श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सात कोस की परिक्रमा – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 1
अपना कन्हैया लग रहा है ना ये गोवर्धन ?
प्रकट होकर छप्पन भोग आरोग रहे गिरिराज महाराज को मनसुख नें देखा तो श्रीदामा से ही पूछ लिया ।
पर इसके तो चार हाथ हैं ……..हमारे कन्हैया के दो ही हैं ।
अगर चार हाथ के स्थान पर दो ही हाथ होते तो क्या कन्हैया नही लगता ये गोवर्धन ?
हाँ , मनसुख ! तू तो सच कह रहा है …….श्रीदामा का ध्यान अब गया ………अरे मुस्कुराहट भी कन्हैया जैसी ………खानें का तरीका भी कन्हैया जैसा ! नेत्र भी वैसे ही चंचल……..मनसुख अपनी बात कहकर अब ऐसे खड़ा है जैसे उसी नें इस बात को पकड़ा हो …….या इस रहस्य को उसी नें खोला हो ।
फिर कुछ देर बाद मनसुख श्रीदामा के कान में कहनें लगा ………..
ऐसा नही लग रहा…..ये गोवर्धन बहुत दिन का भूखा है ?
श्रीदामा की हँसी फूट पड़ी…………ऐसे नही बोलते ………कान काट देंगे गोवर्धन ! श्रीदामा नें हँसते हुए ही कहा ।
इन्द्र थोड़े ही है अपना गोवर्धन है ये……ये बस खाना जानता है ।
मनसुख फिर शान्त भाव से खड़ा रहा………..वो गोवर्धन महाराज की लीलाओं को देख रहा था । बृजवासी भोग लेकर आते …….पर गोवर्धन महाराज एक ही बार में सब खा जाते हैं ।
मनसुख फिर श्रीदामा के कान में कुछ कहनें लगा…….इस बार श्रीदामा नें सुनी नही उसकी बात ……तो थोडा जोर से बोला……ये गिरिराज गोवर्धन हमारे लिये भी कुछ छोड़ेगा या स्वयं ही सब खा जायेगा !
ये मनसुख के बोलते ही…….पता नही क्या हुआ…….गोवर्धन महाराज नें इशारे में मनसुख को आगे बुलाया…….
अब जा ! खूब बोल रहा था ……अन्तर्यामी हैं गोवर्धन महाराज ……मजाक उड़ा रहा था तू …..अब फल भुगत ….श्रीदामा नें कहा ।
अरे ! तो मैने क्या गलत बोला था…..सब पीछे देखनें लगे…….मनसुख को ही गोवर्धन महाराज नें अपनें पास बुलाया था ……कन्हैया नें खुश होकर मनसुख से कहा ……..तेरे भाग्य खुल गए देख ! तुझे ही बुला रहे हैं मनसुख ! जा …..प्रणाम करके आशीर्वाद ले ।
डरता हुआ मनसुख गोवर्धन महाराज के पास पहुँचा……..”मुझे भोग लगाओ”……गोवर्धन महाराज की गम्भीर वाणी गूँजी ।
भोग लगा मनसुख ! कन्हैया नें कहा ।
मनसुख नें पास में रखे भोग सामग्रियों से लड्डू उठाया और गोवर्धन महाराज को खिला दिया……..वो लौटनें लगा …….तो फिर वही आवाज गूँजी …….प्रसाद नही लोगे ? मनसुख खुश हो गया ……..वो मुड़ा तो वही लड्डू गोवर्धन महाराज नें मनसुख के हाथों में दे दिया था ।
जैसे ही खानें के लिये लड्डू तोड़ा मनसुख नें …….उसमें से दो कानों के कुण्डल निकले…….ले ! ये तेरे लिये दिया है कन्हैया ! तू रख ले ……लड्डू को तो खा गया पर उसमें से जो सुवर्ण के कुण्डल निकले थे उसे कन्हैया को दे दिया था ।
ये तो लड़कियों के कुण्डल हैं ………कन्हैया हँसे ।
हाँ, तो मेरी भाभी को पहना देना……….मनसुख सहजता में बोला ।
तेरी भाभी ? हाँ मेरी भाभी ! ला दे कुण्डल …..मैं उसी को दे देता हूँ ……ये कहते हुए श्रीराधा रानी के पास मनसुख गया और उनके हाथों में दे दिया…….लाल मुख मण्डल हो गया था श्रीराधारानी का शरमा गयीं थीं वो ।
क्रमशः …
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877