श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! आज कन्हैया बनें हैं “गोपाल” !!
भाग 2
आचार्य ! चरणों में साष्टांग प्रणाम करनें लगे थे बृजराज ।
चलो प्रणाम करो !
यही हैं वे पूज्य जिन्होनें तुम्हारा नामकरण किया था !
कन्हैया गए और चरणों में जैसे ही झुके…….आचार्य गर्ग नें उठालिया ……….ऋषि हैं ……..पर कन्हैया को देखकर सब अपनी मर्यादा भूल जाते हैं ………कपोल में चूम लिया था ।
अजीब है कन्हैया ……….पोंछ लिया कपोल …….फिर आचार्य गर्ग को झुकनें को कहा ……मुस्कुराते हुए गर्ग ऋषि झुके ……….तो कानों में कहा ……मुझे गौचारण में जाना है …….कल ही जाना है …….आप कह दीजिये ना मेरे बाबा से !
कानों में अमृत घोल दिया था मानों कन्हैया नें ।
बृजराज ! इन्हें भेज दीजिये गौचारण करनें……प्रसन्नता पूर्वक आचार्य नें बृजराज को कहा ।
मुहूर्त ? हे आचार्य गर्ग ! आप मुहूर्त भी निकाल दीजिये ।
हँसते हुए आचार्य फिर झुके ……कन्हैया से पूछा – मुहूर्त ?
कन्हैया नें कहा – कल का ।
महर्षि शाण्डिल्य नें पत्रा देखा ……… कार्तिक शुक्ल अष्टमी थी ।
मुहूर्त तो बहुत बढ़िया है कल का…….आचार्य गर्ग नें बृजराज को कहा ।
चौं रे ! तू महूर्त भी देख वे लग गयो !
दाऊ जी नें कन्हैया को देखते हुए कहा ।
मेरो संगत है …..मेरे संगत को प्रभाव है………..मनसुख नें गम्भीरता से दाऊ को कहा ।
आचार्य गर्ग नें प्रसन्नता पूर्वक कह दिया …….मैं आज महर्षि की कुटिया में ही ठहरनें वाला हूँ ………कल मैं भी उपस्थित रहूँगा ………..ये बात सुनते ही बृजराज के आनन्द का कोई ठिकाना नही था ।
गोप वृन्द उछल रहे हैं …….गोपों की प्रसन्नता चरम पर पहुँच गयी है ।
हर मार्ग सजानें में लग गए हैं गोप, …….बन्दनवार बाँधनें में गोपियाँ आगे आगयी हैं ………..ध्वजा पताका तोरण ये सब लगाये जा रहे हैं ।
रंगोली काढनें की तैयारियाँ गोपियों की शुरू कर दी है ।
वाद्य वृन्द सब बजनें को उत्सुक हैं ………..पृथ्वी में भी और नभ में भी ………वृन्दावन की प्रकृति झूम उठी है ………….जो पुष्प नही खिलनें थे वे भी खिलनें लगे हैं ………….सुगन्धित वयार चल पड़ी है ।
तात ! आनन्द ही आनन्द छा रहा है वृन्दावन में ।
उद्धव नें कहा ।
प्रातः स्नानादि से निवृत्त हुए समस्त गोप बालक ……कन्हैया को भी उठाया मैया नें ……….माथे को चूमा …….आज मेरा लाला गोपाल बनेगा …..गौओ को चरानें जाएगा ………अपलक देखती रहीं ……..फिर स्नान कराया ………सुन्दर पीताम्बरी धारण कराई …………..मोतिन की माला गले में ………घुँघराले केशों को संवार दिया …..छोटी सी लकुट हाथ में दे दी ………मोर पंख सिर में लगा दिया ,
बाहर भीड़ खड़ी है ………….गोप बालक सब आगये हैं ……..आचार्य गर्ग भी महर्षि शाण्डिल्य के साथ पधारे हैं ……कुछ विप्र वृन्द भी साथ हैं ………..बृजराज सुन्दर रेशमी धोती पहनें हुए हैं …….ऊपर से रेशमी वस्त्र का ही उत्तरीय धारण किया हुआ है ……रत्नों और मोतियों की माला पहनें हैं ……..पगड़ी है सिर में ।
गोपियाँ सब खड़ी हैं सज धज कर…….अब प्रतीक्षा है नन्दनन्दन के बाहर आने की ।
मैया बृजरानी सुन्दर साड़ी पहन कर….अपनें छ वर्ष के पुत्र कन्हैया को गोद में लेकर आईँ मैया ।
पर उतर गए कन्हैया मैया की गोद से …………..और स्वयं ही चल पड़े …..उनकी चाल ………अद्भुत थी ….लकुट हाथ में लिये ।
विप्रों नें तैयारी कर रखी थी ……….हाथ में थाली लेकर छोटे से कन्हाई पूजन करनें लगे……प्रथम गणपति गणेश का …….आचार्य गर्ग नें कहा ।
कन्हैया नें हँसते हुए ऊपर नभ में देखा ……..गणपति गणेश पधारे ……पर इन्हें किसी नें देखा नही …….बस कन्हैया नें देखा ।
अपनें हाथों से गणेश का पूजन किया ………गणेश गणपति के आनन्द का आज पारावार नही है …..आहा !
फिर गायों का पूजन …………बड़े ही प्रेम से गौ का पूजन किया कन्हैया नें ………..आनन्द का क्षण था वो …….सारी गायों में होड़ मच गयी थी ….कि हमें भी पूजे कन्हैया ………….भद्र ! तू भी पूज …….तोक ! तू भी चन्दन लगा दे गायों के …………दाऊ भैया ! तुम भी ……..
सब कर रहे हैं पूजन …………।
“अब बृषभ का पूजन होगा” ……….आचार्य गर्ग नें कहा ।
उसी समय एक विशाल बृषभ वहाँ दौड़ता हुआ आया ………..
तात ! ये स्वयं धर्म थे ………..कन्हैया का कृपा सान्निध्य पानें के लिये ये आगये थे यहाँ ………..कन्हैया नें इनका भी पूजन किया ।
अब ? भोले पन से आचार्य गर्ग और महर्षि शाण्डिल्य की ओर देखकर पूछा कन्हैया नें ।
अब सबका आशीर्वाद लो ………आचार्य नें हँसते हुये कहा ।
कन्हैया नें प्रथम अपनी मैया यशोदा के चरण छूए ……..सजल नेत्रों से आशीष दिया मैया नें ….और अपनें हृदय से लगा लिया ।
फिर बाबा नन्द जी के चरण छूए …….पर पहले ही उठा लिया बाबा नें और चूम लिया कपोलों को ।
फिर रोहिणी मैया के .. …………इसके बाद आचार्य गर्ग महर्षि शाण्डिल्य समस्त विप्र वर्ग के ……।
विप्रों नें स्वस्तिवाचन द्वारा आशीर्वाद दिया नन्दनन्दन को ।
गोपियों नें पुष्प बरसानें शुरू कर दिए ………….नही नही ……पुष्प बरसानें तो देवों नें भी शुरू किये थे …..मंगल गान …..वाद्य……..सब बजनें लग गए ………आगे आगे गौओं को किया और पीछे चल दिए कन्हैया ………चारों ओर से जयजयकार हो रही है ।
तभी – “गोपाल बाल की ……जय जय जय !
“बाल गोपाल की ……जय जय जय !
ये ध्वनि, ये उदघोष गणपति गणेश नें किया था …….और नभ में वही आनन्दित होकर नृत्य कर रहे थे आज ।
*क्रमश.
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