श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मथुरा की ओर श्रीकृष्ण !!
भाग 1
अक्रूर, भगवान समझ कर आये थे मथुरा से श्रीकृष्ण को लेनें ।
अगर साधारण मानवी समझा होता तो ये अक्रूर कभी नही आते ।
“कंस वध कर देगा श्रीकृष्ण का”……..ये बात स्पष्ट कही है कंस नें …अक्रूर सोच रहे हैं
रथ दौड़ रहा है मथुरा की ओर…….वृन्दावन छूट रहा है पीछे ……
अभी भी पीछे मुड़े हुये हैं श्रीकृष्ण …….अपनें वृन्दावन को छूटते हुये देख रहे हैं ………..पक्षियों को देख रहे हैं ………..वृक्षों को देख रहे हैं …..गोपियाँ रोती हुयी होंगीं ……. मेरी मैया मूर्छित हो गयी होगी ।
वो कुछ खायेगी या ? गोपियां कहीं यमुना में कूद गयीं तो ।
बरस रहे हैं श्रीकृष्ण के नेत्रों से अश्रु धार ………पीताम्बरी से पोंछ रहे हैं बारबार ।
अक्रूर मुड़ मुड़ कर देखते हैं पीछे……..और ऐसे देखते हैं तो श्रीकृष्ण को भान होता है मेरे अश्रुओं को काका देख रहे हैं ………तब पीताम्बरी से पोंछते हैं ।
क्या ये भगवान नारायण हैं ?
अक्रूर के मन में सन्देह उत्पन्न हो गया था ।
अगर हैं …..तो रोते क्यों हैं ? भगवान भी भला रोता है क्या ? और जो रोये वो भगवान ही क्या ? पर अक्रूर इतना नही समझ पारहे कि ……प्रेम तत्व है ही इतना महान कि ……भगवान को भी रुला दे ।
अपनी माँ के लिए रोते हैं ये तो…..अपनी प्रेयसि के लिये रोते हैं……ये कैसे भगवान हैं ! अक्रूर के मन में सन्देह का बीज पड़ चुका है ।
अक्रूर ! कहीं तुम बृजराज के सामान्य सुत को ले जाकर कंस के सामनें खड़ा तो नही कर रहे !…….और इन बालकों को अगर कंस नें मार दिया तो बालहत्या का पाप मेरे सिर पड़ेगा ………ओह ! अक्रूर अपनें माथे में आये पसीनें को पोंछते हैं ।
काका ! आपको गर्मी लग रही है ? …………पीछे से श्रीकृष्ण नें अक्रूर से पूछ लिया था ।
“नही”………अक्रूर रथ चलाते रहे ।
काका ! सुनो ना ! काका ! मुझे भूख लग रही है ।
अक्रूर से जब श्रीकृष्ण नें ये बात कही . ….तब अक्रूर नें रथ की लगाम खींच दी ………रथ वहीं रुक गया ।
क्या तुम्हे भूख लग रही है ? अक्रूर नें फिर स्पष्ट पूछा ।
हाँ ………..श्रीकृष्ण नें सिर “हाँ” में हिलाया ।
अक्रूर को हँसी आयी……इतना माखन खिलाया तो था इसकी माँ नें ……..फिर इतनी जल्दी इसे भूख लग गयी ?
मुझे मेरी मैया भी याद आरही है ! मेरी गोपियां भी ।
श्रीकृष्ण के मुख से ये सब सुनकर……अक्रूर का सिर चकरानें लगा …….ये क्या हुआ ? ये कोई भगवान नारायण नही है ….ये सामान्य मानवी बालक है……अरे ! मथुरा में तो हो सकता है इसे कोई खानें ही न दे ..क्यों की कंस का शत्रु है ये…………ओह ! ये बालक तो मर जायेगा ……..और अक्रूर तेरे ऊपर इसकी हत्या करनें का पाप ! अक्रूर के माथे से फागुन के महिनें में भी पसीनें निकल रहे थे ।
क्रमशः …
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