[] Niru Ashra: 🙏🥰 श्री सीताराम शरणम् मम 🥰 🙏
🌺भाग 1️⃣4️⃣2️⃣🌺
मै जनक नंदिनी ,,,भाग 2
*(माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*
🌱🌻🌺🌹🌱🥰🌻🌺🌹🌾💐
“वैदेही की आत्मकथा” गतांक से आगे –
मैं वैदेही !
मेरे श्रीराम नें मुझे कहा ……….मैने समस्त भील भिलनियों से हाथ जोड़कर कहा …….आप सब आइये हमारी अयोध्या !
हमें भी अब अवसर दीजिये आपके सत्कार का !
मेरी बात सुनकर भीलनियाँ बोलीं ………..आप नही बुलाती तब भी हम जबरदस्ती आपके अयोध्या में आते ।
ऐसे कैसे आते जबरदस्ती ? लक्ष्मण हँसते हुए बोले ।
और लक्ष्मण से सब परिचित हैं ………इनकी बात का कोई बुरा भी नही मानता ।
क्यों ? 12 वर्षों तक हमनें इतना खिलाया पिलाया ……..हिसाब नही लेंगीं ! ………..ये कहते हुये वो भोली भाली भीलनियाँ खूब हँसीं …………….मैने भी हँसते हुए ……ठीक !
ओह निषाद राज ! ……..सामनें से आरहे हैं ………आँखों में पट्टी बंधी है ……….दो लोग अपनें मुखिया को पकड़ कर ला रहे हैं ।
अब तो मेरे श्रीराम से रहा नही गया …..दौड़ पड़े विमान से उतर कर ।
निषाद राज ! उधर से निषाद राज नें जब सुना मेरे श्रीराम की अमृतवाणी कानों में जा रही है ……….
वो भी दौड़े ………….नाथ !
दोनों गले मिले …………………ये क्या है आँखों में ?
उस पट्टी को निकाल दिया मेरे श्रीराम नें ।
आपको देखनें के बाद किसी को देखना नही चाहता था …….इसलिये ये पट्टी बाँध ली थी ……….हे नाथ ! आज बहुत अच्छा लग रहा है …..आपको देखते हुए …………भावावेश में निषाद राज थे ।
नाथ ! नाथ ! मेरी नाव ! मेरी नाव में ही आपको जाना है पार !
उधर से केवट दौड़ा आया ……………..
ये केवट है …………मैनें त्रिजटा को उसका परिचय दिया ।
बहुत भोला है …………….हृदय निर्मल है इसका ……..पता है त्रिजटा !
क्रमशः….
शेष चरित्र कल …..!!!!!!
🌹🌹जय श्री राम 🌹🌹
[] Niru Ashra: “श्रीकृष्णसखा ‘मधुमंगल’ की आत्मकथा-103”
( कालीदह में कूदे श्याम )
कल तै आगै कौ प्रसंग –
मैं मधुमंगल …….
अरे कन्हैया ! ऐसौ मत कर, मत कूद । देख तेरे बिना हम कैसे जीएँगे ।
कान्हा ! सब चिल्ला रहे हैं ।
भैया ! मैं श्रीदामा की गेंद लैवै जाय रो हूँ ….बस , गयौ और आयौ । कन्हैया कदम्ब वृक्ष तै हम सबकूँ समझाते भए बोले हे ।
नही चहिए गेंद ! बिलखतौ भयौ श्रीदामा बोल्यो ।
कन्हैया ! तेरे लिए गेंद तौ हजारन आय जाएँगी ….मैं लै कै आऊँगौ …लेकिन तू आजा ! तू यमुना में मत कूद । श्रीदामा ने प्रार्थना के स्वर में कही ।
भैया ! जब तक मैं यमुना तै लौट के न आऊँ तुम सब लोग यहीं रहियौं …..कही मत जईयौं । और हाँ , मेरे भवन में जाय के मेरी मैया ते तौ बिल्कुल मत कहियौं …..कन्हैया कदम्ब वृक्ष तै सबकूँ समझाय रहे हैं ……
या प्रकार कन्हैया की बातन कूँ सुनके तौ सब बृजवासी बालक रोयवे लगे ……श्रीदामा हिलकियन तै रोतौ जा रो है ।
कन्हैया ! नाग रहे या में । अब मैं बोल्यो ।
क्यों कि मोकूँ लग रह्यो ….मात्र गेंद के ताईं तौ कन्हैया इतनी बड़ी लीला करेगौ नईं । क्यों कि कन्हैया अगर कालीदह में कूदयो तौ सच में नन्दगाँव के सब लोग कालीदह में कूदके अपनी जीवन लीला समाप्त कर देंगे । क्यों कि सबकूँ पतौ है या हृद में कालिय नामकौ एक महा भयानक नाग रहे है । यामें जो जाएगौ बाकूँ कोई नही बचा सके ।
या लिए मैंने कन्हैया की लीला जानवे के काजे कही …..कन्हैया ! यामें नाग रहे ।
मेरी बात सुनके कन्हैया मोकूँ देखके मुस्कुरायौ ..फिर बोलो ..मैं वाही नाग कूँ नथवे जाय रो हूँ ।
मैं चौंक गयौ …वा महाविषधर नाग कूँ तू नथेगौ ?
कन्हैया हंस्यो ……फिर बोल्यो ….मधुमंगल भैया ! नाग कूँ नथुगौं ही नही ….बाकूँ नंदगाँव हूँ लै कै जाऊँगौ …और हे मधुमंगल ! सावन में झूला झूलूँगौ, वाही कालिय नाग की रस्सी बनाय के ।
कन्हैया की बात सुनके सब स्तब्ध से है गये हे । श्रीदामा तौ रोय रह्यो है ..तब कन्हैया ने कही …श्रीदामा ! रो मत भैया ! मेरौ यमुना में जानौं ज़रूरी है ..नही तौ कालीय नाग कौ विष धीरे धीरे पूरे बृजमण्डल में फैल जावैगौ …और मेरे बृजवासी बहुत कष्ट पामेंगें ।
या लिए मेरे भैयाओं ! तुम लोग यहीं रहो …कहीं मत जाओ …मैं बस अभी आयौ ।
नही , नही , कन्हैया ! सुबल सखा चीख के बोल्यो ।
तेरे बिना हम सब मर जायेंगे । तू आजा । तोक सखा हलकियन ते रोय रो है ।
भैयाओं ! मोकूँ कछु नही होयगौ …..मोकूँ डर नही लगे है …और या कालीय नाग तै कहा डरनौं …..फिर या श्रीदामा की गेंद । कन्हैया ने मुस्कुराते भए फिर एक बार श्रीदामा की ओर देख्यो ….फिर बोले ……अब मैं जाय रो हूँ ….सब यहीं रहींयौं , मेरी मैया कूँ जाय के मत बतईयों …..मैं गयौ और आयौ …..इतनौं कहके कन्हैया कालीदह में कूद गये ।
ओह ! हम सखान में चीख पुकार मच गयी ….श्रीदामा कन्हैया के पीछे कूदवे कूँ तैयार हो ..मैंने ही बाकूँ पकड़ के रोक्यो हो ।
क्रमशः…..
Hari sharan
[] Niru Ashra: 🌼🌸🌻🌺🌼🍁🌼🌸🌻🌺🌼
*💫अध्यात्म पथ प्रदर्शक💫*
*भाग - १३*
*🤝 ४. व्यवहार 🤝*
_*मानव जीवन के लक्ष्य*_
‘आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् ।’
पशु में तथा मनुष्य में तात्त्विक दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। जिस विषय-सुख को गधा भोगता है तथा जिस सुख को इन्द्र भोगता है, वे दोनों समान ही हैं। इन्द्र की दृष्टि में मनुष्य का भोग तुच्छ दीखता है और मनुष्य को श्वान का तथा गधे का भोग तुच्छ लगता है। परंतु अपनी दृष्टि से तो प्रत्येक प्राणी को एक समान भोग-सुख का अनुभव होता है; इसलिये विषय-सुख की प्राप्ति को मनुष्य-शरीर का ध्येय नहीं कहा जा सकता; क्योंकि यह तो प्रत्येक योनि में समान रूप से प्राप्त है।
लब्धवा सुदुर्लभमिदं बहुसम्भवान्ते मानुष्यमर्थदमनित्यमपीह धीरः ।
तूर्णं यतेत न पतेदनुमृत्यु याव-
न्निःश्रेयसाय विषय: खलु सर्वतः स्यात् ॥
(श्रीमद्भा० ११/९/२९)
श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध में भगवान् श्रीकृष्ण उद्धवजी से अपने उपदेश का उपसंहार करते हुए कहते हैं। कैसा आनन्ददायक श्लोक है! इसमें ऐसी रचना है कि प्रत्येक चरण का पहला शब्द लीजिये और सारे श्लोक का, यहाँतक कि सारे एकादश स्कन्ध का रहस्य समझ लीजिये। जैसे, *'लब्ध्वा मानुषं तूर्णं यतेत निःश्रेयसाय'*- अर्थात् यह मनुष्य-शरीर पाकर अविलम्ब आत्मकल्याण की साधना कर लेनी चाहिये। यदि कोई पूछे कि 'अविलम्ब क्यों? बुढ़ापे में गोविन्द-गुण गाये, तो क्या काम नहीं चलेगा?' तो इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि यह शरीर क्षणभंगुर है; इसका कब नाश हो जायगा, कुछ पता नहीं। मृत्यु दस-पाँच दिन पहले सूचना भी नहीं देती कि मैं आ रही हूँ; तथा अमुक मनुष्य के सारे मनोरथ पूर्ण हुए या नहीं, यह पूछने के लिये भी नहीं रुकती। वह तो समय होते ही टपाक से मनुष्य को क्षणमात्र के लिये भी पूर्व से सूचना दिये बिना उठा लेती है। इसलिये कहते हैं कि कुछ भी प्रमाद किये बिना यत्न करने में लग जाओ। यत्न कौन करेगा? कहते हैं कि *'धीर:'* - जो धीर पुरुष अर्थात् चतुर पुरुष हैं, अपना हिताहित समझते हैं। मनुष्य-जन्म प्राप्त होनेपर भी जो पुरुष अपना हित नहीं समझता, उसको शास्त्र आत्महत्यारा कहता है। *'स भवेदात्मघातकः'* (श्रुति) । तुलसीदासजी कहते हैं-
जो न तरइ भव सागर नर समाज अस पाइ।
सो कृतनिंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ ॥
अब पुरुष का हित किसमें है, यह विचारना है। यही प्रसंग उद्धवजी को समझाते हुए भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-
एषा बुद्धिमतां बुद्धिर्मनीषा च मनीषिणाम् ।
यत् सत्यमनृतेनेह मर्त्येनाप्नोति मामृतम् ॥
(श्रीमद्भा० ११/२९/२२)
'चतुर मनुष्य की चतुराई और बुद्धिमान् की बुद्धिमानी इसी में है कि इस संसार में आकर इस क्षणभंगुर और विनाशशील शरीर के द्वारा मुझ अविनाशी को प्राप्त कर ले।'
क्रमशः.......✍
*🕉️श्री राम जय राम जय जय राम।🕉️*
[] Niru Ashra: (सिर्फ़ साधकों के लिए)
भाग-26

प्रिय ! हरि आशिक़ का मग न्यारा है …
(सन्त वाणी )
मित्रों ! मैं कल 3 बजे उठा और अपना भजन ध्यान
इत्यादि से 4 बजे तक निवृत्त हो गया था
…मुझे श्री अवध के लिए निकलना था …मुझे
जनकपुर के मित्र के साथ अवध की यात्रा करनी
थी…जल्दी निकल जाएंगे तो ठीक रहेगा ऐसा
विचार करके हम भोर में ही तैयार हो गये और
अपनी गाड़ी में बैठ गये थे ।
तभी गौरांगी का फोन आया …मैंने उठाया तो उधर
से रोने की आवाज़ आरही थी …मैंने कहा
…क्या हुआ ? …गौरांगी बोली हरि जी !
बाबा की तबियत खराब हो गयी है …आप जल्दी
आइये ना …मैंने अपने मित्र से कहा
…मुझे जाना पड़ेगा पागलबाबा के पास
…मित्र बोले …तबियत ही तो खराब है
…ठीक हो जायेगी …चलिये …मैंने कहा
…नही मुझे घबराहट हो रही है …मैं जाऊँगा
…मैं वहाँ अपने पागलबाबा को देखकर आऊँगा
…पर हम लोग वापस जाएंगे तो मुहूर्त
खराब हो जाएगा …मैंने कहा …भाड़ में जाए
मुहूर्त मेरे बाबा ठीक रहेंगे तो मेरा सब
मुहूर्त ठीक है …मेरे बाबा ठीक नही हैं
…तो मेरा मुहूर्त जीवन भर के लिए खराब हो
जाएगा …वही है मेरे अब ।
मैं गया पागलबाबा के पास …सत्संग साधना
आज नही हो पाई …कैसे होगी …बाबा की तबियत
ठीक नही है …मैं गया तो गौरांगी रो रही
थी …मैंने उसको ढांढस बधाया …कहाँ है
बाबा ? …मैं दौड़ के भीतर कुटिया में गया
…भीतर बाबा बेहोश थे …दर्द बढ़
गया था किडनी का …पसीने ही पसीने में
नहा रहे थे बाबा …दो साधक पंखा कर रहे थे ।
डॉ. को स्वयं ही घर से ले आयी थी गौरांगी
…और अंग्रेजी में अच्छे से समझ रही थी
…दवाइयों को कैसे देना है …परहेज क्या
क्या है सब । 4 बजे से 6 बजे तक मैं वहीं
बाबा के चरणों में ही बैठा रहा …कभी चरण
के तलवे में हाथ फेरता था …कभी उनके हाथों
को …ऐसी बेहोशी में भी बाबा का नाम जप
चल ही रहा था …”राधा राधा” ये चल ही
रहा था …।
बाबा को क़रीब 6 बजे होश आया …पानी की कुछ
घूंट बाबा को पिलाई गयी …किडनी दोनों ही
फ़ेल हैं ।
होश में बाबा के आते ही …गौरांगी मेरे
गले लग कर बहुत रोई …खुश होकर …।
हरि ! बाबा ने मेरा नाम लेकर बुलाया
…मैं चरण से उठ कर उनके चेहरे के पास गया
…जी बाबा ! …तुम नही गये श्री अवध ?
…मैंने कहा …बाबा ! आप की ये अवस्था देख
कर …नही जाओ …अरे ये शरीर है
…मिट्टी में ही मिल जाएगा …इसको क्या
गम्भीरता से लेना …पर हमें आपकी अभी
बहुत जरूरत है …आप को कुछ हो गया ना
…तो हम तो अनाथ हो जाएंगे …हमारा सब कुछ
लूट जाएगा …बाबा बोले …तुम लोगों को
मुझ से किसने मिलाया …प्यारे श्री कृष्ण
ने ना …तो वहीं देखेगा …किसी और से
फिर मिला देगा ..।
नही ! हमें आप ही चाहिएँ …। मैंने
बाबा का हाथ पकड़ा हुआ था …और बाबा …
मैंने अपने आँसुओं को पोंछते हुये कहा …हम तो आप पर आसक्त हो गये हैं …और आपके प्रति ये
आसक्ति ही हमें उस “परम” से मिला देगी
…मिला ही दिया है …और ये सब आपकी
कृपा है …। अच्छा जाओ …अब तुम्हें
लेट हो जाएगा …मैंने कहा …आप अपना ख्याल
रखेंगे …
बाबा ने कहा …अब मैं क्या ख्याल रखूँ अपना
…वो देखेगा …वो रखेगा ख्याल उसे रखना
होगा तो …नही तो बुला लेगा।
जाओ ! हरि ! जाओ …कब तक लौटोगे ?
…मैंने कहा …दो या तीन दिन में …ठीक है
…जाओ …। मैंने कहा …आपके लिए हम
लोग 10 माला नित्य जपेंगे …बाबा बोले
…क्यों ? …इस तुच्छ देह के लिए ? और
10 माला मेरे लिए तो और माला जप किसके लिए
…अपने लिए …? बाबा बोले …ये बेकार की
बातें हैं …अरे ! उसे ठीक रखना है तो
रखेगा …नही तो नही …।
तुम जाओ …आराम से जाना श्री अवध ।
मैंने प्रणाम किया …और बाहर आया
…गौरांगी भी आयी बाहर …मैंने कहा ..सुन !
मुझे जाना पड़ेगा …मैं सम्पर्क में रहूँगा
…मुझे हर बात बताना । हाँ में
सिर हिलाया गौरांगी ने ।
मैं आया , मेरे मित्र ने गाड़ी में चलते हुये
कहा …आप सच में ही पागलबाबा से आसक्त हो
गये हैं । मैंने उनसे कहा …यही आसक्ति
ही “प्रेमसाधना” के प्राण हैं…पता है
सरकार ! एक बार बाबा के पास एक युवक गया
…और उसने कहा …मुझे इस साधना में लगा
लीजिये …बाबा ने कहा …तुम ने किसी से
प्यार किया है ? …तुम अपने जीवन में
कभी किसी से आसक्त हुये हो ? किसी की
आसक्ति में फँसे हो ? …उस युवक ने कहा
…बाबा ! गुर के दरबार में भी झूठ बोलूँ तो
सच कहाँ बोलूँगा …हाँ मैंने एक युवती से
बेहद प्यार किया था …मैं उसके लिए कुछ भी
किया करता था …पर ।
बाबा बोले थे …पर वर छोड़ो …मुझे तो यही
जानना था कि तुम्हारा हृदय सम्वेदनशील है कि नही
…पर तुमने जो बताया कि तुम्हें किसी से
प्रेम था …आसक्ति थी …बस यही हृदय की
सम्वेदनशीलता के माध्यम से तुम उस “परम प्रेम”
को पा लोगे …देखो ! इस प्रेम साधना में
…जो आसक्ति हमारी संसार के प्रति होती है
…उसे संसार से हटा कर उस अविनाशी तत्व में
लगाना है …और तुम्हारा मन अच्छे से लग
जाएगा …बाबा बोले थे …कि श्री गो.
तुलसी दास जी की आसक्ति अपनी पत्नी में थी
…बेहद आसक्त थे …घटना जब घटी तो
उसी आसक्ति को दिशा देकर अध्यात्म के शिखर
को छू लिया श्री तुलसी दास जी ने ।
अच्छा महाराज जी ! एक बात बताईये गुरु के
चरित्र को भी देखा जाना चाहिए या उनके वचनों को
ही सुनकर जीवन में उतार लेना चाहिए …।
मैंने कहा …सरकार ! रसायन शास्त्र पढ़ना है
तो उस पढ़ाने वाले का चरित्र देखने की जरूरत नही
है …क्यों कि बुध्दि का ज्ञान हमें उनसे
लेना है …भौतिक विज्ञान पढ़ना है किसी
शिक्षक से, तो उस भौतिक विज्ञान पढ़ाने वाले
शिक्षक के चरित्र को देखने की आवश्यकता नही है
…क्यों कि बौद्धिक स्तर में आपको उनसे ज्ञान
लेना है …है ना ? …पर ये अध्यात्म है
…इसमें तो गुरु के पवित्र होने की अत्यंत
आवश्यकता है …गुरु का चरित्र अगर ठीक नही है
…तो वह गुरु हमें क्या देगा …? अध्यात्म
गुरु से कोई बौद्धिक ज्ञान तो लेना नही
है…उनसे तो साधना की शिक्षा लेनी है
…और जो स्वयं पवित्र नही है …काम ,
क्रोध , लोभ से भरा हुआ है …वो हमें क्या
शिक्षा देगा ?
इसलिए गुरु को स्वयं पवित्र होना अत्यंत आवश्यक
है …उनका मन पवित्र होना चाहिए …उनकी
बुद्धि विवेकवान होनी चाहिए …चित्त में
वासना के संस्कार अंकित न हों …ये गुरु
की पहचान है । और क्या क्या होना चाहिए
गुरु में ?
मैंने कहा …उनका प्रवचन मात्र बुद्धि का रंजन
करने वाला न हो …उनके बोलने का उद्देश्य
क्या है ? …वो बोल तो अच्छा रहे हैं
…तुम सब को प्रभावित कर दिया …तुम लोग
ताली बजा दिए …पर वो चाहते क्या हैं ?
बड़ी बड़ी बातें कर दीं …भगवत् वार्ता अति
सुंदर हो गयी …पर बाद में बोले ..कि हमारा
आश्रम बन रहा है …उसमें दान दो
…दक्षिणा दो …कौन कौन देगा ? बताओ ?
…जो हजार देगा …उसका ये सम्मान होगा
…जो लाख देगा …उसका सबसे ज्यादा सम्मान
होगा …ऐसी व्यवस्था अगर है तो
तुम्हें उनसे क्या मिल सकता है …ऐसे लोग भले
ही अच्छा बोलें …अनुयायी हजारों बना लें
…पर आप को साधना में आगे नही ले जा
सकते …आप आध्यात्मिक दृष्टि से
निर्धन ही रहेंगें । गुरु होना चाहिए
…जो शिष्य से कुछ न ले …और शिष्य को
अपना सब कुछ दे दे …अपना अनुभव …अपना
ज्ञान …अपना प्रेम ।
कल शाम को 6 बजे अयोध्या जी पहुँच गये
…और मेरी एक लाख माला भी पूरी हो गई ।
“वन्दउँ अवध पुरी अति पावनि”
Harisharan
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877








