श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब द्रोपदी हंसी – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 52 !!
भाग 1
राजसूय यज्ञ पूर्ण हो चुका था , अतिथियों राजाओं को महाराज युधिष्ठिर नाना प्रकार के उपहार देकर विदा कर रहे थे , विप्रों को दक्षिणा देकर सन्तुष्ट कर चुके थे महाराज , इसके बाद भी वस्त्र सुवर्णादि बहुत कुछ दिया तब ब्राह्मणों ने भूरी भूरी आशीष देकर पाण्डवों को कृतार्थ किया था।
सुवर्ण के दिव्य सिंहासन में महाराज युधिष्ठिर विराजमान हैं वाम भाग में महारानी द्रोपदी ।
नकुल सहदेव पीछे चंवर ढुरा रहे हैं , भीम अर्जुन पास के आसन में बैठ कर राजसूय यज्ञ की ही चर्चा कर रहे हैं । महाराज युधिष्ठिर ने अपने दाहिनी ओर एक दिव्य सिंहासन लगवाया है उसमें भगवान द्वारकेश विराजमान हैं ।
“दुर्योधन हमसे चिढ़ गया”, अर्जुन ने भीम के कान में धीरे से कहा ।
पर क्यों ? भीम ने पूछा । क्यों की हमारा वैभव , हमारे यज्ञ का पूर्ण सफल होना , हमने जो दान दिया और हमारा ये सुन्दरतम राज्य इन्द्रप्रस्थ , कैसे सहन करे वह दुर्योधन , अर्जुन ने कहा ।
पर वो है कहाँ ? भीम ने इधर उधर दृष्टि दौड़ाई , सभा में तो नही है बाहर किसी से झगड़ रहा होगा , अर्जुन ने हंसते हुए कहा । तभी – अर्जुन ! देखो उधर , श्रीकृष्ण ने अपने नेत्रों के इशारे से अर्जुन को बताया , सब का ध्यान श्रीकृष्ण की और ही था उनके सयन जब चले तो सब देखने लगे थे उधर ही ।
हाथों में तलवार लिए बिखरे केश पागलों की तरह नंगे पाँव ही दुर्योधन सभा में आगया था , पर दूर ही खड़ा रहा , महाराज युधिष्ठिर ने बड़े प्रेम से कहा भी कि – दुर्योधन ! आओ बैठो ।
पर वो बैठ नही रहा , क्रोध के मारे उसकी लम्बी लम्बी साँसे चल रहीं थीं ।
शिशुपाल का शव कहाँ है ? वो श्रीकृष्ण की ओर ही देखकर बोला था ।
महाराज ! शिशुपाल का शव कहाँ हैं , ये बात हस्तिनापुर के युवराज जानना चाहते हैं उन्हें आप बताएँ ……..महाराज युधिष्ठिर से श्रीकृष्ण बोले थे ।
कल ही यमुना किनारे उनका दाह संस्कार कर दिया गया है।
महाराज युधिष्ठिर ने दुर्योधन को कहा ।
क्रोध से काँपने लगा दुर्योधन , राजा का इतना बड़ा अपमान । ठीक है उससे गलती हो गयी आपने उसका वध कर दिया किन्तु , शव के साथ ऐसा व्यवहार कौन करता है , उसके शव को तो दे देना चाहिये था , उनके परिजनों को । दुर्योधन बोले जा रहा है ।
अपनी सभा में बुलवाकर वध करना ये क्या धर्म संगत है, हे धर्मराज ! बताइए ।
मेरा मित्र शिशुपाल वीर था अगर युद्ध में उसे पराजित नही किया जा सका तो सभा में बुलवाकर उसका वध ? संकेत श्रीकृष्ण की ओर ही था दुर्योधन का ।
तुम कहना क्या चाहते हो , वो हमें गालियाँ दे और हम सहन करते रहें । अर्जुन ने दुर्योधन से पूछा…..फिर अर्जुन ने कहा , क्षत्रिय हैं हम दुर्योधन ! हाथों में हमारे कंगन नही है ।
तो आजाते ना मैदान में और करते ना दो दो हाथ मेरे मित्र शिशुपाल के साथ ।
दुर्योधन ! ज़्यादा मत बोल, नही तो…..भीम उठकर खड़ा हो गया था ।
युधिष्ठिर चिंतित हो उठे थे , कहीं यहीं युद्ध न छिड़ जाए ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल
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