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November 21, 2024 6:13 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जीजी ! बृज में दाऊ आरहा है – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 37” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जीजी ! बृज में दाऊ आरहा है – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 37” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! जीजी ! बृज में दाऊ आरहा है – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 37” !!

भाग 2

अब आगे सुनाऊँ ? मनसुख को अपनें सखा का पत्र पढ़नें में आनन्द आरहा है ।

हाँ , सुना…नन्दबाबा नें कहा…और फिर मनसुख पत्र सुनानें लगा था ।


जीजी ! प्रद्युम्न का पुत्र “अनिरुद्ध” तो पिता और दादा दोनों से आगे निकल गया ………पता है जीजी ! बाणासुर की पुत्री ऊषा इससे प्रेम कर बैठी ……..जीजी ! कभी आमनें सामनें बैठोगी ना तो विस्तार से बताउंगी ……..असुर की बेटी थी वो …..उसनें अनिरुद्ध को उठवा लिया और अपनें पास बुलाकर प्रेमालाप करनें लगे थे वो दोनों ।

बाणासुर कैसे सहन कर लेता ये सब……..उसनें अनिरुद्ध को पकड़ कर बन्दी बना लिया ….और अपनें कारागार में डाल दिया ।

मनसुख हंसा उसनें पत्र आगे पढ़ लिया था ……………

हंस क्यों रहा है ……पढ़ ! यशोदा मैया नें मनसुख को कहा ।

मनसुख फिर पत्र पढ़नें लगा ……………जीजी ! छ महिनें तक किसी को पता ही नही कि अनिरुद्ध कहाँ है ? एक दिन नारद जी आये और आकर अपनें लाला कन्हैया से पूछनें लगे ……..आपके पुत्र कितनें हैं ?

लाला नें उत्तर दिया …..”पता नही”………यशोदा मैया खूब हंसीं ।

आपके पौत्र कितनें हैं ? जीजी ! मैं उस सभा में ही बैठी थी ……….

लाला नें उत्तर दिया ……जिसे अपनें पुत्र का पता नही वो पौत्र कहाँ गिननें जाए !

आपके प्रद्युम्न पुत्र अनिरुद्ध बाणासुर के कैद में है ……….

इतना सुनते ही सेना लेकर अपना कन्हैया चल पड़ा था बाणासुर के यहाँ ……..जीजी ! सुना है बड़ा भयंकर युद्ध हुआ ………..पर अपना लाला तो लाला ही है ………..वो भला आज तक हारा है ! बाणासुर की पुत्री ऊषा के साथ विवाह करवा कर ही लाया अपनें पोते का ।

कल मैने दाऊ को बहुत डाँटा ……जीजी ! तुम भी डाँटना ……गुस्सा बहुत करता है ……बात बात में गुस्सा करता रहता है ………..मैने उससे कहा है वृन्दावन जा कुछ दिन रह वहाँ ………जीजी की सेवा करियो …….माखन छाँछ दही दूध ये सब खूब खाना तुझे गुस्सा बहुत आरहा है इन दिनों……मैने कहा तो है ……अब जीजी ! तुम ही सम्भालना उसे ………पर मैं बहुत खुश हूँ ……..वो वृन्दावन जा रहा है इस बात से ।

बाकी सब ठीक ही है …….हम तो खारे समुद्र के पड़े हैं ……..आहा ! यमुना जी का वो मीठा जल …..जीजी ! तुम भी मनसुख से कुछ दो शब्द वहाँ के बारे में लिखवा कर दाऊ के हाथों भिजवा देना ना !

तुम्हारी

रोहिणी ।

शेष चरित्र कल –

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