श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! यशोदा मैया का पत्र – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 41” !!
भाग 2
एकाएक पूछ लेते थे श्रीकृष्ण के …………तब रोहिणी माता श्रीकृष्ण के सिर हाथ फेरते हुए कहतीं – लाला ! तो चल ना वृन्दावन …..वहीँ रहेगें ………पहले की तरह रहेंगे ।
हिलकियों से रो पड़ते थे कहते – माँ ! ये अब सम्भव नही है………पर अब हम मिलनें वाले हैं…मैया से …बाबा से ……गोप गोपियों से ……
और ? बडे भोलेपन से नेत्रों में अश्रुओं को भरकर रोहिणी माता से पूछते ……तब रोहिणी माता श्रीकृष्ण को अपनें हृदय से लगा लेतीं……….वो हिलकियों से रोते रहते …….माता, राधा ! मेरी राधा …………कैसी होगी ? मेरे बिना वो कैसे रहती होगी ?
सम्भालती रहतीं रोहिणी अपनें इस पुत्र को ।
आज रथ आगया था बलराम का……श्रीकृष्ण को सूचना मिली…..वो अपनी “सुधर्मा सभा” में बैठे थे….मंत्रियों से उनकी मन्त्रणा चल रही थी ।
तभी – “बलभद्र वृन्दावन से आगये हैं”….तात ! मैने ही उठकर श्रीकृष्ण को ये बात बताई थी…उद्धव नें कहा ।……दौड़ पड़े थे श्रीकृष्ण सब कुछ छोड़ दिया था उन्होंने…….मंत्रीं गण स्तब्ध से देखते रहे…..
ये पीताम्बरधारी आज द्वारिका का नही था ये वृन्दावन का था ………वृन्दावन के नाम से ये दौड़ा था ………।
माता रोहिणी के महल में दाऊ गए थे ………..वहीँ दौड़ते हुए श्रीकृष्ण भी पहुँच गए …………रोहिणी माता के हाथों में पत्र है …….यशोदा मैया का पत्र ……..नेत्रों से अश्रु बह रहे हैं रोहिणी के …….और पत्र पढ़ती जा रही हैं ……..श्रीकृष्ण भी वहीँ खड़े हो गए सावधान की मुद्रा में …..उनकी प्यारी मैया यशोदा का पत्र था ………..ओह !
रोहिणी !
बरसानें भी गया दाऊ , हाँ रोहिणी ! दाऊ बरसानें भी गया …..बृषभान जी नें और कीर्ति रानी नें बहुत आदर किया बड़ा सम्मान किया उसका………..पर राधा को वहाँ नही देखा तो ललिता से पूछ लिया था ……….”वो महल में कहाँ रहती हैं” …ललिता का उत्तर …….फिर ? वो तो वनों में रहती हैं …..उन कुञ्जों में रहती हैं जहाँ कभी विहार हुआ था श्याम सुन्दर और उनका ।
रोहिणी ! बरसानें से जब दाऊ लौटकर आया ना ! तब वो बहुत शान्त था ……..वैसे तो दाऊ शान्त ही है पर ये शान्ति उसकी कुछ अलग ही थी ………..राधा बिटिया से मिला ? मैने इतना ही पूछा तो हिलकियों से रो पड़ा …………….
मैया ! वो अभी भी कुञ्जों में अपनें कन्हैया को खोजती है ……..मैं गया था बरसानें तो ललिता से पूछा वो मुझे गहवर वन में ले गयी ……..वहाँ बैठी है राधा ……उन कुन्जो में ……और कभी हंसती है कभी एकाएक विरह का उन्माद चढ़ जाता है उन पर ।
रोहिणी ! मुझे दाऊ ने ही बताया ………कि राधा स्वयं – हे राधे ! हे राधे ! कहकर पुकार रही थीं ……………तुम लोगों को ये बात विचित्र लगती होगी पर हम वृन्दावन वासियों के लिये तो ये सामान्य सी बात है ……..प्रेमाद्वैत यहाँ सबके साथ घटित होता रहता है रोहिणी !
रोहिणी ! बाकी सब ठीक है …….मेरे लाला का ध्यान रखना , तुझ से ही कह सकती हूँ मैं ……..बाकी देवकी से तो मेरा बोलना भी नही हुआ है ……….मैं कभी मिली भी हूँ मुझे ध्यान नही है ।
तू ध्यान रखियो ! उसके लिये माखन भेजा है मैने ……..तेरे लिये भी भेजा है ………और हाँ ……..राधा नें रुक्मणी आदि के लिये गुंजा की माला भेजी है………हम तो वनवासी लोग हैं और दे ही क्या सकते हैं ।
बाकी सब ठीक है …………….
यशोदा ।
कन्हैया !
बलराम दौड़े पीछे ………उन्होंने ध्यान ही नही दिया था ……वो भी यशोदा मैया का पत्र सुननें में मग्न हो गए थे और रोहिणी माता तो स्वयं पढ़ ही रहीं थीं ………..पर श्रीकृष्ण ।
वो मणि माणिक्य की कठोर अवनी में गिर गए थे ………उन्हें देह भान ही नही था …………वो वृन्दावन, मैया , बाबा गोप गोपी और राधा का उच्चतम प्रेम सुनकर श्रीकृष्ण देहातीत हो गए थे , और कब वो गिर पड़े ये किसी को पता ही नही चला ……….
बलराम जी नें उठाना चाहा पर उनकी दशा विचित्र हो गयी थी ………मस्तक अपनें गोद में रखकर दाऊ उन घुँघराले केशों को सहलाते रहे …………..राधा ! राधा ! राधा ! राधा ! रोम रोम से ये नाम प्रकट हो रहा था श्रीकृष्ण के ।
शेष चरित्र कल –


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