Explore

Search

July 20, 2025 12:05 pm

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! महान तपस्विनी बाँसुरी !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! महान तपस्विनी बाँसुरी !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! महान तपस्विनी बाँसुरी !!

भाग 1

भाव समुद्र में डूब गयीं हैं श्रीकीर्ति कुमारी …..वेणु निरन्तर बज ही रही है अब …….वृन्दावन का वातावरण प्रेम के रस से पूरा भींगा हुआ है ।

तभी सामनें बाँस का झुरमुट दिखाई दिया श्रीभानु दुलारी को …….तमाल के कुञ्ज से निकल कर वे दौड़ पडीं और बाँस के वृक्षों से लिपट गयीं……आहा ! धन्य है तू बाँस ! तेरा कुल धन्य हो गया ! तू श्याम सुन्दर के अधरों से लगी है ! श्रीकीर्ति कुमारी आह भरती हैं फिर कहती हैं – हम भी इतनी भाग्यशाली नही है जितनी तू है !
हमको तो अधर का रस आज तक मिला नही ….और वे कृपा करेंगे तो मिल भी जाएगा …….पर एकान्त में मिलेगा…..किन्तु हे वेणु ! तुझे तो निर्लज्जता पूर्वक अधरामृत ये सबके सामनें पिला रहे हैं …………हाँ ! क्यों न पिलायें तेनें तप भी तो बहुत किया है ……….आहा ! महान तपश्विनी है तू तो …..सर्दी गर्मी सब कुछ सहा तेनें …………तुझे काटा गया …..पर तू सहती रही …….फिर तुझ में छिद्र किये गए ……………

श्रीराधारानी कुछ देर के लिये रूक जाती हैं ……….तभी दूसरी ओर भाव में डूबी चन्द्रावली और उसकी गोपियाँ भी इधर ही आजाती हैं ……..

पर श्रीराधारानी प्रेम में मत्त हैं ………

श्री राधिका जी बोलती हैं – अधरों का तकिया मिला है तुझे ……..अपनी कोमल उँगलियों से तेरे पांव दवाते हैं श्याम सुन्दर……..अपनें पलकों से पँखा करते हैं……..और इससे बड़ी बात तुझे आहार में अमृत दे रहे हैं….अधरामृत….अरी ! ये धरा का अमृत नही अधरामृत है …….तभी तो तू मत्त होकर बज रही है…….आहा ! क्या फल मिला है तुझे तपस्या का …..पर तपस्या का फल श्याम के अधरामृत तो हो नही सकते ……ये तो श्याम की कृपा के बिना कहाँ सम्भव है ।

श्रीराधारानी अभी भी बाँसों के वृक्ष को अपनें हृदय से लगाई हुयी हैं ।


अरी सखियों ! ये तो कुलटा है बाँसुरी ! हमारी सौत !

चन्द्रावली अपनी सखियों से उन्मादिनी होकर बोल रही है ।

इसका वंश अच्छा कहाँ हैं …..अशुभ माना जाता है इसे तो ……..बादल इसका बाप है …….क्यों की उसी से तो ये बढ़ती है …….और इसकी माँ की करतूत बताऊँ ! पृथ्वी इसकी माँ है ………कितनों को जन्म देती है …..नित्य चराचर को पैदा करती रहती है ………..फिर भी कुँवारी बनी है ………..अरी ! मैं बताती हूँ इसकी कहानी -………चन्द्रावली का अपना प्रेम है ……..प्रेम का कोई एक मापदण्ड कहाँ ?

असुर ले गया था इस पृथ्वी को ……..तब वराह बनकर विष्णु इसे असुर के घर से लेकर आये थे …….ऐसे इसके कितनें पति हैं कोई पता नही ……….।

फिर चन्द्रावली आकाश की ओर देखती है ……….बादलों को देखकर फिर कहना शुरू कर देती है ………..इसका पिता है ये ………..अजी छोडो इसकी बातें ………….चातक कितना प्रेम करता है इन बादलों से …..पर बूँद नही बरसाता ये उसके लिये …….भले ही चातक मर जाये इसकी बला से ।

ऐसे वंश में तो ये बाँसुरी पैदा हुयी है ।

*क्रमशः ….

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements