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November 21, 2024 4:09 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जब मथुरा का राजकीय दर्जी धन्य हुआ !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जब मथुरा का राजकीय दर्जी धन्य हुआ !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! जब मथुरा का राजकीय दर्जी धन्य हुआ !!

भाग 2

बात सही कहता है गुणक दर्जी………इसके सिले वस्त्र अलग ही दीखते हैं……..और जिसनें इससे अपनें वस्त्र सिलवा लिये …….वो धन्य ही समझता था अपनें को……..सबको दीखता था कि ये वस्त्र गुणक नें सिले हैं…….इससे पहननें वाले की प्रतिष्ठा और बढ़ती ।

ये अकेले कहीं चलता नही था ………….इसके साथ कई दर्जी चलते थे…………पर आज !


मथुरा वसियों के लिये आनन्द दायक था आज का दृश्य ………

मध्य राजमार्ग में खड़े हैं भुवन सुन्दर श्रीकृष्ण ………पीला अंगरखा मनसुख नें जो पहना दिया है उसे ही पहन कर खड़े हैं ….दाऊ भी ।

तभी – हाथ में कैचीं लेकर सामनें से आरहा है गुणक दर्जी …….

लोग चौंक गए ……ये क्या ? गुणक आज अकेले ? वो भी हाथों में कैची लेकर ? ये भले ही राजकीय दर्जी हो …..पर राजा कंस के यहाँ भी तो ये आज तक नाप लेनें तक नही गया …..किसी ओर को भेजता था ………पर आज …………

वो दर्जी आया…….हाथों में कैची है उसके ……श्री कृष्ण के सामनें जाकर बैठ गया घुटनों के बल …….वो गदगद् है……..कुछ देर तो वो निहारता रहा श्रीकृष्ण को …….मुग्ध हो गया था …………फिर अपनें को सम्भालते हुये बोला………..ये अंगरखा मैने ही सिला है ………श्रीकृष्ण नें कहा …अच्छा सिला है तुमनें…….नही, पर आपके नाप का नही बैठा…….आप आज्ञा दें तो मैं कैची चलाऊँ ? वैसे आपको आवश्यकता नही है इन वस्त्रों की ………क्यों की आप तो वैसे ही भुवन सुन्दर हैं ……न भी पहनेंगे वस्त्र तो भी आपके अंग की कांति आपको दिव्य बनाये रखेगी……पर हे सुन्दरतम ! मेरी कला धन्य हो जायेगी ।

मथुरावासी एक दूसरे को देखनें लगे थे ……..ये क्या होगया इस दर्जी को …अहंकार की पराकाष्ठा ये गुणक दर्जी………पर इनको देखकर ये अश्रु बहानें लगा था ………..बारबार श्रीकृष्ण के मुख चन्द्र को देखकर आनन्दित हो रहा था ……….आहा !

हाँ हाँ अवश्य , हमारे नाप का कर दो इन वस्त्रों को …….मधुर वाणी गूँजी कानों में दर्जी के ………वो गदगद् हो उठा ……….

तुरन्त कैची ली …..और चला दी ………….जेब से सुई धागा निकाला और सिल दिया ……दाऊ का भी …..सभी सखाओं का भी ।

अद्भुत कला थी इसमें……….कुछ ही समय लगा होगा ……..अब दिव्य छटा लग रही है श्रीकृष्ण की ………..पीला अंगरखा पिली धोती ………अंगरखा में जो सुवर्ण के तारों की पच्चीकारी थी वो दिव्य लग रही थी………दर्जी देह भान भूलकर श्याम सुन्दर को देखता रहा ………..मुग्ध हो गया था ये ………..श्रीकृष्ण नें उसके सिर में अपने कोमल कर रखे ……..दर्जी को प्रेम का वर दिया ………और आगे बढ़ गए ……..वो दर्जी तो परमानन्द प्राप्त कर चुका था ……”आज के बाद अब मैं किसी के वस्त्र नही सीऊँगा……ऐसे दिव्य सुन्दरतम बालक के वस्त्र सिलनें के बाद मैं राजा कंस या उनके लोगों के ! ना, दर्जी कृतार्थ हो गया था आज ।

मथुरा की प्रजा सोचनें लगी थी, अहो ! वृन्दावन के इन बालकों को जादू भी आता है ।

विदुर जी ये प्रसंग सुनकर गदगद् हो गए हैं ।

शेष चरित्र कल –

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