🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏🌺भाग 1️⃣3️⃣4️⃣🌺भाग 3,“श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’की आत्मकथा-82”तथा  श्रीभगवन्नाम – स्मरण( पोस्ट 2 ) : निरू आशरा

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Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग >>>>>>>>1️⃣3️⃣4️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,
भाग 3

 *(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*

🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐

“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –

मैं वैदेही !

जो भी हो……..पर देवताओं नें जब देखा रावण दैत्यगुरु शुक्राचार्य से मन्त्र प्राप्त कर यज्ञ में बैठ चुका है …….तब से देवता परेशान हैं …….और सब मिलकर गए हैं महर्षि अगत्स्य के पास ।

फिर ? मैने त्रिजटा से पूछा ।

कुछ देर वो देखती रही ……शून्य में ……….फिर बोली त्रिजटा ।

रामप्रिया ! महर्षि अगत्स्य नें देवताओं की बातें मान लीं हैं …….और देवों के साथ लंका की ओर आरहे हैं ।

आकाश में ………..देखो ! रामप्रिया देखो !

त्रिजटा मुझे आकाश में दिखा रही थी ……..मैने देखा ……सुरों के साथ महर्षि अगस्त – उठकर मैने प्रणाम भी किया ।

रामप्रिया ! श्रीराम के पास उतरें हैं महर्षि अगस्त …………उनके पीछे देवता भी हैं ।

श्रीराम नें प्रणाम किया है महर्षि को ………।

हे राम ! मैं आपको कुछ मन्त्र देनें आया हूँ …………ये मन्त्र अत्यंत गुह्य है ….यानि गुप्त है ……………..ये शत्रु विनाशक है ……….ये परमकल्याणकारी है ………….इसका प्रभाव कल नही आज ही होता है …..तुरन्त …………..इसको कोई भी कर सकता है ……..।

ये स्त्रोत्र है राम ! भगवान सूर्य ……जो देवता और असुर दोनों के ही वन्दनीय हैं ……….उन भगवान आदित्य का ये स्तोत्र है ।

ये स्त्रोत्र सर्वमंगल कारी …………सर्व अनिष्ट हारी……….आयु दाता ..गुण वर्धक ……और शुभ परिणाम देनें वाला है ।

हे राम ! भगवान सूर्य निशा निवर्तक हैं……….इसलिये ये स्त्रोत्र निशाचरों का संहारक है …………आप इस स्तोत्र को धारण करें ।

इतना कहकर उस “आदित्य हृदय स्तोत्र” को महर्षि अगत्स्य नें श्रीराम को दिया …….।


( साधकों ! आज से 18 वर्ष पहले मैं भी किसी अज्ञात भय से ग्रस्त था , मुझे एक अच्छे सिद्ध महात्मा नें सलाह दी थी कि “आदित्य हृदय स्त्रोत्र” का पाठ करो………..मैने किया तो मुझे तुरन्त लाभ हुआ ।
आप भी इसका पाठ करें…सर्वबाधा से मुक्त होंगें ये मेरा विश्वास है ।
ये गीताप्रेस ( गोरखपुर ) में भी प्राप्त है , वाल्मीकि रामायण के लंका काण्ड का ये स्त्रोत्र है )


श्रीराम नें “आदित्य हृदय स्तोत्र” को पाकर …..महर्षि अगस्त्य को प्रणाम किया ……..महर्षि और सुर चले गए थे ।

श्रीराम , प्रातः के समय सागर किनारे आचमन करके बैठे ….भगवान सूर्य नारायण की ओर मुख करके उस स्तोत्र का पाठ करनें लगे थे ।

तीन बार ही पाठ किया था कि …….सूर्य की रश्मियों से आवाज आनें लगी थी ……….”.शीघ्र शत्रु का वध करो ……शीघ्र शत्रु का वध करो “

आचमन करके सूर्य को प्रणाम करके …श्रीराम नें धनुष को उठाया…।

उस समय श्रीराम का मुखमण्डल सूर्य के समान ही अत्यन्त तेजपूर्ण था।

शेष चरित्र कल ………!!!!!

जय श्री राम 🌹


Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-82”

( सखाओं के कन्हैया )


गतांक ते आगै ……..

मैं मधुमंगल …….

मेरौ ही नही …समस्त जीव कौ सखा एक मात्र कन्हैया ही है ।

सनातन सखा है जि हमारौ ..हम भूल गए, बात अलग है ..लेकिन सही में सच्चो सखा तौ यही है ।

हम दुखी हैं …..चौं कि हम या सच्चे सखा कूँ भूल गए हैं ……हम दुखी हैं ….चौं कि हमने झूठे लोगन कूँ अपनौं माननौं आरम्भ कर दियौ है । हम दुखी हैं …चौं कि मूल कूँ छोड़के हम शाखान में उलझे पड़े हैं ….याद राखियों ..मूल कूँ त्यागके कोई भी सुखी नही है सके है …और मूल है हमारौ कन्हैया ।

या लिए सख्य रस प्रधान है …..अब इन गूजरी गोपिन की बातन कूँ मत सुनियों …..जि तौ कछु भी कहती रहें …..पढ़ी लिखी नही हैं ना ! अब हम तो पोथी पत्रान कूँ घोंट के पी गए हैं …..या लिए हमें सब पतौ है ……कल चन्द्रावली कह रही ……गोपी भाव सर्वोच्च भाव है …..अरे ! तो तुम्हारे काजे होयगौ गोपी भाव सर्वोच्च …….हम तौ पुरुष हैं , हमारे काजे तौ सखा भाव ही सर्वोच्च है।

अब कहा बताऊँ …..मेरी बात जब इन गोपिन ते छिड़े ….तौ दारीकौ कन्हैया मेरौ पक्ष नही लेय है ….गोपिन ते ही चिपके…..कोई बात नही ….गोपी माखन हूँ तौ खिलावै …….हमें हूँ खिलामें या लिए गोपिन कौ पक्ष लेय है कन्हैया ….वैसे तौ सखा भाव ही सर्वोच्च भाव है …..हम सनातन सखा हैं कन्हैया के ……….


नही , नही …..लाला ! जे नही है सके । मैया यशोदा ने साफ साफ शब्दन में मना कर दियौ ।

किन्तु मैया ! हम सखान ने चार दिना पहले ते ही ….कन्हैया आगे कहवे जाय रो….किन्तु मैया यशोदा ने फिर कह दियौ ……”नही”…..तेज आवाज में कही ही …या लिए कन्हैया रोयवे लगौ । अब तौ संकट में मैया ….सबेरे सबेरे रोय रो है कन्हैया । बृजराज बाबा भी कह रहे हैं ….यशोदा ! काहे कूँ रुलाय रही हो …..लाला की बात मान लो ना ।

मैया कूँ पतौ है ….कन्हैया अपनी बात बिना मनवाये मानेगौ नाँय …..तौ मैया कूँ बात माननी पड़ी …..बस तभी ….कन्हैया ने अपने अश्रु पोंछे और फेंट में ते शृंगी निकाल के बजाएवे लगो । शृंगी की ध्वनि सुनते ही …सखा सब समझ गए कि …वन-भोजन आज पक्को है गयौ है ।

अब तौ सब ग्वाल सखा अपने अपने घर ते …सामग्रियाँ लै कै चलवे लगे ….सखान की माताएँ अपने बालकन कूँ लड्डू दै रहीं हैं ….पेड़ा रख दै रही हैं ….मलाई …दूध की बढ़िया मलाई ……कोई नमकीन दै रही हैं ….कोई मठरी दै रही हैं …….सब बालक अपनी माताओं से माँग रहे हैं ….मैया ! आज वन-भोजन होगा …..बढ़िया वस्तु धर दै । मैया ! कन्हैया खायगौ ….बढ़िया वस्तु दीयौ ।

सब अपने अपने घरन ते भोजन सामग्रियाँ लै कै नन्द भवन की ओर चले ।

इधर …….मैया यशोदा आज कन्हैया के तांईं …माखन रख दै रही हैं …..आज खीर हूँ बनाई है मैया ने , तौ खीर हूँ रख दीनी है और पूआ …लाला ! खीर के साथ पूआ खाय लीयौ ।

ठीक है ..ठीक है मैया , खाय लूँगौ …..कन्हैया कूँ अब जानौं है श्रीवन की ओर ।

सब सखा आय गये हैं …….कन्हैया ने भोजन सामग्री लई ……लेकिन मैंने बाकी सारी सामग्री अपने पास धर लई …..और कन्हैया के पीछे मैं चल दियो हो ।


सुन्दर श्रीवन …..चारों ओर लतान में पुष्प खिले हैं ….सुगंध ते श्रीवन महक रह्यो है …..कोमल कोमल दूब चरवे कूँ बच्छन कूँ छोड़ दियौ है ….सब दूब चर रहे हैं ।

एक सखा कूँ मोर पिच्छ मिल गयौ तौ वो वहीं ते दौड़ के आयौ ……और मोर पंख कन्हैया के सिर में खोंस दियौ । उधर ते दूसरौ सखा आय रो है …..गुंजा की माला बाने बनाय लई ही ….कितनी जल्दी बनाय कै लै आयौ ……और कन्हैया के गले में डाल दियौ ….फिर दूर खड़ो है कै देखवे लग्यो हो …अपने प्यारे सखा कन्हैया कूँ ।

एक सखा ने तौ आम के कोमल पल्लवन की माला बनाय दई ….और कन्हैया के सिर में लगाय दियौ …..याते शोभा और बढ़ गयी ही कन्हैया की ।

एक सखा कूँ तौ मृग ने अपनी कस्तूरी ही देय दई ….कस्तूरी लेय के बा सखा ने पत्थर में घिस लियो …..फिर मोर को पंख लै कै कन्हैया के मुखचन्द्र में पत्रावलि बनानौं शुरू कर दियौ …….एक ने सुन्दर पुष्प की कलियन के बाजू बन्द …कानन के कुण्डल …..आहा ! सुन्दर ते हूँ सुन्दर है गयौ है आज कन्हैया तौ । सब बड़े आनंदित हैं । लेकिन अब श्रीवन ने जब देख्यो ….कि सब कन्हैया की सेवा में लगे हैं तौ श्रीवन ने हूँ अपनी ओर ते सेवा शुरू कर दई ……पुष्प बिखेर दिए श्रीवन ने …..अब जिधर कन्हैया जायेंगे ……पुष्प पाँवड़े उधर ही बिछ जायेंगे । सरोवर आदि ने अपने कमल पुष्प खिलाने आरम्भ कर दिए …….सुरभित समीर चल पड़ी । इतना ही नही ….अब तौ नभ में भी देवों और ऋषियों की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी । शोभा इतनी कन्हैया की …कि नभ से जब अप्सरायें कन्हैया को देखतीं और कन्हैया तनिक सा मुस्कुरा देते तौ …”आह” कहते भए अप्सराएँ विमान में ही मूर्छित होकर गिर रही हीं । का बताऊँ ।

क्रमशः…..

Hari

] Niru Ashra: || श्री हरि: ||
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श्रीभगवन्नाम – स्मरण
( पोस्ट 2 )
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गत पोस्ट से आगे …….
आजकल एक ऐसी शंका होती है कि ‘जहाँ भगवन्नाम के माहात्मय के विषय में इतना कहा जाता है वहाँ देखने में उसके विपरीत क्यों आता है ? यदि भगवन्नाम में कोई वास्तविक शक्ति होती तो निरन्तर और अधिक संख्या में नाम-जप करने वाले लोगों में विशेष परिवर्तन क्यों नहीं देखा जाता ? शंका कई अंशों में ठीक है, परन्तु बहुत से कर्म ऐसे होते हैं जिनका परोक्ष में भारी फल होने पर भी प्रत्यक्ष में नहीं देखा जाता अथवा तत्काल न दीखकर देर से दीखता है | कई बार पूर्ण फल न होने के कारण आंशिक रूप में होने वाले फल का पता नहीं लगता | एक आदमी बीमार है और उसके कई रोग हैं, दवा से पेट का दर्द दूर हो गया पर अभी ज्वर नहीं छूटा | इससे क्या यह समझना चाहिये कि उसे दवा से कोई लाभ नहीं हो रहा है ? लाभ होने में जो विलम्ब होता है उसमे कुपथ्य ही प्रधान कारण है | हम नाम-जप करने के साथ ही नामापराध भी बहुत करते हैं | इसके अतिरिक्त श्रद्धा और विश्वासपूर्वक नाम-जप नहीं करते | कहीं बहुत थोड़े मूल्य में उसे बेच देते हैं | मामूली सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति अथवा मान-बड़ाई के बदले में उसे खो देते हैं | हम कीर्तन करते हैं और फिर पूछते हैं कि ‘क्यों जी ! आज मैंने कैसा कीर्तन किया ?’ इस प्रकार अश्रद्धा, अविश्वास, सकामभाव अथवा लोगों में बड़ाई पाने के लिये किये जाने वाले नाम-जप कीर्तन से वास्तविक फल देर में हो तो क्या आश्चर्य ? नाम-कीर्तन का एक सुन्दर क्रम और स्वरूप श्रीमदभागवत में बतलाया गया है (११/२/३९-४०) |
‘चक्रपाणि भगवान् के प्रसिद्ध जन्म, कर्म और गुणों को सुनकर और सुनकर और उनकी लीलाओं के अनुरूप नामों को लज्जा छोड़कर गान करता हुआ, अनासक्त भाव से संसार में विचरे | इस प्रकार के निश्चय से प्रियतम प्रभु के नाम-कीर्तन में प्रेम उत्पन्न होता है, तब वह भाग्यवान पुरुष प्रेमावेश में खिलखिलाकर हँसता है, कभी सुबकियाँ भरता है, कभी जोर-जोर से रोने लगता है, कभी ऊँचे स्वर से गाने लगता है और कभी उन्मत की भाँति नाच उठता है |’
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शेष आगामी पोस्ट में …..


[] Niru Ashra: (साधकों के लिए)
भाग-3

प्रिय ! करहूँ रे मन निष्काम भजन…
(सन्त वाणी)

मित्रों ! आकाश में काले काले बादल छा गये
…प्रातः के 6 बज रहे थे… कुञ्ज में
साधक जन बैठ कर “ध्यान रस” ले रहे थे… कोई
तमाल वृक्ष के नीचे बैठा था तो कोई आम के वृक्ष
के तले… बारिश शुरू हुयी… पर पागलबाबा
के साधक कमजोर हो कैसे सकते हैं… अरे !
जनवरी की सर्दी में एक बार बारिश हुई थी तब तो
कोई हटा भी नही…और ये तो गर्मी का महीना
है… अमृत ही मानो श्री किशोरी जी बरसा रही
थीं… हम सब लोग भींग रहे थे… पर आनंद
इतना आरहा था कि वर्णन करने की क्षमता नही है
…बन्द आँखें और बारिश… पर एक बारिश
आँखों से भी हो रही थी… गौरांगी सत्संग
साधना के बाद में बोली थी… हरि जी !
प्रेमियों को बारिश अच्छी लगती है… मैंने कहा
…क्यों ? आँसू नही दीखते ना… ।

बाबा को बड़ा प्रेम है अपने साधकों से… सत्संग
विश्राम के बाद बाबा ने मुझे और गौरांगी से कहा
…सुनो ! “हरिबल्लभा” (बाबा का एक
साधक) के पेट में बहुत दर्द है… पता नही
क्या हुआ… चलो उसे देखकर आते हैं
…मैं गदगद् था इतना प्यार अपने
साधकों से… गौरांगी बोली… हरि जी !
निष्काम प्यार… हरि जी ! निष्काम प्रेम
कितना अच्छा होता है ना !… जहाँ कामना है
…वहाँ आंनद कहाँ ?… जहाँ कामना है
…वहाँ शान्ति कहाँ… हरि जी ! कोई
भी कामना हो… कामना के हृदय में आते ही
हृदय दूषित हो जाता है… और दूषित हृदय ही
अशान्त रहता है…हरि जी ! हमारे बाबा
बोलते रहते हैं ना… कोई कामना हमने की
…और वह कामना पूरी हो गयी… तो ये मत
सोचना कि कामना के पूरी होने की वज़ह से तुम्हारे
मन में शान्ति आयी है…नही…शान्ति
आयी है इसलिए कि एक कामना तो पूरी हो गयी
…तो कुछ देर के लिए तुम्हारा मन निष्काम हो
गया है… कुछ देर के लिए… कुछ ही देर में
दूसरी कामना फिर उठेगी… पर जब तक दूसरी
कामना नही उठी… और पहली कामना पूरी हो गयी
…तब जो बीच का समय है… वो निष्काम
होता है… शान्ति जो आयी है वो उस थोड़ा सा
निष्काम मन जो हो गया उसके कारण आयी है… बाबा बोले सोचो कुछ समय के लिए निष्कामता आजाती है तो कितनी शांति छा जाती है…अगर यही निष्कामता हृदय में बनी रहे तो ?…

बाबा आगे आगे चल रहे थे… हम
दोनों बाबा के पीछे थे… बाबा ने
गौरांगी की बात सुन ली… पीछे मुड़कर देखे
…फिर बोले… एक बात अच्छे से समझना
…जहाँ तुम पुण्य करोगे… वहाँ पाप
भी होगा… पुण्य है तो पाप भी है
…जहाँ तुम पुण्य लेने की कामना से कुछ भी
कर्म करोगे… तुम्हारे साथ पाप भी चलेगा
…तुम पुण्य लेना चाहते हो ना… तो फिर
थोड़ा भी अपराध पाप हो जाएगा ।…अपराध न
बने इसके लिए सावधान रहना पड़ेगा… है ना
बाबा ?… बाबा बोले… पर मूल बात ये है कि
पुण्य को लेने की कामना है तो कितने भी सावधान
रहो… तुम से अपराध होगा ही… अब
जैसे धन की लालसा या पुत्र की कामना से तुम
गोवर्धन में परिक्रमा लगा रहे हो… तो वहाँ
कामना पुत्र या धन को पाने की है… है ना
…यानी पुण्य को लेना चाहते हो… सकाम हो
…तो वहाँ पाप भी भोगना पड़ेगा… पुण्य
भोगना है तो पाप भी मिलेगा… गोवर्धन की
परिक्रमा देते हुये चींटियाँ मरेंगी तो उस
पाप को कौन भोगेगा… कोई भिखारी आया ,
बाबू जी ! कुछ पैसे दे दो… अब तुम ने उसे
“हट्ट” भी बोल दिया तो अपराध हो गया… हाँ
…क्यों कि तुम स्वयं कामना से कर रहे हो
परिक्रमा । बाबा बोले समझे ?
…गौरांगी ने कहा… फिर क्या करना चाहिए ?
…बाबा बोले… ये पाप पुण्य के झंझट को ही
हटा कर फेंक दो… कामना ही न रखो… तो
तुम बच जाओगे… बाबा बोले ये बहुत
सूक्ष्म बात है… अरे ! कामना ही हटा दो
…जो भी करो… “नारायणायेति
समर्पयेत्” जो भी करो… निष्काम होकर करो
…कोई कामना न रखो… बस जो भी करो
…आनंद के लिए करो… जो भी करो अपने
प्रियतम की ख़ुशी के लिए करो… और हमारा
सच्चा प्रियतम भगवान हैं… दान भी करो
…तो “उसी की वस्तु उसे ही समर्पित है”
…ये भावना रखो ! बाबा बोले मैं तुम लोगों
को नर्क से बचा रहा हूँ… और हाँ स्वर्ग से
भी बचा रहा हूँ… स्वर्ग और नर्क दोनों
से बचना है… बाबा बोले स्वर्ग की भी कामना
है तो नर्क जाना ही पड़ेगा ..क्यों कि दोनों का
ही सम्बन्ध “कामना” से है… इसलिए कहता हूँ निष्काम बनो ।
साधक का घर आगया था… उस साधक की पत्नी,
दो बच्चे… उसके माँ और पिता जी… बस ।
घर में प्रवेश करते ही सुगन्ध का एक झोंका सा
आया…उस घर का “ओरा” जबरदस्त था… पूरा
परिवार दौड़ के बाहर आया… पत्नी तो बेचारी
किंकर्तव्य विमूढ़ हो गयी थी… उसको समझ नही
आरहा था कि क्या करें ?… पति देव साष्टांग
चरणों में लेट गये… बच्चे प्रेम से बाबा
की चरण धूल ले रहे थे… सब के गले में
तुलसी की कण्ठी थी… सबके मस्तक में
उर्ध्वपुण्ड था… और आनंद मन को तब मिला जब
उन बच्चों के हाथ में भी झोली माला थी… और
सभी लोग “श्री राधा श्री राधा” नाम का उच्चारण
कर रहे थे… बाबा को लेकर भीतर गये… हम
लोग भी साथ में ही थे… बाबा को एक लकड़ी के
तख़त में खाली कम्बल बिछाकर बैठायें… बाबा
कम्बल में ही बैठते हैं… बाबा के लिए दूध
लाने के लिए साधक की पत्नी किचन में गयीं
…तो वह दूध को अच्छे से उबाल रही थीं
…और बड़े प्रेम से… “आज हरि आये बिदुर
घर पाँवणा” सुमधुर कण्ठ से गा रही थीं ।
…बाबा ने बड़े प्रेम से उन “हरिबल्लभा” साधक
से पूछा क्या हुआ ?… बस कुछ नही गुरुदेव !
थोड़ा पेट में इंफेक्शन हो गया था… बस ।
बाबा ने कहा… “अच्युत अनन्त गोविन्द” आज
इन नामों का उच्चारण करो…अभी कुछ मत खाओ
…बस शुद्ध जल इस नाम के उच्चारण के साथ पीते
रहो… शाम को रोटी खा लेना… ।
दूध लेकर उनकी पत्नी आयीं… पति ने कहा
…मुझे अगर पता होता कि मेरी बीमारी की वजह
से आप आते… तो मैं पहले ही बीमार हो
जाता… हम सब हँसे बाबा ने कहा
…आज नही गये दुकान ?… बाबा! आज दुकान नही खोली… बाबा बोले… कोई बात नही ..अब ठीक हो जाओगे… सुनो ! पानी का ध्यान देना
…बाबा मिनरल वाटर ही पीते हैं… बाबा
बोले… अभी मिनरल वाटर से भी नही होगा
…अभी तो पानी को उबाल कर ही पीयो ।
उनकी पत्नी ने दूध लाकर दिया… बाबा ने बड़े
प्रेम से दूध पीया… मैंने देखा… उस परिवार को… कोई महत्वाकांक्षा नही… बस
आनंद से भजन करते हुये… बच्चों को
संस्कार देते हुये… अपने जीवन को आनंद से
जी रहे हैं…जो भी कमाते हैं… उसका
दसवां हिस्सा बिना बताये… अनाथ बच्चों
के कार्य में… गौ के लिए… और गर्मी
में यात्रियों के लिए जल की व्यवस्था
…पक्षियों के लिए दाने…बारिश में
वृक्षारोपण जैसे कार्यों में अपने धन को लगाते हैं । सुबह ही वह साधक 6 बजे से 9 बजे
तक सत्संग में अपने परिवार के साथ
पत्नी और बच्चे, सब लोग मिल कर सत्संग साधना में जाते हैं ।
साधना के बाद पति दुकान में… और पत्नी
प्रेम से घर की सेवा में… हाँ सेवा में…
…बच्चे, स्कूल । घर में रहकर पत्नी एक
लाख नाम जप करती हैं… पति दुकान में बैठकर
एक लाख नाम जप करते हैं… और बच्चे इन
दोनों के संस्कारों से युक्त होकर दिव्य
विचारों से भरे हुये हैं । बाबा चलने लगे तो उन साधक ने हाथ जोड़कर कहा – गुरुदेव !
साधना से सम्बंधित कुछ मार्ग दर्शन ?…
बाबा बोले !… रात्रि में सोते समय डायरी
लिखने की आदत डालो… और उसमें लिखो… कि
तुम्हारा आंतरिक चिंतन कल की अपेक्षा आज बढ़ा
या घटा ?…कितने बजे उठे… आज उठते समय मन
की वृत्ति कैसी थी ?…आज दिन भर में क्रोध
कितनी बार आया ?… कहाँ गये ?… और आज
साधना बढ़ी है तो क्यों बढ़ी ?… और आज साधना में मन नही लगा तो क्यों नही लगा ?
…आज कहाँ गये थे ?… किससे मिले ?
…उस व्यक्ति के मिलने से कोई साधना में
डिस्टरबेंस तो नही हुआ ?…
बाबा बोले… इस तरह रोज डायरी लिखो
…और रात्रि में सोने से पूर्व लिखकर
भगवन् नाम लेते हुये सो जाओ । पत्नी ने बड़े
भाव से कहा… गुरुदेव ! मैं भी लिखूं ?
…बाबा हँसे हाँ… तुम तो मुख्य हो
…मेरी दृष्टि में साधक और साधिकाएं दोनों
बराबर हैं…और दोनों को ही इस मार्ग में
चलने का अधिकार है ।
बाबा चलने लगे… तो बारिश तेज़ हो गयी
…बाबा बोले… मैं तो जाऊँगा ही… तुम
दोनों… ? गौरांगी की ओर मैंने देखा और
प्रश्नवाचक नज़र से देखा… गौरांगी बोली
…भीजेंगे… बारिश में ही हम तीनों
चल पड़े… छाता ओढ़ना बाबा को पसन्द नही है
…धीरे धीरे हम लोग चल रहे थे… ।

बूंदे हमारे देह को छू रही थीं गौरांगी गा रही थी… तो बाबा भी सुनकर आनंदित हुये… मल्हार सुना रही थी… ।

“बरसत क्यों नही पानी रे गुमानी घन,
दादुर मोर पपीहा बोले, कोयलियारी सरमानी, रे गुमानी घन”

Harisharan

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