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April 20, 2025 12:18 am

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श्री सीताराम शरणम् ममभाग 123(1),”श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा – 60″,

तथा श्री भक्तमाल (161) : नीरु आशरा

[] Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग >>>>>>>> 1️⃣2️⃣3️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 1

 *(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही ।

तीसरे दिन का युद्ध………आज वानर सेना पूरे जोश में थी ।

रावण पगला गया था जब उसनें ये सुना की …….वानर लोग राक्षसों को पकड़ पकड़ कर मार रहे हैं …………समुद्र में फेंक रहे हैं ……।

वानर लोग पहाड़ उठाते और जहाँ राक्षसों का समूह देखते वहीं फेंक मारते ……..सैकड़ों राक्षस एक साथ मर जाते थे ।

आज युद्ध में अतिउत्साहित था वानर समाज ………………..।

तभी “प्रहस्त” रावण का मन्त्री……अपनें साथ दस हजार राक्षसी सेना को अपनें साथ ले आया ।

महाराज सुग्रीव ! ये रावण का मुख्य सहायक है…….और मन्त्री भी है ……और सम्बन्धी में मामा भी लगता है ………ये बात विभीषण नें बताई थी …….इतना सुनते ही सुग्रीव , जामवन्त, नल नील अंगद ये सब प्रहस्त को मारनें की योजना बनानें लगे ……………..

तभी जामवन्त नें सुग्रीव के कान में कुछ कहा……….सुग्रीव नें सिर “हाँ” में हिलाया ………और दोनों सामनें के पहाड़ की ओर दौड़े …..प्रहस्त अपना रथ लेकर वानर सेना से लड़ ही रहा था ।

विशाल पर्वत को उखाड़ लिया दोनों नें मिलकर ………….सुग्रीव और जामवन्त नें ।

और दोनों ही पर्वत को लेकर दौड़े ………………प्रहस्त की ओर ।

प्रहस्त नें देखा ………….वो डर कर पीछे भागनें लगा ………….तभी पीछे से हनुमान आगये ………..वो रूक गया ………रुकना उसकी मजबूरी थी ………हनुमान भी पर्वत की तरह रास्ता रोक कर खड़े हो गए थे …………”जय श्रीराम” ………..सुग्रीव और जामवन्त चिल्लाते हुए प्रहस्त के ऊपर , उस विशाल पर्वत को फेंक दिया ।

चूर चूर हो गया प्रहस्त का शरीर ।

त्रिजटा इतना कहकर चुप हो गयी ……………….।

फिर क्या हुआ बता ना त्रिजटा ?

त्रिजटा मुझे, राक्षसी माया के द्वारा बैठी बैठी, सब देखते हुये, युद्ध का हाल, अशोक वाटिका में ही बता रही थी …………..।

आगे ? अपनें पसीनें पोंछे त्रिजटा नें …………

वो भी थक गयी थी ………………..पर फिर शून्य में तांकते हुये मुझे बतानें लगी थी ।

रामप्रिया ! रावण को ये सूचना मिली कि प्रहस्त मारा गया ।

टूट गया रावण !………….उसनें अपना रथ श्रीराम की ओर दौड़ाया ………..मेरे पिता विभीषण श्रीराम से कह रहे हैं ……रावण का ये प्रिय था …………बचपन से ही दोनों साथ में रहे हैं ………इसलिये प्रभु ! अब रावण का पागलपन चरम पर होगा………हमें सावधान रहनें की जरूरत है ।

क्रमशः….
शेष चरित्र कल ……!!!!!

🌷🌷 जय श्री राम 🌷🌷
Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-60”

     *( दाऊ और कन्हैया में झगरौ )*

कल से आगे का प्रसंग –

मैं मधुमंगल ……

आज सबेरे सबेरे कन्हैया मैया के दूध पीवे कूँ जिद्द कर रो …..मैया ने समझायौ कि – मेरे लाला ! अभी पीयौ ना तैनैं दूध ? अब थोडौ सुरभि गैया कौ हूँ दूध पी ले । लेकिन नहीं ।

देख लाला ! अब तू बड़ौ है रह्यो है ……तेरे साथी कहा कहिंगें ? या लिए या जिद्द कूँ तू छोड़ दे ।

लेकिन कन्हैया मैया के आँचल में अपनौं मुख छुपाय के दूध पीनौं चाह रह्यो है । तभी …..सुबल , श्रीदामा , उज्ज्वल , अर्जुन और मैं …..मैं तौ सबेरे गयौ हो यमुना नहावे तौ आते में ….इन सब सखान कूँ भी नन्द भवन में मैं लैतौ आयौ ।

मैंने आवाज़ लगाई ….कन्हैया ! चल खेलवे । अब कहा पीतौ कन्हैया दूध ….

कन्हैया ने मैया कौ आँचल छोड्यो और हमारे पास दौड़तौ भयौ आय गयौ ।

कहाँ चलनौं है ? लो जी दाऊ भैया हूँ आय गये ।

यमुना जी । मैंने ही कही । तौ दाऊ बोले ….मैं भी चलूँगौ । लेकिन कन्हैया ने आज उत्तर नही दियौ …..तौ दाऊ बोले …कन्हैया तौ कह ना रो ? भैया ! आज तुम रहन दो । कन्हैया बोल दिए । चौं ? मोते चौं कह रो है न जायवे की ? मै तौ जाऊँगौ । दाऊ भैया कैसे रुक जामें । लेकिन कन्हैया की जे बात दाऊ कूँ अच्छी नही लगी ।

चलौ ………यमुना जी के तट में सब गये और खेल खेलवे लगे । खेल में एक दूसरे कूँ छूनौं हो…..फिर जाकूँ छूमें वो दूसरे कूँ छूवेगौ । कन्हैया ने दाऊ कूँ छू लियौ ………”कितनौं कारौ है”…… दाऊ भैया बोल दिए । भयौ जे कि खेल चल रो और एक छूवे वारौ दूसरे कूँ छू रह्यो ….कन्हैया ने झट्ट ते जायके दाऊ कूँ छू लियौ । तभी कन्हैया कौ हाथ जब दाऊ के हाथ में पड्यो …..तब कन्हैया के सांवले हाथ देखके दाऊ बोल दिए ….कितनौं कारौ है । अब तौ कन्हैया चिढ़ गए …..दाऊ ! अधिक मत बोले । अब दाऊ हँसते भए कहवे लगे …मैं तौ साँची कहूँ …..काहू कूँ बुरी लगे तौ मैं का करूँ ? कन्हैया अब दूर जायके बैठ गये …रूठ गए अपने दाऊ भैया ते । मैं गयौ कन्हैया के पास ….कन्हैया ! चल ना ! दाऊ तौ ऐसे ही बोलें ..बुरौ मत मान …चल खेलें । लेकिन नही …..दाऊ दूर हैं लेकिन वो हँस रहे हैं ….और श्रीदामा ते कह रहे हैं …….कन्हैया कूँ सुनायवे के लिए ही कह रहे हैं दाऊ की बात सुनके रिस के मारे कन्हैया अपने पाँमन्ने पटकते भए नन्द भवन में आय गये ।


अरे ! लाला ! इतनी जल्दी ? आज कहा भयौ ….खेल में तेरौ मन नही लग्यो का ?

मैया यशोदा ने कन्हैया ते पूछी ।

मुँह फुलाय के कन्हैया हाथन कूँ बाँध के खड़े हैं । तौ मैया ने समझ लियौ कि आज झगरौ है गयौ है ….लेकिन भयौ कौन ते ? दाऊ भैया ते ….मैंने आय के मैया ते कही । तौ मैया हंसती भयी बोलीं …का कह रो दाऊ ? कन्हैया कूँ और ग़ुस्सा आय गयी …..तू भी हाँसी उड़ाय लै मेरी …..और हँस । मैया समझ गयी कि आज कोई तौ बात हुई है ….तौ मैया बड़े स्नेह ते पूछ रही हैं …..लाला ! बता का भयौ ? दाऊ ने का कही ? मोकूँ बता, मैं मारूँगी दाऊ कूँ । जे बात जब गम्भीर है के मैया ने कही ….तब कन्हैया बोले …..मैया ! दाऊ ख़राब है ……मैया लाला की हाँ में हाँ मिलाती बोलीं …बहुत ख़राब है …..लेकिन लाला ! तेरौ बड़ौ भैया है ना ? लेकिन मैया ! बड़े भैया ऐसे थोड़े ही बोलें ? अच्छा बता का कह रो तोकूँ ? मैया ने अब बात ही सुननी चाही ।

“मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ”

मैया ! आज तौ दाऊ दादा ने हद्द कर दई ……अन्य सखान के संग मिलके मेरी हाँसी उड़ाय रो ।
कन्हैया बड़े भोलेपन ते कह रहे हैं ।

अरे मैं यही तौ पूछ रही हूँ …..कि का कह रो दाऊ ?

मैया ! मोते कह रो तोकूँ तौ नन्द बाबा और मैया ने बजार ते मोल में खरीदौ है ?

सजल नेत्रन ते कन्हैया पूछ रहे हैं ….मैया ! का जे सही है ? मैया कोई उत्तर देतीं बाते पहले ही कन्हैया फिर बोल पड़े….मैया ! फिर दाऊ मोते पूछे – कौन हैं तेरी मैया और कौन हैं तेरे बाबा ?

लाला ! तैनैं मेरौ नाम नाँय लियौ ? मैया यशोदा कन्हैया ते कहें ।

मैंने तेरौ नाम लियौ मैया ! मैंने कही ..मेरी मैया यशोदा है और बाबा नन्द हैं ……लेकिन दाऊ कहवे लग्यो ….मैया तौ गोरी है और बाबा हूँ गोरे हैं …तू कारौ कहाँ ते आय गयौ ? मैया इतनौं ही नहीं …..कन्हैया आगे बोले ……जे सब बात कहके दाऊ भैया हँसे …ताली बजावै ….कहा कहूँ मैया ! मैं तौ दाऊ तै दुखी है गयौ हूँ । जे बोली कन्हैया की जब मैया ने सुनी तौ मैया हँसी ।

अच्छों मैया !

मैं कछु कहतौ तौ तू मोकूँ मारती …लेकिन दाऊ की बात पे हँस रही है ? कन्हैया के नेत्रन में अश्रु भर गए ….आज तक कभी तैनैं दाऊ कूँ मारयो नही ।

मैया इतनी बात सुनके गम्भीर है गयीं ।

कछु देर रुक के कन्हैया फिर बोले ….मैया ! कहीं दाऊ भैया सच तौ नही कर रो ?

आहा ! जे बात मैया कूँ गढ़ गयी , तुरन्त अपने हृदय ते कन्हैया कूँ लगाती भई बोलीं …लाला ! तू ही मोरौ लाला है ..मेरौ पुत्र तू ही है …तू ही मेरौ जायौ है । मैया के नेत्रन ते अश्रु बहवे लगे ।

तो कन्हैया बोले ….मैया ! दाऊ कह रो …तेरी मैया यशोदा है और बाबा नन्द हैं याकौ का प्रमाण है ? जे बात सुनके मैया कौ हृदय पिघल गयौ …..तुरन्त अपनी गैयन के पास गयीं …..और गैयन की पूँछ पकड़ के बोलीं ….लाला ! सौगन्ध है मोकूँ अपने गौ धन की ….कि तू ही मेरौ पुत्र है ….और मैं ही तेरी मैया हूँ …..जे कहते भए अपने लाला कूँ मैया ने हृदय ते लगाय लियौ हो । दाऊ भैया बाहर ही हैं ….उनकूँ डर है अब कि – मैया मारेगी ।

क्रमशः…..
Hari sharan
Niru Ashra: श्री भक्तमाल (161)


कड़ी सख्या 160 का शेष ………….

सुंदर कथा १०५ (श्री भक्तमाल – श्री हरेराम बाबा जी ) भाग – 02

श्री जगदगुरु द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्रदासचार्य जी महाराज के श्रीमुख से दास ने श्री हरेराम बाबा का चरित्र सुना वह लिख रहा हूँ – संतो की चरण रज मस्तक पर धारण करके और आप सभी भक्तों की चरण वंदना करके, श्री हरेराम बाबा जी का चरित्र लिख रहा हूं। हो सकता है मेरे सुनने में कुछ कम ज्यादा हुआ हो, कोई त्रुटि हो तो क्षमा चाहता हूँ ।

३. एक चुड़ैल सहित अन्य प्रेतों का उद्धार –

श्री हरेराम बाबा राजस्थान के पाली जिले मे स्थित मुंडारा गांव मे एक खेत के पास झोंपडा बना कर निवास करते थे । एक दिन गांव के एक व्यक्ति के घर मे भूत प्रेतों का उपद्रव हो गया ।तांत्रिक, पूजा पाठ प्रयोग, ओझा सब ने प्रयास किया , बहुत प्रकार से अन्य उपाय करने पर भी समाधान नही हुआ तब वो पीड़ित व्यक्ति अपने परिवार सहित घर छोड़कर शहर की ओर चलने को तयार हुआ । किसी ने उस व्यक्ति से कहा की श्रीहरेराम बाबा बड़े सिद्ध महात्मा है, यदि वे इस मकान मे रह जाएं तो भूतप्रेत भाग जाएंगे । पीड़ित व्यक्ति बाबा के पास जाकर सत्य बात बोला नही । उसने कह दिया की महाराज आप यहां खेत के पास खुले मे रहते है , ठंड का समय है । हमारा मकान खाली पड़ा है , वहां हमने साफ सफाई कर रखी है और हैम अब शहर जा रहे है अतः आप हमारे मकान मे ही रहो। बाबा बोले ठीक है बच्चा, वहां ठंड भी कम लगेगी । सुबह बाबा अपना कमंडलु, माला और आसान लेकर वहां पहुंचे और भजन मे बैठ गए । जैसे ही संध्याका समय हुआ, प्रेतों का उपद्रव शुरू हो गया ।

बाबा समझ गए की यहां प्रेतों का निवास है परंतु बाबा शांति से भजन मे लगे रहे । प्रेतों ने बहुत प्रकार से नाच गाना किया और शोर मचाया परंतु बाबा भजन से नही उठे । अंत मे एक चुड़ैल बाबा के सामने आकर खड़ी हो गयी । श्रीहरेराम बाबा उस स्त्री को पहचानते थे , वे बोले – अरे ! तु तो इसी गांव की थी और कुंए मे गिरकर तेरी मृत्यु हो गयी थी । ब्राह्मण परिवार की बहु होने पर भी तुझे प्रेत योनि कैसे प्राप्त हो गयी । उसने बताया की जन्म चाहे कितने ही ऊंचे कुल मे हो जाएं पतन्तु आचरण अच्छा न हो तो अधोगति मे जाना पड़ता है । परपुरुष के संग करने के पाप से मुझे प्रेत बनना पड़ा । मै पातिव्रत का पालन नही कर पाई और बाद मे मैंने आत्महत्या की । मै इस प्रेत योनि मे बडा कष्ट पा रही हूं , आप मेरा उद्धार कीजिये । बाबा बोले यहां और कितने भूतप्रेत है ? उस चुड़ैल ने कहा – हमारी संख्या १५ है । बाबा ने कहा ठीक है मै तुम्हारा उद्धार करने के विषय मे विचार करूँगा । अगले दिन वह फिर आयी और बोली – बाबा हमपर कृपा करो । बाबा थोड़े विनोदी स्वभाव के थे, उन्होंने कहा – बातों से उद्धार होता है क्या? उद्धार तो घी से होता है ।

हमारा घी समाप्त हो गया है – गौ का घी लाओ , सुखी रोटी भागवान को भोग लगा रहे है । चुड़ैल बोली ठीक है मै अभी घी लेकर आती हूं । गांव में एक यादव परिवार के मुखिया जी रहते थे। वो चुड़ैल जाकर उनके बहु के शरीर पर चढ़ गयी ।अब बहु अजीब अजीब हरकत करने लगी ।एक तंत्र मंत्र करने वाले ओझा को बुलाया गया और जैसे ही उसने मंत्रो का प्रयोग किया तो वह चुड़ैल बोलने लगी – छोडूंगी नही, मै इसको लेकर जाऊंगी । ओझा जी बोले – इसको छोड़ दो , नई नई शादी हुई है इसकी, इसके प्राण क्यो लेना चाहती हो ? चुड़ैल ने कहा – नही मै इसको लेकर जाऊंगी। ओझा ने पूछा – इसको छोड़कर किस प्रकार से जाओगी ? उपाय बताओ । चुड़ैल बोली – गांव मे एक हरेराम बाबा नामक महात्मा है, उनका घी खत्म हो गया है । भगवान को सुखी रोटी का भोग लगा रहे है , उनके पास गाय का घी पहुंचाओ तो मैं इसको छोड़ कर जाऊंगी । मुखिया जी के पास ३ किलो गाय का घी था, वह तुरंत सेवक के हाथ से बाबा के पास भिजवाया । जैसे ही बाबा के पास घी पहुंचा, वह चुड़ैल वापस आ गयी ।

गांव मे यह बात फैल गयी की यदि बाबा को घी नही दिया तो हमारे घर भी भूतप्रेत भेज देगा । हर दिन बाबा के यहां पाव भर ताजा घी आने लगा । बाबा उससे संत सेवा भी करने लगे- हलवा, पुरी, चावल आदि मे घी का प्रयोग करते ।कुछ दिन बाद वह चुड़ैल बाबा के पास आकर बोली – बाबा! रोज का घी का प्रबंध तो हो गया , अब हमारा उद्धार करो । बाबा बोले – तुम्हारा उद्धार कैसे होगा ? उसने कहा की हमारे लिए यदि शिवपुराण की कथा हो तब हमारा उद्धार होगा । बाबा ने कहा की ठीक है, जब तुम्हारा उद्धार हो जाए तब हमे अनुभूति करवा कर जाना। बाबा ने पास मेरहने वाले एक ब्राह्मण जनकीप्रसाद चौबे को बुलाया और उनसे बाबा श्री गणेशदास जी के नाम एक पत्र लिखवाया । उसमे घटना लिख दी की इस कार्य के लिए शिवपुराण की कथा करनी है । बाबा गणेशदास की ने कहा की हमने कभी शिवपुराण की कथा तो कही नही परंतु श्री हरेराम बाबा की आज्ञा है तो कथा करेंगे ।

बाबा श्री गणेशदास जी मथुरा से चलकर हरेराम बाबा के पास आये और प्रातः काल महाराज जी मूल पाठ करते थे और संध्याकाल ५ घंटे कथा कहते थे । कथा के अंतिम दिन एक दिव्य तेज प्रकट हुआ, वे सभी प्रेत दिव्य शरीर धारण करके श्रीहरेराम बाबा के सामने आकर प्रणाम करके बोले – बाबा ! भगवान शिव के गणो का विमान आ गया जी । उनके साथ हम लोग कैलाश को जा रहे है ।

४. संतो मे श्रद्धा और भगवत्प्राप्ति का मार्ग –

एक बार बाबा गणेशदास जी ने उनका थोड़ा परिचय और कुछ पद एक पुस्तक के रूप में श्री रामानंद पुस्तकालय (सुदामा कुटी ) से प्रकाशित किया । दिल्ली की एक स्त्री ने वह पुस्तक पढ़ी और सोचा कि इस समय भी ऐसे भगवत्प्राप्त संत विराजमान है तो दर्शन करना ही चाहिए । वह स्त्री उस पुस्तक पर पता पढ़ कर सुदामा कुटी पहुंची । वहां उस समय राजेंद्रदास जी एवं कुछ अन्य वैष्णव सेवा मे रहते थे । उस स्त्री ने पूछा की इस पुस्तक मे जिनके पद है, क्या उन संत के दर्शन हो सकते है ? राजेंद्रदास जी ने कहा – बाबा का अब शरीर वृद्ध हो गया है , चल फिर नही पाते है । उस स्त्री ने हरेराम बाबा के विषय मे अधिक जानने की इच्छा प्रकट की । राजेंद्रदास जी ने उनकी कुछ अनुभूतियां सुनायी जिस कारण उस स्त्री की श्रद्धा और अधिक बढ़ गयी । राजेंद्रदास जी ने बाबा से अंदर जाकर कहा की एक भक्तानि दर्शन करने आयी है । श्री हरेराम बाबा बोले – यहां किसीको मत लाओ, मै नंद धड़ंग रहता हूँ । शरीर पर लंगोटी भी होती नही । राजेंद्रदास जी बोले – बाबा ! श्रद्धावान स्त्री है , बहुत दर्शन करने की लालसा है । बाबा ने कहा ठीक है ।

राजेंद्रदास जी ने श्री हरेराम बाबा के शरीर पर कपड़ा डाल दिया और उस भक्तानि को अंदर लाये । उनसे प्रणाम किया और कुछ सेब और ५१ रुपये भेट मे दिए । बाबा ने उससे पूछा की वो कहा से आयी है , घर मे कौन कौन है आदि सब। उसने घर परिवार का सब हाल सुनाया । अंत मे बाबा ने पूछा की तुम्हारा विवाह हुआ की नही ? उसने कहा की घर परिवार की जिम्मेदारी मुझपर आने की वजह से अब तक विवाह नही हुआ । बाबा बोले – मै अब विवाह के योग्य नही हूँ, मेरा शरीर अब वृद्ध हो गया है । स्त्री बोली – बाबा आप ये कैसी बात कर रहे है , मै आपकी नातिन (पोती) जैसी हूं । आप साधु होकर ये कैसी बात करते है ।

बाबा बोले – तुम्हे किसने कह दिया की मै साधु हूँ, मै कोई साधु महात्मा नही हूं – मै तो गुंडा और पागल हूं । गुंडा और पागल तो ऐसे बात करता है । वो स्त्री गड़बड़ा कर नाराज होकर भागने लगी, जाते जाते सब मिठाई, सेब, रुपया भी वापस कर दिया । राजेंद्रदास जी ने पूछा – बाबा! वह स्त्री श्रद्धा से आपके पास आयी थी, आपने ऐसे बात करके उसको क्यों सब भेट वापस कर दी ।

बाबा बोले – मै बूढ़ा हूं परंतु यहां रहने वाले सब संत बूढ़े नही है । विरक्त संतो के यहां अकेले महिलाओं का आना ठीक नही है । बार बार आना जाना शुरू होगा यह अच्छा नही है, मेरी १०० साल के ऊपर उम्र चल रही है । इतने साल रामजी ने माया से बचाये रखा अब बुढापे मे मैं अपने वैराग्य पर कलंक नही लगा सकता । इस तरह की बात करने से वह दोबारा आने का प्रयास नही करेगी । राजेंद्रदासजी ने पूछा – बाबा! अगली बार आ गयी तो ? बाबा बोली अबकी बार आयी तो गाली दूंगा । राजेंद्रदास जी ने पूछा – पुनः गाली खाकर भी आ जाए तो ? बाबा बोले फिर तो डंडा लेकर उसको भगाऊंगा । राजेंद्रदासजी ने पूछा – डंडा के डरसे भी न मानी तो क्या करेंगे बाबा । यह सुनकर बाबा रोने लगे और कहा की – यदि उसकी ऐसी श्रद्धा संतो के चरणों मे है, तो फिर मैं उसको श्रीकृष्ण से मिलने का रास्ता बता दूंगा ।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

१९९२ आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को बाबा श्रीभगवान के धाम पधारे ।

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