहाँ के बृजजनन की तौ बात ही छोड़ देओ ।
कुबेर के पुत्र जैसे ही अपने लोक गए …..तबहीं – कन्हैया ने काल कूँ चलन दियौ …..अब वृक्ष के टूटवे की प्रचण्ड ध्वनि पूरे बृज मंडल में गूंजी । मैया रसोई ते बाहर दौड़ी चिल्लाती भईं ….
अरे कहा भयौ ?
गोपियाँ भी दौड़ीं …..ध्वनि खिरक तक गयी ही ….तौ नन्दबाबा भी दौड़ पड़े ….अब बाबा दौड़े तौ बृजवासी भी दौड़े ।
बृजरानी ! वृक्ष गिर गए अपने लाला के ऊपर …..एक गोपी चीखती भई बोली ।
और जैसे ही जे सुन्यो मैया यशोदा ने ….धड़ाम ते अवनी में मैया गिर पड़ीं ।
गोपिन ने आय के जल कौ छीटौं दियौ …..मैया कूँ होश आयौ …..फिर उठीं ….बाहर ते बाबा दौड़े दौड़े आय रहे हैं ….उनके पीछे दस पंद्रह ग्वाले हे …..वृक्ष गिरे …..और दोनों वृक्ष गिरे और जड़ के सहित गिरे ……जे देखते ही बाबा शून्य से हे गए …..अनिष्ट की आशंका ने बाबा कूँ शून्य बनाय दियौ ……अब मेरी भूमिका ही …..मैं आयौ और आयके बाबा कूँ उन वृक्षन के पास लै गयौ ….दिखायौ वृक्षन कूँ …….दो विशाल वृक्ष गिरे हे ।
मेरौ लाला ! उधर ते मैया चिल्लाती भई आयीं …..जब दो गिरे वृक्षन के मध्य में बाबा ने देख्यो अपने कन्हैया कूँ …..आहा ! रस्सी ते पेट बध्यो भयौ है ….ऊखल ते रस्सी कौ दूसरौ छोर बध्यो है …..और कन्हैया चारों ओर देख रह्यो है …..वाके नेत्रन में भय है …….मैया मारेगी ।
मैया आगे आयी …कन्हैया ने जैसे ही मैया कूँ देख्यो ….मैया ! जे वृक्ष अपने आप गिरे हैं …मैंने नही गिराये ….कन्हैया भयभीत है के कह रह्यो है । मैया रो गयी ….बाबा ने मैया की ओर गम्भीर हे के देख्यो …फिर लाला की रस्सी खोल दई और बोले ….लाला ! आ ….मेरी गोद में आ ….मैया के पास अब नही जानौं ….ठीक है ? गोद में चढ़ते भए कन्हैया बोले …बाबा ! मैया ने मोकूँ बाँध दियौ । लाला ! अब मैया के पास हम नही जायेंगे । बाबा बोले ।
मैंने देख्यो ….मैया हिलकियन ते रोय रही हैं ….बैठ गयीं हैं और अपने हाथ पाषाण में मार रही हैं ….इन हाथन ने ही कन्हैया कूँ बांध्यो हो । मैया की जि दशा मोते देखी नाँय गयी …..मैं कन्हैया के पास गयौ तौ ……लाला अब सो जा ……बाबा अपने पर्यंक में कन्हैया कूँ सुलाय रहे ।
लाला ने अपने आँखन कूँ बन्द कर लिए ।
बाबा बाहर गए ….मैया यशोदा रो रही हैं ………”तुमने ठीक नही कियौ ….तनिक से माखन काजे तुमने कन्हैया कूँ बाँध दियौ ? मैया बस रो रही हैं । बाबा फिर बोले …वैसे ही कितने राक्षस मथुरा ते आय रहे हैं ….हमारे लाला के ऊपर संकट है …फिर ऊपर ते तुमने बाँध दिए ….अरे ! जे तौ हमारे ऊपर नारायण भगवान की परमकृपा ही कि हमारे लाला के काहूँ अंग में खरोंच तक नही आयी । अगर कछु है जातौ तौ ? मैया यशोदा बस रो रही हैं ।
लाला सो गए हैं बाबा के पर्यंक में ।
रात्रि है गयी है ……..कन्हैया सोय रह्यो है ………
मैया आयीं …..बाबा के पर्यंक के निकट …..
क्या है ? बाबा पूछते हैं । लाला कौ चादर ओढ़ा दो ….मैया बोलीं । बाबा ने कहा …ठीक है ओढ़ा देंगे ।
मैया फिर अपने पर्यंक में चली जाती हैं ।
कन्हैया उठे …..मैया ! मैया ! आवाज़ लगाई …..मैया ने सुनी ….आधीरात कौ कन्हैया उठे हैं ….मैया उठकर आयीं ……..
बाबा कह रहे हैं ….लाला ! सो जा ….कन्हैया नींद में कह रहे ….मैया ! दूध पीनौं है !
मैया कूँ हँसी आयी …..और धीरे नन्दबाबा ते बोलीं ….पिवाओ अब दूध ।
बाबा बोले …..कन्हैया ! तू मैया के ही पास जा ….और कन्हैया कूँ मैया लै आयीं ….और अपनी छाती ते चिपकाय के दूध पिवायवे लगीं ।
क्रमशः…..
Hari sharan
[] Niru Ashra: श्री भक्तमाल (160)
सुंदर कथा १०५ – (श्री भक्तमाल – श्री हरेराम बाबा जी ) भाग -01
श्री जगदगुरु द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्रदासचार्य जी महाराज के श्रीमुख से दास ने श्री हरेराम बाबा का चरित्र सुना वह लिख रहा हूँ – संतो की चरण रज मस्तक पर धारण करके और आप सभी भक्तों की चरण वंदना करके, श्री हरेराम बाबा जी का चरित्र लिख रहा हूं। हो सकता है मेरे सुनने में कुछ कम ज्यादा हुआ हो, कोई त्रुटि हो तो क्षमा चाहता हूँ ।
श्री गणेशदास भक्तमाली जी गोवर्धन में लक्षमण मंदिर में विराजते थे । वहां के पुजारी श्री रामचंद्रदास जी गिरिराज की परिक्रमा करने नित्य जाते । एक दिन परिक्रमा करते करते आन्योर ग्राम में लुकलुक दाऊजी नामक स्थान के पास कुंज लताओं में उन्हें एक विलक्षण व्यक्ति दिखाई पड़े । उनके नेत्रों से अविरल जल बह रहा था , उनके सम्पूर्ण शरीर पर ब्रज रज लगी हुई थी और मुख से झाग निकल रहा था । थोड़ी देर पुजारी रामचन्द्रदास जी वही ठहर गए । कुछ देर में उनका शरीर पुनः सामान्य स्तिथि पर आने लगा । वे महामंत्र का उच्चारण करने लगे –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
पुजारी जी समझ गए की यह कोई महान सिद्ध संत है । उन्होंने उनका नाम पूछा तो कह दिया की प्रेम से सब उन्हें हरेराम बाबा ही कहते है । पुजारी जी उनको लक्ष्मण मंदिर में , श्री गणेशदास भक्तमाली जी के पास ले गए । धीरे धीरे दोनों संतो में हरिचर्चा बढ़ने लगी और स्नेह हो गया । श्री हरिराम बाबा भी साथ ही रहने लगे । श्री हरेराम बाबा ने १२ वर्ष केवल गिरिराज जी की परिक्रमा की । उनके पास ४ लकड़ी के टुकड़े थे जिन्हें वो करताल की तरह उपयोग में लाते थे। उसी को बजा बजा कर महामंत्र का अहर्निश १२ वर्षो तक जप करते करते श्री गिरिराज जी की परिक्रमा करते रहे । जब नींद लगती वही सो जाते, जब नींद खुलती तब पुनः परिक्रमा में लग जाते थे । नित्य वृन्दावन की परिक्रमा और यमुना जल पान , यमुना जी स्नान उनका नियम था । बाद में बाबा श्री सुदामाकुटी मे विराजमान हुए ।
१. श्री हरेराम बाबा की प्रेम अवस्था –
श्री हरेराम बाबा जब महामंत्र का कीर्तन करते –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
तब उनको प्रेम आवेश होता और भगवान की साक्षात अनुभूति होती थी । एक नीलवर्ण की कांति (प्रकाश) दिखाई पड़ती और उसीमे श्रीकृष्ण का दर्शन उनको होता । उसीको पकड़ने के लिए बाबा उसके पीछे पीछे भागते और फिर कुछ देर बाद उन्हें मूर्छा आ जाती । उनका शरीर कांपने लगता और बाद मे साधारण स्तिथि हो जाती । एक बार बाबा श्री गणेशदास जी, पुजारी श्री रामचंद्रदास जी और श्री हरेराम बाबा यह ३ संत पैदल जगन्नाथ पूरी दर्शन करने के लिए निकले । रास्ते मे कीर्तन करते करते श्री हरेराम बाबा को प्रेमावेश हुआ और पास ही के एक गन्ने के सघन खेत को ३ मील तक चिरते हुए वे पार हो गए । सम्पूर्ण शरूर रक्त से भर गया , घंटो मूर्छित अवस्था मे रहे । ऐसा रास्ते मे के बार हुआ और बहुत दिनों के बाद वे संत जगन्नाथ पूरी पहुंचे ।
२. भक्त भूरामल और उसकी पत्नी को वरदान देना –
जयपुर मे एक भूरामल बजाज नाम के व्यापारी रहते थे जो बाबा के शिष्य भी थे। एक बार उन्होंने अपने ३ मंजिला मकान की छत पर कीर्तन का आयोजन करवाया । अनेक सत्संगी भक्त और संतो को बुलाया, बाबा को भी कीर्तन में बुलाया । बाबा ने कहा की छतपर कीर्तन करना ठीक बात नही है , पता नही कब प्रेमावेश आ जाए और सब लोगो को परेशानी हो जाए । अच्छा होगा की नीचे आंगन मे ही कीर्तन हो । भूरामल सेठ ने कहा की महाराज आप केवल कोने मे बैठे रहना ,अब इंतजाम हो गया है । भूरामल के आग्रह करने से बाबा कीर्तन मे बैठ गए । कीर्तन शुरू हुआ –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।
परंतु कुछ देर बाद उनसे रहा नही गया, वे कीर्तन मे इतने लीन हो गए की नृत्य करते करते वे दौड़ पड़े और छतसे नीचे जा गिरे । सब लोग नीचे भागे और बाबा को उठाया, कुछ देर मूर्छा रही । बाबा के एक हाथ मे ज्यादा चोट लगी थी जिस कारण भूरामल बहुत दुखे हुए की हमने बाबा की आज्ञा का उल्लंघन किया । भूरामल ने अपने घर पर राखकर उनकी बहुत अच्छी प्रकार लंबे समय तक सेवा की । एक दिन श्रीहरेराम बाबा प्रसन्न होकर बोले – भूरामल बच्चा ! मै तेरे ऊपर बहुत प्रसन्न हूं ,कुछ मांग ले ।
भूरामल ने कहा – बाबा,मेरी यही इच्छा है की मेरा शरीर भगवान का भजन करते हुए छुटे और मुझे भगवान के नित्य धाम की प्राप्ति हो । बाबा ने कहा – ठीक है बच्चा ! ऐसा ही होगा । तू अकेला ही नही अपितु तेरी पत्नी भी तेरे साथ भजन करते करते भगवान के धाम को जाएगी । इस घटना के कुछ समय बाद, एक दिन बाबा श्री गणेशदास , पुजारी श्रीरामचंद्रदास जी और श्री हरेराम बाबा – ये ३ संत जयपुर के पास गलता आश्रम पर प्रातः काल स्नान कर रहे थे । श्री हरेराम बाबा पहले स्नान कर और तिलक स्वरूप करके माला जपने लगे , उसी समय श्रीहरेराम बाबा सहसा उठे और दोनों हाथ उठा कर आशिर्वाद देकर बोले – बहुत अच्छे भूरामल बच्चा ! धाम को पधारो और ठाकुर जी को मेरी ओर से भी प्रणाम कर देना । बाबा गणेशदास जी और पुजारी जी ने पूछा – बाबा! आप ये आकाश की ओर देखकर किससे बातें कर रहे थे ? श्री हरेराम बाबा ने कहा की क्या तुमने देखा नही -भूरामल उसकी पत्नी के सहित विमान मे बैठकर वैकुंठ को जा रहा है , उसीको आशीर्वाद देकर भगवान को प्रणाम करने को कह रहा था । थोड़ी ही देर बाद भूरामल सेठ के घर का एक सेवक आया और उसने बताया की कुछ देर पहले भूरामल सेठ और उसकी पत्नी का भजन करते करते शरीर छूट गया है ।
३. एक चुड़ैल सहित अन्य प्रेतों का उद्धार –
शेष कल की कड़ी (161) में देखें

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Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877