श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! दाऊ जब बृज में क्रोधित हुये – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 40” !!
भाग 1
दादा ! कितनी दूर है द्वारिका ? मनसुख पूछता है ।
क्या समुद्र में केवल पानी ही पानी होता है ?
तोक सखा पूछ रहा है ।
दाऊ ! तुम लोग पानी में रहते हो ? श्रीदामा नें पूछा है ।
हंसते हैं दाऊ दादा और कहते हैं – द्वारिका, समुद्र में एक द्वीप है ।
सोनें की है द्वारिका ? मनसुख ये प्रश्न करता है …….
गम्भीर हो जाते हैं दाऊ दादा ………फिर चारों ओर बृज की शोभा को देखकर कहते हैं …..
हाँ, सोनें की तो है पर बृज की संपदा के आगे दरिद्र है द्वारिका ।
क्यों ? सोना ही सोना है तो फिर सबसे धनी तो द्वारिका हुई ना !
पर धनी तो तुम बृजवासी हो …………दाऊ फिर कहते हैं ।
हम ? कहाँ से धनी हुये दाऊ ! हम तो वनवासी हैं …….वन में रहते हैं फल फूल खाते हैं ………….
पर तुम्हारे अंदर प्रेम कि जो सम्पदा है वो अद्भुत है …….दाऊ बताते हैं ………पर ये भोले भाले बृजवासी ! निश्छल बृजवासी !
कहाँ दाऊ ! हमारे अंदर कहाँ प्रेम है ! प्रेम तो दशरथ जी का था राम चले गए सुनते ही प्राण त्याग दिए ……..पर हम तो ! हमारा कन्हैया हमें छोड़कर चला गया फिर भी जीवित हैं ! मनसुख ये बात बोला था और बोलते बोलते हिलकियों से रो पड़ा था ।
कहाँ प्रेम ! आँसुओं को पोंछ रहा है मनसुख ।
दाऊ नें अपनें हृदय से लगा लिया है मनसुख को …..श्रीदामा तोक सखा सब दाऊ के हृदय से लग गए थे ।
लो ! अब इनसे भी कुछ बतिया लो दाऊ दादा !
गोपियाँ यमुना किनारे आगयीं थीं …….. सखाओं नें उन्हें देखा – दाऊ को कहनें लगे थे ……….अच्छा ! कुछ समय इनसे बात कर लो तब तक हम भी अपनें गैया देख कर आते हैं ।
सखा ये कहते हुये चले गए थे ।
चन्द्रावली गोपियों में प्रमुख थीं……..पर गोपियों का भी दो दल था, एक दल का प्रतिनिधित्व चन्द्रावली करती थीं तो दूसरे दल का ज्योत्स्ना नामक एक गोपी ………….ये दूसरा दल दाऊ जी से प्रेम करता था …..इस दल की प्रमुख का कहना था पहले से ही ………कन्हैया तो राधा का है या चन्द्रावली का ……..तुम और हम तो वैसे ही उसके पीछे पागल हैं……..मैं तो पीताम्बर धारी से सुन्दर नीलाम्बरधारी को मानती हूँ …..दाऊ को …….कितनें सुन्दर हैं वे ।
आज ये दोनों दल की गोपियाँ दाऊ जी के पास आईँ थीं …………
राधा कहाँ हैं ? श्रीराधा को वहाँ न देखकर दाऊ नें पूछा ।
चन्द्रावली के नेत्र बहनें लगे थे ……….वो बरसाने में ही रहती हैं ……..हाँ, माता कीर्ति और बृषभान जी नें आपको बरसानें में बुलाया है ।
दाऊ सबकी बातें सुनते रहे ………..चन्द्रावली और ज्योत्स्ना नें एक ही बात कही …….दाऊ ! हमें श्रीकृष्ण की बातें बताओ ……….वो द्वारिका में क्या करते हैं ……..क्या हमें याद करते हैं ? अब कहाँ याद करते होंगे ?
दाऊ उन सबकी बातें सुनते हैं …………..फिर श्रीकृष्ण के बारे में बतानें लगते हैं …….कैसे रुक्मणी का हरण किया …..कैसे सोलह हजार एक सौ आठ विवाह किये ………..सब बताया ।
ज्योत्स्ना गोपी दाऊ को इक टक देखती रहती है …………वो अपनें प्रिय दाऊ के लिये माला भी बनाकर लाई है ………..चन्द्रावली उसकी भाव भंगिमा देखकर उठ जातीं हैं और दाऊ को प्रणाम करके चली जातीं हैं……..तात ! यानि श्रीकृष्ण की सब गोपियां चली गयीं हैं ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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