श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! यशोदा का विरहोन्माद !!
भाग 2
बृजराज नें जब यशोदा को देखा तो सब समझ गए………फिर कुछ नही बोले……यशोदा फिर गयीं अपनें लाला के पास …….
सिरहानें बैठ गयीं ………लाला को निहारती रहीं ।
जीजी ! जीजी ! रोहिणी आगयीं । जीजी ! बृजराज कह रहे हैं कि अक्रूर नें कहा है ……..कन्हैया को उठा दो ……….बिलम्ब हो जाएगा मथुरा पहुँचनें में ।
अक्रूर अक्रूर ! क्यों उठाऊँ मैं अपनें लाला को …….इसलिये कि तू शीघ्र जा यहाँ से…..जल्दी जा मथुरा ! ……क्यों ? चीखीं बृजरानी ।
मेरा लाला जब जगेगा तभी जाएगा मथुरा……..ये कहते हुये रोहिणी के गले लगके हिलकियों से रो पडीं ……….
रोहिणी ! मैं कैसे रहूँगी ? मैं भी जाऊँगी मथुरा ! अपनें लाला के साथ जाऊँगी………बोल ना रोहिणी ! नही जा सकती क्या ?
मै सम्भाल करूंगी अपनें लाला की ………….इसे कब क्या चाहिये मुझे पता है …….ये किससे कहेगा ? अपनें बाबा से ये डरता है । ……….यशोदा रोहिणी से बातें कर रही थीं ………कि तभी कन्हैया जग गए ।
मैया ! कन्हैया नें पुकारा ।
लाला ! मैया तुरन्त गयीं और अपनी छाती से चिपका लिया ।
स्नान कर ले मेरे लाल ! फिर मुख चूमते हुये बोलीं ।
रोहिणी ! तू बलभद्र को तैयार कर दे ।
…….. जीजी ! वो तैयार हो गया है ।
क्या ! दाऊ भैया तैयार हो गया ? कन्हैया नें उठते हुये कहा ।
स्नान कराया मैया नें………सजाया …..वो घुँघराले केश सम्भाल दिए ……..पीताम्बरी पहनाई ……..सुन्दर सा मोर मुकुट धारण कराया ……….फिर अपलक देखनें लगीं …………..
तुझे मेरी याद आएगी ? बोल ना ? मैया लाला से पूछ रही हैं ।
तुझे मैं भूल सकता हूँ ? तू मेरी सबकुछ है मैया !
हिलकियों से रो पडीं अपनें लाल के मुख से ये सुनते ही मैया ।
मत रो मैया ! मैं मथुरा जा नही पाउँगा………अपनी मैया के गले से लग गये थे कन्हैया ।
माखन खा ! अपनी गोद में बिठाकर मैया माखन खिला रही हैं ।
पर कन्हैया माखन खा नही रहे ।
मैं नही रो रही अब………अब तो खा ले माखन !
कन्हैया माखन खाते हैं………..
यशोदा ! भेजो कन्हैया को अब ! ग्वाल सखा भी सब आगये हैं ।
बृजराज नें फिर आवाज दी ।
उफ़ ! ये वात्सल्य की मारी यशोमती मैया ….इसके वात्सल्य का वर्णन भला कौन कर सकता है ।
*शेष चरित्र कल –
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