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November 21, 2024 10:55 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “अब कन्हैया मिलेंगे”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 71 !! – भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! “अब कन्हैया मिलेंगे”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 71 !! – भाग 1: Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! “अब कन्हैया मिलेंगे”- उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 71 !!

भाग 1

इस बार सम्पूर्ण खग्रास सूर्यग्रहण पड़ रहा है ! ये अच्छा नही है ……हे ब्रजराज ! ऐसा ग्रहण कल्प के आदि में या किसी महाविनाश की तैयारी के लिए ही पड़ता है , हाँ ज्योतिष विद्या कहती है कि कोई बहुत बड़ा युद्ध ये पृथ्वी देखेगी , जिसमें महाविनाश होगा , शायद युग परिवर्तन होने जा रहा है , द्वापर का अन्त और कलि का आगमन ।

अमावस्या आरही थी , अमवस्या पूर्णिमा आदि में ब्रजराज दान पुण्य करते ही हैं , आज इसलिए बृजराज नन्द जी अपने कुल पुरोहित महर्षि शांडिल्य के पास गए थे , और आनें वाली अमावस्या के बारे में पूछ रहे थे ।

तब महर्षि ने ये सब बातें बताईं थीं ।

ब्रज का इससे ज़्यादा और क्या विनाश होगा गुरुदेव !

सौ वर्ष पूरे होने को आरहे हैं कन्हैया ने एक दिन इस ओर मुड़कर भी नही देखा ……ब्रजराज अपने आँसुओं को पोंछते हैं ….ये अपने घर में रो नही सकते , क्यो की मैया अगर बाबा को इस तरह रोते हुए देख लेगी तो उसका कलेजा ही फट जाएगा ।

नन्द बाबा तो घर में सहज रहने का स्वाँग करते हैं , रोते यहीं आकर हैं महर्षि शांडिल्य की कुटिया में ।

“ग्रहण में दान धर्म करने से विपदा नही आती”। महर्षि की बातों पर हंसते हैं बाबा , इससे बड़ी विपदा और क्या होगी कि अनाथ सा करके चला गया वो ।

ग्रहण में जो दान पुण्य होता है उसका फल ज़्यादा मिलता है , सम्पदा में वृद्धि होती है ।

गुरुदेव ! अब जो सम्पदा है वही तो सम्भाली जा नही रही , सम्पदा को बढ़ाकर हम गोप लोग क्या करेंगे , गोपाल तो अब आने से रहा । गुरुदेव ! दान पुण्य तो मैं इसलिए करता हूँ कि मेरा लाला जहां भी रहे प्रसन्न रहे , उसे कोई कष्ट न हो ……नन्द बाबा अपने लाला को याद करके विकल हो रहे थे ……फिर कुछ देर बाद बोले –

“मिल तो लेता , यहाँ न आए कोई बात नही ….कहीं हमें बुला ही लेता , एक बार उसे देखनें की कामना थी , पर जो विधाता चाहता है वही तो होता है हमारे कहने से क्या होगा ।

चरणों में वंदन करके महर्षि शांडिल्य के …..बाबा नन्द उठ कर जानें लगे ही थे कि……

ब्रजराज ! सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान का विशेष महत्व है किन्तु इस पूर्ण खग्रास सूर्यग्रहण में जो स्नान करेगा ………क्या हमारा कन्हैया वहाँ मिलेगा ? महर्षि शांडिल्य की बात पूरी हो उससे पहले ही नन्द बाबा ने प्रश्न कर दिया था ।

महर्षि शांडिल्य त्रिकाल दर्शी हैं वो सब जानते हैं किन्तु बोले नही , बस मुस्कुराए ।


जीजी ! आपको आना है कुरुक्षेत्र , आपको ही नही समस्त ब्रजवासीयों को भी लाओ , हम सब आ रहे हैं , मुझ से कन्हैया ने ही कहा कि वृन्दावन में सन्देश भिजवा कर कहो कि मेरे समस्त ब्रज परिकर कुरुक्षेत्र आएँ । जीजी ! फिर कन्हैया को पता नही क्या लगा , उसके नेत्र सजल हो उठे थे , मुझ से कहने लगा , रोहिणी माँ ! कहना ये आदेश नही है विनती है , मैं जगत को अपने आदेश से चला सकता हूँ बस वृन्दावन को नही , वृन्दावन तो मुझे आज्ञा देगा ।

जीजी ! कन्हैया ने फिर कहा – मेरी मैया यशोदा को कहना उसके लाला ने उससे विनती की है , बाबा के चरणों में वंदन करके विनती हैं कि सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पधारें ।

महर्षि शांडिल्य के यहाँ से जब ब्रजराज अपने भवन लौटे तो ……..

पत्र आया हुआ है रोहिणी माता का …..बहुत दिनों बाद आया , ये सोचते हुए वहीं बैठ गए थे नन्दबाबा और पत्र को सुनने लगे थे , सुना रहा था वही पण्डित मनसुख ।

पत्र सुनने के लिए आज नंदगाँव ही नही बरसाने की गोपियाँ भी आगयीं थीं ….गोप लोग भी तन्मयता से सुन रहे थे पत्र को ……पत्र तो पहले भी आते रहे पर इस पत्र में “कन्हैया मिलेंगे” ऐसी आस इन बृजवासीयों की प्रवल हो उठी थी ।

मनसुख पत्र को आगे पढ़ने लगा था ………….

जीजी ! आचार्य गर्ग कह रहे थे कि ऐसे ग्रहण से महाविनाश की सम्भावना बढ़ जाती है ।

जीजी ! पाण्डवों का वनवास भी अब पूरा हो रहा है , कहीं कौरव और पाण्डवों में भीषण युद्ध छिड़ न जाए , आचार्य इसी की और इंगित कर रहे थे , वो तो कह रहे थे ऐसा भीषण युद्ध होगा जो श्रीराम रावण के बाद हुआ ही नही था …..जीजी ! डर लगता है , इसलिए कह रही हूँ कि आप सब कुरुक्षेत्र में आजाओ , साथ में स्नान कर लेंगे , मिल जुल लेंगे , मेरा मन बहुत कर रहा है आप को देखने का , और कन्हैया भी कह रहा है , जीजी ! आजाओ ना !

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

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