श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! रुक्मणी कृष्ण -” उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 15″ !!
भाग 2
नाथ ! हम लोग घिर चुके हैं …….अब ? रुक्मणी घबड़ाईँ ।
श्रीकृष्ण शान्त ही बने रहे ……………..पर उसी समय पीछे से एक शंख ध्वनि गूँजी ………….बलराम भैया ! श्रीकृष्ण बोल पड़े ।
ये कौन हैं ? रुक्मणी नें पूछा ……………हमारे बड़े भैया हैं …….वो देखो रुक्मणी ! सम्पूर्ण यादवी सेना को लेकर वो पहुँच चुके हैं ।
टूट पड़े थे शिशुपाल की सेना के ऊपर काल बनकर बलराम जी ………देखते ही देखते हजारों सैनिकों को काल का ग्रास बना दिया था ……..शिशुपाल समझ गया कि अब इनसे रुक्मणी को छुड़ा पाना सम्भव नही है ………मगध नरेश ! वो जरासन्ध को पुकारनें लगा ।
बलराम जी तुरन्त बोले …….कृष्ण ! तुम निकल जाओ ……….
श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुये बोले …….ये आपकी बहू …………रुक्मणी वन्दन करनें के लिये झुक ही रही थीं कि …….ये सब बाद में होता रहेगा ……कृष्ण ! तुम निकलो यहाँ से रुक्मणी को लेकर ………..
पर दादा ! आप अकेले ?
मैं अकेला पर्याप्त हूँ ……तुम जाओ ………जाओ !
बलराम जी नें श्रीकृष्ण को दूसरे मार्ग से निकाल दिया …………और स्वयं जरासन्ध की सेना पर हल मूषल का प्रहार करनें लगे ।
श्रीकृष्ण जा रहे हैं …..उनका रथ दौड़ रहा है वायू वेग से ……..तभी –
चोर ! ए चोर ! रुक ! रुक जा ! श्रीकृष्ण नें रुक्मणी से कहा …..ये हमें चोर चोर कौन कह रहा है ……….रुक्मणी नें पीछे मुड़कर देखा तो ……………नाथ ! रुक्मी भैया हैं ! ओह ! श्रीकृष्ण मुस्कुराये ……
फिर स्वयं भी रथ से चिल्लाकर बोले ……………एक बार बोल ना ! जीजा जी ! देख कितनी जल्दी रुकता हूँ !
ये कहते हुये श्रीकृष्ण नें रुक्मणी की ओर देखा ……….
चरण पकड़ लिये रुक्मणी नें …..भगवन् ! मारना नही मेरे भैया हैं !
रथ रुका श्रीकृष्ण रथ से नीचे उतरे …………..ये कहते हुये उतरे कि अपनें साले को कोई मारता है ।
रुक्मी को क्षण में ही पकड़ लिया …….श्रीकृष्ण हंसे ……तलवार ली …..
रुक्मणी हाथ जोड़ रही हैं ……आपसे मैने कहा था मारना नही ।
हंसते हुये श्रीकृष्ण नें रुक्मी के केश काट दिए ……मूँछ काट दी …..
और अपनी पीताम्बरी से बाँध, रथ के पहिये में बाँध दिया ।
कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण !
तुम सुरक्षित तो हो ? बलराम जी जरासन्ध की सेना और शिशुपाल की सेना को पराजित करके लौट रहे थे ।
हाँ दादा ! मैं सुरक्षित हूँ ………..श्रीकृष्ण बोले ।
पर ये क्या है ? रथ के चक्र को ध्यान से देखा ……….ये कौन है तेरे रथ के पहिये में ?
कृष्ण खिलखिलाते हुये बोले ….कोई नही साला है…..बाँध दिया दादा !
गलत बात ! छोडो उसे …….पास में आगये बलराम जी ……..रथ से उतर कर रुक्मी को छुड़वाया ………..फिर बोले …….तेरा बचपना नही गया …….अरे ! अब तू कन्हैया नही है ……द्वारिकाधीश है …….गम्भीर तो बन कुछ तो गम्भीरता ला ! तेरी मैया यशोदा नें तेरी आदत बिगाड़ दी है ………………..बलराम जी बोल रहे थे ……किन्तु श्रीकृष्ण ……..मेरी मैया यशोदा ! क्या उसको ये सूचना मिली होगी कि उसकी बहु आगयी है …………..सजल नयन हो गए थे श्रीकृष्ण के ।
हाँ, कृष्ण ! माँ रोहिणी अवश्य बताएंगी ……..सूचना अवश्य भिजवायेंगी ………..कि अब कृष्ण अकेला नही है …..”रुक्मणी कृष्ण”हो गया है ………..इस तरह चर्चा करते हुये श्रीकृष्ण बलराम द्वारिका में लौट आये थे …….द्वारिका में महामहोत्सव का आयोजन किया गया ……..द्वारिका दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी थी ।
शेष चरित्र कल –


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