श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सखा सुदामा – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 59 !!
भाग 2
मैं एक विद्वान ब्राह्मण की पत्नी हूँ , शास्त्र का अध्ययन मुझे भी है, इसलिए , कह सकती हूँ कि एकादशी के दिन अन्न की भिक्षा देने वाला पाप का भागी होता है , इसलिए मैं आज आपको भिक्षा नही दे सकती । सुशीला अपनी ओजमयी वाणी में बोली ।
पर देवी ! आज तो एकादशी है नही , ये भिक्षुक भी कोई और नही था ।
तभी सुदामा की कुटिया का द्वार खुल गया था , भीतर का सारा दृश्य उस भिक्षुक ने देख लिया था , बालक अन्न के दाने के लिए तड़फ रहे हैं । पर सुशीला , सुदामा की पत्नी है ये ,
महाराज ! औरों के जीवन में पन्द्रह दिन में एक बार एकादशी आती है पर हमारे परिवार के ऊपर भगवान की इतनी कृपा है कि नित्य एकादशी है । ओह ! ये कहते हुए सुशीला में ठसक ही रही किन्तु उस भिक्षुक के नेत्रों से अश्रु बह चले थे ।
सुशीला ! सुशीला !
सुदामा रात्रि को आए , वहीं खेत में धान तो मिला नही पर श्रीकृष्ण के स्मरण में ऐसे खो गए ये की रात्रि हो गयी ये भी पता नही चला इन्हें । जब पता चला तब अपने घर की और चल पड़े थे ।
जी , सुशीला दौड़ती हुई आयी , लोटे में जल लेकर आयी थी, पाँव धोए सुदामा ने हाथ मुँह धोया ।
बालक सो गए ? सुदामा ने पूछा ।
हाँ सो गए , सुशीला इतना ही बोली ।
अच्छा , कुछ खाया कि नही बालकों ने ? सुदामा लेटते हुए अपनी पत्नी से पूछते हैं ।
कुछ नही है घर में , अन्न का एक दाना तक नही है , सुशीला बोली ।
हाँ , खेतों में मुझे भी आज कुछ नही मिला । सुदामा स्पष्ट बोलते थे ।
सुनिए ! सुशीला सुदामा के पास आयी , एक बात आपसे पूछूँ ?
हाँ, पूछो , सुदामा ज़्यादा बोलते कहाँ हैं !
क्या श्रीकृष्ण आपके मित्र हैं ?
ओह ! ये क्या पूछ लिया सुशीला ने ! आज तक किसी को ये बात सुदामा ने बताई ही नही थी , किसी को क्या सुशीला तक से छिपा कर रखा था इन्होंने , ।
उठकर बैठ गए सुदामा , तुम्हें किसने कहा देवि ?
वो एक भिक्षुक आए थे आज …………………
देवी ! आपके पति तो श्रीकृष्ण के मित्र हैं ।
उस भिक्षुक ने सुशीला से कहा ।
श्रीकृष्ण के मित्र !
मेरे पति श्रीकृष्ण के मित्र ! ओह ! सुशीला के नेत्रों से आनन्द के अश्रु बह चले थे ।
हाँ , क्या तुमको कभी तुम्हारे पति ने बताया नही ?
दोनों साथ साथ पढ़े हैं उज्जैन में , ऋषि संदीपनी के यहाँ , और दोनों की मित्रता की चर्चा आज भी होती है उस गुरुकुल में । वो भिक्षुक बोलता जा रहा था ।
हाँ , वो मथुराधीश , मथुरा में रहते हैं वो , सुशीला बोली ।
नही , अब नही रहते वो मथुरा , वो द्वारिकाधीश हैं अब , अपने मित्र सुदामा के लिए वो यहीं पास में द्वारिका आगये हैं । उस भिक्षुक ने कहा ।
सुशीला आनंदित हो उठी उस भिक्षुक की बातों से ।
तुम भेजो अपने पति को द्वारिका , फिर देखना तुम्हारी सारी दरिद्रता समाप्त हो जाएगी ।
वो भिक्षुक ये कहता हुआ चला गया ।
सुदामा गदगद हो उठे सुशीला की बातों से , मेरे सखा ने द्वारिका बसाई है !
हाँ , हाँ भगवन् ! उन भिक्षुक ने मुझे कहा है कि आप वहाँ जाएँ , जीवन की सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी ।
पर मैं नही जाऊँगा ! सुदामा वापस लेट गए ।
क्यों , क्यों नही जाएँगे आप द्वारिका ।
मेरे जाने का अर्थ होगा मैं माँगने जा रहा हूँ अपने मित्र से । सुदामा ने कहा ।
और मित्र से क्या याचना करना , मित्रता तो बराबरी में होती है ना , मैं बराबरी में रहना चाहता हूँ , वो द्वारिका का राजा तो सुदामा भी अपनी झोपड़ी का राजा । ये कहते हुए सुदामा हंसे , फिर बोले , रात्रि ज़्यादा हो रही है देवि ! तुम सो जाओ ।
सुशीला कुछ देर बैठी रही , फिर बोली सुनिए ना ! माँगने मत जाइए मित्र से मिलने तो जा ही सकते हैं ? सुदामा उठ कर बैठ गए बड़े प्रेम से सुशीला का हाथ पकड़ कर बोले – देवि ! मित्र के पास , गुरु के पास , भगवान के पास कभी ख़ाली हाथ नही जाना चाहिए , मेरे पास तो कुछ भी नही है , अन्न का दाना तक नही है , क्या लेकर जाऊँ ! इसलिए ज़िद्द मत करो जाओ सो जाओ ।
सुदामा इतना कहकर फिर लेट गए ।
सुशीला कुछ देर सोचती रही, फिर बोली ,
चिउरा ले जाओगे ?
सुदामा हंसे , कहाँ हैं चिउरा ? मैं उसकी व्यवस्था कर लुंगी , आप बोलिए -ले जाओगे ?
सुदामा के नेत्र बह चले सोचने लगे , श्रीकृष्ण को देखूँगा , आहा , मित्र ! कहता हुआ आएगा वो मेरे पास । ये चिन्तन में आते ही सुदामा ने “हाँ”बोल दिया ।
सुशीला ख़ुशी के मारे उस रात सो नही पाई , मेरे पति जाएँगे अब द्वारिका , पर चिउरा की व्यवस्था । हो जाएगी , पड़ोस से माँग लुंगी , कह दूँगी जितना दोगी उसका चौ गुना लौटा दूँगी ।
सुशीला सो गयी , सुदामा भी अपने सखा के बारे में सोचते हुए सो गए थे ।
शेष चरित्र कल-
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