श्रीकृष्णचरितामृत्
!! राजसूय यज्ञ की तैयारी – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 49 !!
भाग 1
हे गोविन्द ! आपके कृपा की छाया हमें न मिली होती तो आज ये जीवन ही नहीं होता ।
आपने हमारे पुत्रों के ऊपर जो करुणा दृष्टि कर रखी है उसके लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं ।
आप मेरे कृष्ण हैं , आप मेरे भाई वसुदेव के पुत्र हैं इसलिये आप वासुदेव कहलाते हैं , आप समस्त प्राणियों के दुःखों के हर्ता हैं इसलिये “हरि” हैं, हे मेरे गोविन्द ! आपके चरणों में इस कुन्ती का प्रणाम है आप स्वीकार कीजिये ।
कुन्ती माता नें जब देखा की उनके पुत्र जरासन्ध का वध करके आगये हैं। और ये सब श्रीकृष्ण कृपा से ही सम्भव हुआ है तो वो श्रीकृष्ण चरणो में स्तुति करनें लगी थीं ।
भुआ !
आगे बढ़कर श्रीकृष्ण अपनी भुआ के गले से लग गये थे । भुआ ! आप कैसी बात कर रही हो ! इस दृश्य को देखकर महाराज युधिष्ठिर और द्रोपदी तो प्रेमाश्रु बहाने लग गये थे ।
अच्छा !
अब कुछ काम की बातें हो जाएँ ! श्रीकृष्ण नें जब सबको भाव में डूबे देखा तो बोले ।
द्रोपदी ! क्या राजसूय यज्ञ की तैयारियाँ नहीं करनी ?
आपको ही सब करना है , अपने प्रिय सखा को देखकर प्रेम से पगी द्रोपदी बोली थी ।
हाँ , गोविन्द ! आप जैसा कहें यज्ञ का स्वरूप वैसा ही होगा , महाराज युधिष्ठिर बोले ।
तो सुनो ! विश्व के सम्मान्य जितनें राजा हैं सब को बुलाओ , श्रीकृष्ण कुछ और सोचने में लग गए थे ।
सहदेव लेखनी ले आए थे। और राजाओं के नामों की लिस्ट बनाने लगे थे ।
और सुनो ! सहदेव , ऋषियों के बिना कैसा यज्ञ , इसलिये अब ऋषियों का नाम लिखो ,
सहदेव लिखनें लगे थे , और वो जो जो लिख रहे थे वो बता भी रहे थे श्रीकृष्ण को ।
व्यवस्था में कौन कौन रहेगा ? क्योंकी सहस्रों लोग आएगें उनका भोजन उनका आवास ,
ये बात द्रोपदी ने कही थी ।
हाँ , देखो मुख्य बात तो द्रोपदी ने अब कही है , पर द्रोपदी आगन्तुक सहस्रों में नहीं होंगे लक्षों में होंगे , श्रीकृष्ण गर्व से बोले थे , ऐतिहासिक होगा ये यज्ञ इतिहास स्मरण करेगा इस यज्ञ को….. कितने आनंदित होकर स्वयं श्रीकृष्ण लगे थे इस राजसूय की व्यवस्था में ।
तो सेवक बहुत चाहियें , द्रोपदी बोली ।
हाँ सेवक तो चाहियें, पर यज्ञ का कार्य तो परम पवित्र कार्य होता है इसमें हम स्वयं करें तो !
श्रीकृष्ण इतना बोलकर द्रोपदी और पाण्डवों की और देखने लगे थे ।
कैसे, मैं समझी नहीं , द्रोपदी ने श्रीकृष्ण से पूछा ।
जैसे भोजन बनाने की व्यवस्था तुम स्वयं देखो द्रोपदी ! भोजन कराने की व्यवस्था भीमसेन , श्रीकृष्ण सबको एक एक कार्य देने लगे थे । वाह ! गोविन्द ! भीम दादा को खिलाने की व्यवस्था में ! ये तो कोई चार पूड़ी खाता हो तो उसे आठ खिला देंगे , अर्जुन ने भीम के कंधे में सहजता से हाथ रखते हुए कहा था ।
हाँ , श्रीकृष्ण हंसे , खुलकर हंसे, अर्जुन ! जो खा सकता है वो खिला भी सकता है ।
अरे , मुख्य काम तो छूट ही गया सहदेव ! कोषाध्यक्ष किसे बनाया जाए ?
कोषाध्यक्ष ? वो क्यों ? उसकी क्या आवश्यकता ? अर्जुन ने कहा ।
क्यो , इतने राजा आएँगे वो क्या ख़ाली हाथ आएँगे ? उपहार लाएँगे उन उपहारों को रखना और दिए हुये राजाओं का नाम लिखना ये कौन करेगा ? श्रीकृष्ण सोचने लगे , फिर बोले – दुर्योधन , हाँ , सहदेव ! लिखो दुर्योधन का नाम । श्रीकृष्ण ने कहा ।
पर अर्जुन ने सहदेव को रोक दिया ये कहते हुए कि दुर्योधन हमारा शत्रु है , भीम ने श्रीकृष्ण से कहा – कोषाध्यक्ष का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है येसे कार्य को हम दुर्योधन को कैसे दें !
महाराज ! क्या दुर्योधन को राजसूय यज्ञ में नहीं बुलाओगे ?
गम्भीर होकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से पूछा था ।
बुलाएँगे गोविन्द ! वो भाई हैं हमारे । युधिष्ठिर ने स्पष्ट किया ।
अब सुनो भीम ! और अर्जुन तुम भी सुनो , दुर्योधन आदि कौरव तुम्हारे भाई हैं इसलिये यज्ञ उत्सव आदि में तुम्हें बुलाना ही पड़ेगा उन्हें । श्रीकृष्ण ने भी कहा ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877