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November 22, 2024 5:44 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! वृन्दावन में अश्रुपात !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! वृन्दावन में अश्रुपात !!-भाग 2  : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! वृन्दावन में अश्रुपात !!

भाग 2

ललिता ! क्या हुआ ? नन्दगाँव की एक गोपी नें ललिता को पकड़ कर पूछ लिया ………ललिता रुकी ……….उसकी साँस चढ़ रही थी …….इसकी भी दशा विलक्षण थी ……निरन्तर अश्रुपात ।

“श्यामसुन्दर मथुरा जा रहे हैं अभी” !

इतना कहकर ललिता श्रीजी के पीछे भागी …………पर भागते हुये गोपियों से पूछ रही थी …..तुम को पता नही है ? पता नही था ?

गोपियों के सिर की मटकी गिर गयी…….फूट गयी ….जल फैल गया ………क्या ! स्तब्ध हो गयीं थीं सब गोपियाँ ।

श्याम सुन्दर मथुरा जा रहे हैं ? पर हमें नही बताया ।

पर ये हो कैसे सकता है । दो दिन पहले ही तो वो हमारे साथ नृत्य किये थे……और आज एकाएक ?

अब जो भी हो …..चलो पहले नन्दालय ……सब छोड़ छाड़ के ये सब गोपियाँ भी दौड़ीं………अब तो जिधर देखो उधर ही अश्रुपात ।

ये क्या हो गया विधाता !


तेज तेज साँसें रही हैं श्रीराधारानी की ……अत्यधिक विषाद के कारण उनका सुकोमल मुखकमल मुरझा गया है……..देह आज पीला पड़ गया है …..देह में पसीनें आरहे हैं……..चेत अचेत दोनों ही अवस्था में विराजमान हैं श्रीराधारानी……अश्रुपात तो हो ही रहे हैं …….इन्हें भान कहाँ की मुखमण्डल काजल के बहनें से काला हो गया है ।

केशपाश ढीले पड़नें के कारण बिखर गये हैं………कुछ स्मरण नही है श्रीराधारानी को इस समय …….कुछ भी नही …..बस सम्पूर्ण अन्तःकरण में श्यामसुन्दर ही छा गए हैं……”वे मथुरा जा रहे हैं”

इन्हीं वाक्य नें अंदर तक झकझोर दिया है ।

दौड़ती हुयी पहुँची हैं नन्दालय में पर भीतर प्रवेश न करके…….बाहर रथ के पास जाकर खड़ी हो जाती हैं …….रथ को देखती हैं …….अक्रूर स्नानादि से निवृत्त होकर रथ को सजा रहे हैं ।

श्रीराधारानी के पास अब सब सखियाँ और नन्दगाँव की गोपियाँ पहुँच गयी हैं …………..

कौन हो तुम ? आक्रामक ही हैं श्रीराधारानी इस समय ।

मैं ? अक्रूर इधर उधर देखते हैं …….मैं ?

हाँ , श्रीराधारानी कहती हैं और फिर पूछती हैं …..कौन हो तुम ?

मैं अक्रूर …………अक्रूर उत्तर देते हैं ।

कहाँ से आये हो ? अक्रूर उत्तर देते हैं – मथुरा ।

क्यों आये हो ? श्रीकृष्ण को ले जानें ।

हृदय में बरछी चल गयी…………..

क्या मैया बृजरानी से पूछा ? ……….श्रीराधारानी अक्रूर से पूछती हैं ।

हाँ, अक्रूर संक्षिप्त सा उत्तर देते हैं ।

क्या बाबा बृजराज से भी आज्ञा ली ?

हाँ उन्होंने भी आज्ञा दे दी …..अक्रूर फिर रथ को साफ़ करनें लगे ।

श्रीराधारानी के अश्रुप्रवाह चल पड़े थे……….क्या हमसे आज्ञा ली ?

सामनें खड़े होकर श्रीराधारानी बोलीं ……तुम्हे क्या लगता है श्याम सुन्दर मात्र यशोदा मैया और बाबा नन्द के ही हैं……नही अक्रूर ! नही !

श्यामसुन्दर इस वृन्दावन के हर जीव के हैं …………..हमारे हैं …….इस गोपी के भी हैं ….इस मोर के भी हैं ……..इन वृक्षों के भी हैं ……लता पता सबके हैं श्याम सुन्दर …….इनसे पूछा ? इनसे आज्ञा ली ?

श्रीराधारानी आँसुओं को बहाते हुये हँसती हैं – अक्रूर ! किसनें रखा तुम्हारा ये नाम ? अक्रूर ? फिर हँसती हैं ……..तुम्हारे जैसा क्रूर इस दुनिया में कोई नही होगा ………..और नाम रखा है अक्रूर !

हमारे प्राणों को लेकर जा रहे हो….और कहते हो नाम है मेरा – अक्रूर ।

ओह ! सब गोपियाँ चीत्कार मार कर गिरनें लगीं धरती में ………..

श्रीराधारानी देख रही हैं ……..उनको कुछ समझ में नही आरहा क्या करें …….मेरे प्राणप्रियतम जा रहे हैं ……..मैं क्या करूँ ?

*शेष चरित्र कल –

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