श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! छप्पन भोग की झाँकी – “गोवर्धन पूजन” !!
भाग 2
कन्हैया की बात मानकर सब ग्वाले बैलगाड़ियों में चले गए …..उनमें रखे हुये थे भोग के थाल ……..उन्हीं थालों में विभिन्न प्रकार के भोग थे ……बस पँक्तिबद्ध खड़े हो गए सब…….एक ग्वाला दूसरे को थाल पकड़वाता है……..दूसरा तीसरे को …….ऐसे करके थाल को सजाया गया……..एक भोग छप्पन प्रकार के थे……..गिनती करनें के लिये जो ग्वाला बैठा था वो भी भूल रहा था, इतनें पदार्थ हो गए ।
सब आनन्दित हैं सब रस में भींगें हुए हैं ……गोपियाँ तो इतनी आनन्दित हैं कि वो बात बात में नाच उठती हैं………क्यों की इन्द्र यज्ञ में तो इनको छूनें की भी मनाई थी ….पर इस गोवर्धन पूजन में इनका अपना अधिकार था……इनके प्रियतम नें ही ये अर्चना रखी थी ।
रसगुल्ला, चन्द्रकला, रबड़ी, पेड़ा, मोहन थाल, लड्डू, मोहन भोग, जलेबी, राजभोग, रसभरी, इमरती, माखन, मलाई, मलाई के लड्डू, मालपुआ, खीर, खीरमोहन, दूध भात, बालूशाही ।
पूड़ी , कचौड़ी, बेढई, चूरमा वाटी, घेवर, चीला, हलुआ, खीर भोग, साग के प्रकार इतनें हैं कि वर्णन कठिन है…….दाल, मुंग की दाल, अरहर की दाल, दही बड़े कांजी बड़े , भात , मीठे भात , नमकीन भात , सादे भात ………और कढ़ी ……..बाजरे की रोटी …….बाजरे की खिचड़ी ……मीठी खिचड़ी नमकीन खिचड़ी ……..दही , छाँछ ।
तात ! मैं कहाँ तक वर्णन करूँ ? अनेक प्रकार के भोग हैं और अनेक प्रकार के व्यंजन………..सबको सजा कर रखा गया गोवर्धन महाराज के सामनें……दिव्य झाँकी है इस छप्पन भोग की ।
अब ? महर्षि नें श्रीकृष्ण से ही पूछा ।
अब तुलसी दल भोग में छोड़ा जाए …..कन्हैया नें कहा ।
नही , ऐसे नही होगा…….तुमनें कहा था हे कृष्ण ! कि तुम्हारे गोवर्धन नाथ प्रकट होकर भोग स्वीकार करेंगे ! ऐसे भोग तो हम देवराज इन्द्र की लगाते रहते थे …..प्रत्यक्ष होकर भोग स्वीकार करें तब है ।
ग्वालों नें पीछे से आवाज उठाई ……
कन्हैया मुस्कुराये……और देखते ही देखते ……गोवर्धन पर्वत में एक दिव्य प्रकाश छा गया……..ग्वाल बाल कुछ देख नही पा रहे थे ।
तभी – “मैं तुम लोगों की पूजा अर्चना से अतिप्रसन्न हूँ ……….अब लाओ, मुझे भोग लगाओ ………मैं तुम्हारे भोग को स्वीकार करके तुम्हे अनुग्रहित करता हूँ” ………
दिव्य चतुर्भुज रूप धारण करके श्याम वर्ण के स्वयं श्याम सुन्दर ही प्रकट हो गए थे ……अन्तर इतना ही था कि नन्दनन्दन की दो भुजाएँ थीं गोवर्धन नाथ के चार भुजा ।
दर्शन करके बृजवासी आनन्दित हो उठे ………और अब तो वाणी भी सुन ली ………….”मैं तुम लोगों की अर्चना से अतिप्रसन्न हूँ “
बस – इतना सुनते ही सब बृजवासी उछल पड़े ……बोल – गोवर्धन नाथ की …..जय जय जय जय …….सब झूम उठे ।
लाओ ! भोग …..और लाओ ! गोवर्धन महाराज भोग स्वीकार कर रहे हैं ….भोग आरोग रहे हैं …..सब देखते हैं और रस में मग्न होते हैं ।
श्रीराधा जी इतनी देर तक शान्त थीं……..कुछ कह नही रही थीं ……कुछ कर नही रही थीं ……बस अपनी सखियों के साथ बैठीं थीं ।
पर अब………एकाएक हँसनें लगीं …….ललिता सखी नें देखा ….तो पूछ लिया ……प्यारी जू ! क्यों हँस रही हैं आप ?
पहचानों ये गोवर्धन कौन हैं ? हँसते हुये श्रीराधा जी नें ललिता सखी को कहा , कौन हैं ? ललिता सखी नें पूछा ।
हमारे श्याम सुन्दर ही तो हैं …………..ये कहते हुए श्रीराधा रानी हँसती रहीं ………”.स्वयं ही पुजारी स्वयं ही पूज्य” ……स्वयं पूजे और स्वयं पूजावे…….सखी ललिते ! श्याम सुन्दर अद्भुत लीलाधारी हैं ।
*क्रमशः …
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