श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “बेदर्दी तोहे दरद न आवे” – श्रीकृष्ण मथुरा गमन !!
भाग 1
भवन से बाहर आये नन्दनन्दन पर बाहर का दृश्य ! ओह ! अति करुण दृश्य था ……….कोई गोपी रोते रोते ही गिर पड़ी थी ……..कोई गोपी रथ से टिक कर सुबुक रही थी …….कोई गोपी अक्रूर से बहस कर रही थी ….पर अक्रूर उपेक्षा कर रहे थे उस गोपी की ……….कोई गोपी रथ के नीचे ही लेट गयी थी ……..वो अक्रूर से लड़ते हुये कह रही थी रथ को मेरे ऊपर से होकर निकालो ……..मुझे मार दो तुम मथुरा वालों !…..वैसे भी श्याम सुन्दर नही हमारे प्राणों को ही तो तुम लोग लेकर जा रहे हो ………..कोई गोपी अपनी चूनरी से रथ को बांध कर उसकी छोर सामनें खड़े तमाल वृक्ष में बाँध रही थी ……..ताकि रथ चल ही न पाये ।
उद्धव विदुर जी को ये अत्यन्त विरह का प्रसंग सुना रहे हैं ।
प्रेमी का विछोह अत्यन्त दुखद होता है तात ! मृत्यु से भी कष्टतर ।
बुद्धि तो काम करना छोड़ ही देती है ……..अन्तःकरण में मात्र प्रियतम का राज्य हो जाता है …….फिर तर्क कहाँ ! ।
आगये ! आगये ! सब गोपियाँ भवन की ओर देखनें लगीं ………
श्याम सुन्दर अपनी मैया यशोदा के साथ भवन से निकल रहे थे ।
पर श्रीराधारानी श्यामसुन्दर को देखकर दूर चली गयीं……….और दूर से ही अपनें प्यारे को निहारनें लगी थीं …………
गोपियों नें घेर लिया श्याम सुन्दर को……..हम नही जानें देंगी तुम्हे ! हे श्याम ! मत जाओ ना ! हम कैसे रहेंगीं तुम्हारे बिना !
श्याम सुन्दर कुछ नही कह रहे हैं …….बस देख रहे हैं अपनी इन बाबरी गोपियों को……..उफ़ ! इनकी ये दशा !
जिद्दी हो तुम ! बहुत जिद्दी……….तुम जाओगे हमें पता है ……….तो जाओ ……पर हमें कुचल दो अपनें इस रथ के पहिये से …………क्यों की हम तुम्हारे बिना जी नही पायेंगीं……..मार दो हमें ………वध कर दो हमारा फिर खुश होकर जाओ……..
इतना कहते कहते गोपियाँ रथ के पहिये के आगे सब गिर गयीं …….रथ के आगे सब लेट गयीं……..और अक्रूर से बोलीं ……दया मत करना ……कुचल ही देना …..प्रियतम के रथ पहिये से कुचल कर मर जायेंगी …….तो हमें यही मिलेगें अगले जनम में ।
आगे बढ़े नन्दनन्दन……..गोपियों के पास में गए……उन्हें उठाया …….और सबको अपनें हृदय से लगानें लगे थे ।
श्यामसुन्दर के हृदय से लगते ही सब और रोनें लगीं…….इनकी लज्जा पूरी तरह से समाप्त हो चुकी थी……..इन्हें अब न अपनें पतियों का कोई भय लग रहा था ……न परिवार का और न समाज का…….इन्हें किसी का कोई भय नही था……..बस श्याम सुन्दर के हृदय से लगकर चीत्कार करके रो उठीं थीं …….उफ़ ।
“मुझे जाना पड़ेगा” – शान्त भाव से श्यामसुन्दर बोले थे …..किसी गोपी का हाथ पकड़े हैं किसी के हृदय से लग रहे हैं……..किसी को सम्भाल रहे हैं ……..”मुझे जाना पड़ेगा मथुरा”…..।
गोपियाँ देखती रहीं अपनें प्राणप्रिय को……..मुझे कार्य करना है मथुरा में……..कंस से सब दुःखी हैं मथुरावासी ……उनके दुःख को दूर करना है …….वाह ! क्या सामाजिक बातें कर रहे थे आज ये ।
हँसी गोपियाँ……..नेत्रों से अश्रु बह रहे हैं…….हिलकियाँ बंध गयीं हैं ……..उस पर हँसी और ।
मथुरा के दुःख की बड़ी परवाह है आपको नन्दनन्दन !
और हमारा दुःख ?
कंस के अत्याचार को समाप्त कर मथुरा वासियों का कष्ट दूर करनें जा रहे हो ……जाओ ! पर हमारा क्या होगा ?
सिर झुकाकर खड़े रहे श्याम सुन्दर………क्या उत्तर देते इन अपनें प्रेमियों को ………….
अरी सखी ! पूछ इनसे ये प्रसन्न हैं ? श्रीराधारानी दूर से बोल उठीं ।
पूछ ! क्या ये मथुरा जाकर प्रसन्न रहेंगे ?
श्याम सुन्दर नें देखा दूर तमाल वृक्ष के पास खड़ी हैं श्रीराधा ……..नेत्रों में अश्रु भर आये श्याम सुन्दर के ……..वो अपलक देखते ही रहे अपनी प्रिया को ।
कुछ नही बोले श्याम सुन्दर तो श्रीराधा पास में आईँ ……..गोपियों को रथ से हटाया……..नीचे जो लेटी हुयी थीं रथ के पहिये के पास उन्हें भी उठाया ………फिर बोलीं ……..हे प्राण ! आप जाओ …….आपको सुख मिलता है मथुरा जानें में तो जाओ ………हम वृन्दावन वाले हैं ………हमारा प्रेम इतना कच्चा नही है कि अपनें सुख के लिये तुम्हे वृन्दावन रोकें …..जाओ ! ख़ुशी ख़ुशी जाओ ………हम रोयेंगे भी नही ……ए कोई गोपी नही रोयेगी ……..प्रियतम को जानें दो ………हमें स्वार्थी नही होना है ………..हे गोपियों ! ये जीवन पर्यन्त भी न आना चाहें वृन्दावन तो न आएं ………..पर ये सुखी रहें ।
जाओ प्यारे ! जाओ ! श्रीराधारानी रथ में बिठाती हैं ।
*क्रमशः …
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