श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीकृष्ण की “कृष्णा” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 53 !!
भाग 1
छींक दिया था द्रोपदी ने , सहज छींक नही थी ये , जानबूझकर छींका गया था ।
द्वारिका के लिए विदा ले रहे थे श्रीकृष्ण सबसे मिल रहे थे , और उस समय सबके नेत्रों से अश्रु बहते जा रहे थे । गोविन्द ! ये मेरे पुत्र तुम्हारे ही आश्रित हैं , इनका ध्यान रखना ! कुन्ती भुआ रो गयी थी ये कहते हुए ।
अर्जुन का रो रो कर बुरा हाल था , वो बार बार श्रीकृष्ण चरणों में गिर रहे थे पर श्रीकृष्ण इस अनादि सखा को उठाकर अपने हृदय से लगा रहे थे । महाराज युधिष्ठिर को जब श्रीकृष्ण ने हृदय से लगाया तब उनकी भी हिलकियाँ छूट पड़ी थीं , आप न होते तो हे गोविन्द ! ये राजसूय यज्ञ सफल न होता , नही नही, अपने अश्रुओं को पोंछते हुए महाराज फिर बोले थे , केशव ! आप न होते तो हम पाण्डव अभी तक जीवित ही न होते , आपके कारण ही हम हैं ।
महाराज ! आप धीरज धरिए , श्रीकृष्ण ने सांत्वना दी ।
द्रोपदी कहा है ? इधर उधर देखा श्रीकृष्ण ने , अर्जुन की और देखा तो अर्जुन गए द्रोपदी को बुलाने , ओह ! द्रोपदी भीतर महल में बैठ कर रो रही थी ।
चलो पांचाली ! श्रीकृष्ण द्वारिका जा रहे हैं । अर्जुन ने भाव सिक्त हृदय से कहा।
ऐसे कैसे चले जाएँगे मेरे सखा , वो बाहर आयी और बाहर आकर छींक दिया था ।
और जानबूझकर छींका था ।
ये क्या है ! श्रीकृष्ण हंसते हुए बोले ।
अपशकुन हो गया है सखे ! आज मत जाओ न ! बिलखते हुए बोली थी ये याज्ञसेनी ।
पास में गये द्रोपदी के श्रीकृष्ण , मेरी सखी ! मैं कहाँ जा रहा हूँ , द्वारिका ही तो जा रहा हूँ । और द्वारिका भी नही तुम्हारे हृदय में तो मैं सदैव हूँ जब पुकारो ये कृष्ण तुम्हारे पास ही होता है ।
हृदय से लग गयी थी द्रोपदी, श्रीकृष्ण भी अपनी प्यारी सखी को अपना प्रेम दे रहे थे ।
द्रोपदी ! तुम मुझे सखा मानों ये कोई बड़ी बात नही है , विश्व मानता है कृष्ण को अपना पर यही कृष्ण तुझे अपनी सखी मानता है , और स्मरण रहे इस मित्र ने ही तुझे अपना नाम दिया है “कृष्णा” । तू इस कृष्ण की कृष्णा है द्रोपदी । श्रीकृष्ण के भी नेत्र सजल हो उठे थे ।
तुझे कभी भी कष्ट आए मुझे बुला लेना और द्रोपदी ! जो मेरी सखी को कष्ट देगा अपमान करेगा उसके कुल का विनाश ये वासुदेव कृष्ण करके दिखा देगा । पाण्डवों को आश्चर्य हुआ की ये कहते हुये श्रीकृष्ण के नेत्र लाल हो रहे थे , पाण्डव समझ नहीं पाए कि इस तहत द्रोपदी को लेकर कृष्ण आक्रोशित क्यों हो रहे हैं ।
उद्धव बोले – तात ! द्रोपदी कि हंसी को लेकर दुर्योधन के मन में अब बदले की भावना आ चुकी है इस बात को श्रीकृष्ण समझ गए थे, और आने वाला समय अब इन द्वारिकाधीश की आँखों के सामने ही था।
विदुर जी को उद्धव श्रीकृष्णचरित सुनाते हुए आगे बोले – इस तरह सबको सांत्वना प्रेम स्नेह देकर अपने दारुक सारथी के साथ श्रीकृष्ण द्वारिका लौट आए थे ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल
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