श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “राधा प्रेममयो हरिः” – अद्भुत प्रेम लीला !!
भाग 2
ललिता ! हुआ क्या ?
ललिता क्या बोले …………..वो इतना ही बोली ……..मुझे ज्यादा पता नही ….पर मैने देखा कि कुञ्ज में श्याम सुन्दर पड़े थे ….और सुध बुध खो बैठे थे ……..ऐसे ही ! ललिता भी घबडा रही थी बताते हुये ।
हाय ! ये क्या हो गया ! मुझे लगता है ……नजर लग गयी है किसी की ।
मैया यशोदा के नेत्रों से अब गंगा यमुना बहनें लगे थे ।
अलख निरन्जन !
बड़ी मीठी सी आवाज , बाहर से आयी …………
ललिता सखी नें मुड़कर देखा तो …………
कौन है द्वार पे ललिते ? मैया नें सुबुकते हुए पूछा ।
मैया ! कोई योगी हैं शायद ! ललिता चौंक गयी थी ।
योगी नही ….योगिनी ! मैं सिद्ध योगिनी हूँ ………..अलख निरन्जन !
आहा ! कितनी मीठी आवाज …….गौर वर्ण ……सुन्दरता की राशि ये योगिनी ? यशोदा जी उठीं श्याम सुन्दर के पास से ……..
आप तो बड़ी सुन्दर योगिनी हो ? यशोदा जी को कौतुक लगा ….इतनी सुन्दरी , छोटी आयु में ही योगिन बन गयी ?
अलख निरन्जन ! ये सुन्दर सुन्दर क्यों कहती हो……देह को देखती हो ……..आत्मा को देखो ! सुन्दर तो वो है…….परमसुन्दर ! ये देह क्या सुन्दर है । वही मीठी आवाज …..मिश्री सी घुल रही थी कानों में ।
तो आप क्या क्या जानती हो योगिनी जी ?
मैया बृजरानी नें रूचि लेकर फिर पूछा ।
मैं परम् सिद्धा हूँ ……..मैं आकाश में उड़ सकती हूँ ……पानी में चल सकती हूँ ……सातों समुद्र को बांध सकती हूँ ……..वो योगिनी बोल तो रही थीं तेजी से ……..पर , आवाज में अद्भुत मिठास थी ।
जय हो जय हो …..मैया यशोदा तो साष्टांग लेट गयीं योगिनी के आगे ।
हे योगिनी जी ! मेरा एक काम कर दो…….आपको जो चाहिये मैं दूँगी ………मैया बिलख उठी थी ।
अलख निरन्जन ! मैया ! देंने की बात मत कर …….हम कुछ नही लेतीं हैं…….हाँ, क्या कह रही थीं तुम ? योगिनी नें पूछा ।
मेरा लाला को किसी की नजर लग गयी है …………..
इतना ही बोल पाईँ थीं यशोदा मैया कि …..योगिनी बीच में ही हँस पडीं …..नजर ? अरे ! नजर तो मैं किसी की भी चुटकी में उतार देती हूँ …..
कहाँ है तुम्हारा लाला ! योगिनी नें पूछा ।
आइये ! आइये योगिनी जी ! मैया जल्दी कन्हैया के पास लेकर गयी योगिनी जी को ।
बैठ गयीं कन्हैया के पास योगिनी …..बड़े ध्यान से देखा …….हाथों को देखा …..आँखों की पुतरी को खोल कर देखा …..फिर कुछ बुदबुदानें लगीं ।
मैया हाथ जोड़कर खड़ी है …….हे भगवान ! मेरे लाला को ठीक कर दे ।
ओहो ! बहुत बड़ी नजर लगी है …………पत्थर में लग जाती तो पत्थर भी चूर चूर हो जाता ……….योगिनी नें कहा ।
कोई उपाय करो …………आप को ही भगवान नें हमारे यहाँ भेजा है …….हे योगिनी जी ! कुछ करो ……….आप जो कहोगी मैं आपको दूँगी ….अन्न धन ………..मैया यशोदा बोल रही थीं ……..पर – अलख निरन्जन ! हम लोग कुछ लेते नही है …….पहले भी कह चुकी हूँ ।
क्षमा ! क्षमा ! हे योगिनी जी ! आप जो कहें ………..पर मेरे लाला को ठीक कर दो …..मैया गिड़गिड़ानें लगी थी ।
कुछ देर के लिए मौन हो गयीं योगिनी, फिर बोलीं ….एकान्त है यहाँ कहीं ?
हाँ हाँ, है ……….आप आइये !
पर वहाँ कोई नही आएगा ……….मैं रहूँगी …और ये …….मैं एकान्त में मन्त्र से इसे झाडूंगी ………नजर बड़ा है ….इसलिये समय लगेगा ।
ठीक है ….ठीक है ……..आप को जो करना है करो ….पर मेरा लाला ठीक हो जाए । एकान्त में ले गयीं मैया यशोदा अपनें लाला को ….योगिनी भी गयीं ……….।
अब आप जाओ ! जैसे ही ये ठीक हो जाएंगे मैं बुला लुंगी ।
जो आपकी आज्ञा ! यशोदा जी बाहर चली गयीं ……ये सब देखकर ललिता सखी मुस्कुरा रही है ।
प्यारे ! ओ प्यारे ! उठो ना ! मेरे प्रियतम ! उठो ना !
श्याम सुन्दर को बारबार कह रही हैं श्री राधा ।
पर श्याम सुन्दर उठ नही रहे …………..
अब श्रीजी उनके वक्ष से होते हुये ……….अधरों में पहुँची …….और उनके अधर और इनके अधर दोनों मिले…….और जैसे ही मिले ।
राधे !
श्याम सुन्दर उठ कर बैठ गए …………..श्रीजी नें प्रगाढ़ आलिंगन किया अपनें प्राण को ………..दोनों मिल गए थे ।
आप ये योगिनी ? श्याम सुन्दर हँसे ।
क्या करती मैं प्यारे ! आपकी दशा ऐसी हो गयी थी ।
फिर चूम लिया था श्रीजी नें अपनें प्रियतम को ………..तुम्हारे रोम रोम से मेरा नाम निकल रहा था ……मैं तो डर गयी !
क्यों ? श्याम सुन्दर नें पूछा ।
मैया बाहर हैं………मेरा नाम , शायद उन्होंने ध्यान नही दिया ।
इस बार श्याम सुन्दर नें अपनी प्रिया को चूमा………
अब चलो प्रियतम ! बाहर आपकी मैया !
द्वार खुला …..मैया यशोदा का ध्यान इधर ही था ………
कन्हैया खिलखिलाते हुये बाहर आये तो मैया यशोदा नें गले से लगा लिया अपनें पुत्र को…….और……हे योगिनी जी ! आपका ये उपकार मैं कभी नही भूलूंगी ! आप तो सिद्धों की भी सिद्ध हो …….मैया यशोदा प्रदक्षिणा करनें लगी …………
हम अब जा रही हैं…….अलख निरन्जन ! योगिनी बोलीं ।
चल ! ए ललिता ! चल ! योगिनी के मुख से ये निकला ।
ललिता ?
आप इसे जानती हो योगिनी जी ? मैया नें पूछा ।
हम क्या नही जानतीं……आप को बताया तो था ।
योगिनी नें इतना कहा ….और शीघ्र वहाँ से चल दीं….ललिता भी विदा लेकर आगयी मैया यशोदा से……बैल गाडी में बैठकर श्रीराधारानी ने योगिनी का भेष उतारा….और दोनों खूब हँसती हुयीं बरसानें में आईँ थीं ।
तात ! ये सनातन प्रेमी हैं …..अद्भुत जोरी है ये …….इस जगत का मंगल करनें के लिये ……प्रेम का दर्शन करानें के लिये ……ये अवतरित हुए हैं ।
उद्धव नें हाथ जोड़कर वन्दन किया श्रीराधारानी को ……….
तात ! ये मेरी गुरु भी हैं ……उद्धव नें इतना जब कहा …..तब विदुर जी चौंके ।
आगे आपको सब बताऊंगा तात , उद्धव “श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा” नाम का उच्चारण करनें लगे थे ।
*शेष चरित्र कल –
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