श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! हास्य विनोद – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 29” !!
भाग 1
विनोद प्रिय हैं हमारे श्रीकृष्ण …….उनकी ये विनोद प्रियता ही तो माया कहलाती है । तात ! मेरे श्रीकृष्म की मोहनी हंसी ही तो जगत को मोहित कर रही है । माया इसी को कहा गया है …..उद्धव विदुर जी को आनन्दित होते हुये बोले थे ।
आदर्श गृहस्थ में हंसी विनोद भी आवश्यक है ………….सहज ह्रदय में हंसी फूटती ही है ……….विनोद तो हमारे श्रीकृष्ण का स्वभाव ही है ……और यही स्वभाव वो समस्त प्राणियों को भी वे देना चाहते हैं……पर प्राणी लेता कहाँ है ? दुःख है नही बस स्वयं ही दुःख की सृष्टि कर बैठना प्राणी का स्वभाव बन गया है ……इतना कहकर .उद्धव अब आगे श्रीकृष्ण चरित को सुनानें लगे थे ……..अष्ट पटरानीयाँ हो गयीं हैं श्रीकृष्ण की …………….और आज –
भोजन करके आये हैं श्रीकृष्ण ………रुक्मणी के महल में विश्राम करनें के लिये ……विनोद प्रिय श्रीकृष्ण आज रुक्मणी को क्रोधित करना चाहते हैं ………..है ना विचित्रता श्रीकृष्ण की ! …….तात ! रुक्मणी को कभी क्रोध नही आता ………वो सदैव शान्त हैं ………..सत्यभामा आदि तो कभी कभी क्रोध में भरकर कोप भवन में जाकर बैठ भी आती हैं …..किन्तु रुक्मणी तो कभी नही ……..श्रीकृष्ण की प्रत्येक क्रिया इन्हें प्रियतम है …………पर आज श्रीकृष्ण को क्रोधित करना है अपनी रुक्मणी को ……….क्रोध में ये रमा अवतार कैसी लगेंगीं ! …..श्रीकृष्ण श्रृंगार रस के आचार्य है …..उद्धव ये बोलते हुए खुल कर हंसे……..क्रोध में सुन्दरी का मुखमण्डल और भी सुन्दर लगता है ……..श्रीकृष्ण आज यही कुछ सोचकर सहज भाव से रुक्मणी के महल में आये थे …….और आते ही आँखें मूंद कर लेट गए थे ।
रुक्मणी आईँ ……….पीताम्बरी ओढ़ के लेटे हुए हैं श्रीकृष्ण ……..चरण धीरे से दवानें लगीं थीं ।
कुछ ही देर हुए होंगें ………..मुँह से पीताम्बरी हटाई और बोले –
हे राजपुत्री !
राजपुत्री ? रुक्मणी अपनें लिये ये सम्बोधन सुनते ही चौंक गयीं थीं ।
पर श्रीकृष्ण को तो आज विनोद करना था अपनी अर्धांगिनी रुक्मणी से ……
हे राजपुत्री ! बताओ तुमनें मुझ से विवाह क्यों किया ?
रुक्मणी स्तब्ध – चकित हो श्रीकृष्ण के मुखारविन्द में इक टक देखनें लगीं थीं …….ये क्या प्रश्न था ……और मुखमण्डल गम्भीर !
गम्भीर मुखमण्डल को देखकर अपना सिर झुका लिया रुक्मणी नें और अब उन कमलनयन के चरणों में दृष्टि टिका ली थी ।
पर श्रीकृष्ण ऐसे कैसे इस प्रसंग को छोड़ देते ……….
बताओ ! क्यों किया मुझ से विवाह ?
रुक्मणी इसका क्या उत्तर दें !
ओह ! तुमनें सोचा होगा …….हाँ , हाँ तुमनें मुझे लिखा भी था पत्र में …..हे भुवन सुन्दर ! मैं सुन्दर ? श्रीकृष्ण व्यंग में हंसे ………वृन्दावन वाले मुझे श्याम सुन्दर कहते हैं ……..कृष्ण ! काला ……..मैं काला हूँ …………..फिर मुझ से विवाह क्यों ?
श्रीकृष्ण कुछ देर के लिये चुप हो गए ……और रुक्मणी के मुख को देखनें लगे …..कही कुछ क्रोध के चिन्ह ! पर नही ….रुक्मणी चरणों की ओर ही दृष्टि टिकाये हुए हैं ………….
अच्छा ! अच्छा ! तुम सोच रही हो …………मैं वीर हूँ ……….यही तुमनें पत्र में लिखा भी था कि हे परम वीर ! मैं वीर ? अरे ! मैं तो डरपोक हूँ ….समुद्र के बीच में आकर रह रहा हूँ ….जरासन्ध नें मथुरा से हमें भगा दिया तो हम भाग आये ………..कृष्ण तो वीर भी नही है …….फिर मुझ से विवाह क्यों ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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