आज म ई माह का दूसरा रविवार
अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस पर एक अद्वितीय
रचना।
महरि तैं बड़ी कृपन है माई ।
दूध-दही बहु बिधि को दीनौ, सुत सौं धरति छिपाई ॥
बालक बहुत नहीं री तेरें, एकै कुँवर कन्हाई ।
सोऊ तौ घरही घर डोलतु, माखन खात चोराई ॥
बृद्ध वयस पूरे पुन्यनि तैं, तैं बहुतै निधि पाई ।
ताहू के खैबे-पीबे कौं, कहा करति चतुराई ॥
सुनहु न बचन चतुर नागरि के, जसुमति नंद सुनाई ।
‘सूरस्याम’ कौं चोरी कैं मिस, देखन है यह आई ॥
*भावार्थ*
कोई ग्वालिन महरि यशोदा से कहे जा रही है-महरि, तू भारी कंजूस है। सखी, तेरे घर में भगवान का दिया हुआ बहुत दूध-दही है, तेरे कमी किस बात की है। पर तू सब बेटे से छिपाकर रखती है।
तेरे बहुत से लड़के भी नहीं है। एक ही तो तेरे बेटा है कुँवर कन्हैया । वह भी घर-घर में घूमता-फिरता है और चुरा-चुराकर माखन खाता है।
वृद्धावस्था में, पूर्वजन्म के बड़े पुण्य से, तुझको कुँवर कन्हैया के रूप में बहुत बड़ी निधि मिली है। तू उसके भी खाने-पीने में चतुराई करती है।
तब यशोदा ने नंद को सुनाकर कहा-इस चतुर गोपी की बातें सुन रहे हो न? चोरी का बहाना बनाकर यह मेरे कुँवर कन्हैया को देखने आई है।
आशिष।।।।
ब्रह्मांड नायक की माता बनने का परम सौभाग्य पाने वाली यशोदा मैया को कोटि कोटि नमन।
जय श्री कृष्ण जी।
🙏🌹🙏🇮🇳


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